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आखिर करना क्या है, लड़कियो को पढ़ा-लिखाकर? ब्याह कर उन्हें घर का चूल्हा-चोका ही तो करना है।

सनद रहे, अज्ञानता जितनी दूर फैलेगी, उतना ज्यादा हमारा राज बड़ा होगा।

आखिर करना क्या है, लड़कियो को पढ़ा-लिखाकर? ब्याह कर उन्हें घर का चूल्हा-चौका ही तो करना है।

ये कोरा बहाना था, इसके पीछे डर था।
यदि कोई लड़की पढ़-लिख गई तो सही क्या और गलत क्या? समझने लगेगी, समझ बढ़ेगी तो, सवाल करने लगेगी, फ़र्क करने लगेगी, दखल देने लगेगी और पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं आपस में एक दूसरे से जल्दी घुल-मिल जाती है। दूसरी लड़कियों को भी समझाने और तैयार करने लगेगी। फिर मिलकर संघ बनाएगी। हमारी सत्ता को चुनौती देगी, हक़-अधिकार की बात करने लगेगी और हिस्सेदारी मांगने लगेगी। सही मायनों में कहा जाए तो हमारी परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन तोड़ देगी। यदि ऐसा हुआ, तो कैसे हम उन कुप्रथाओं को जारी रख सकेंगे? जिसकी बिसात पर ये खेल जमाया है।

ऐसे में हम किसे देवदासी बनाएंगे? भगवान को अर्पित करने के नाम पर नाबालिग लड़कियों को कैसे भोग पाएंगे? पति के मरने पर उसकी जलती चिता पर हम कैसे उसकी विधवा को प्रथा के नाम पर आग में जिंदा जलाकर सती कर पाएंगे? मुलाकरम के नाम पर कैसे अधनंगी लड़कियों के जिस्म को देख सकेंगे? लड़की समझदार हुई तो ऐसे में, जब हमारा मन चाहेगा, तब कैसे किसी महिला को भोग सकेंगे? शिक्षा, आज़ादी पाने का माध्यम है। आज़ाद और उन्नत विचारों से लबरेज़, एक लड़की भी हमारे सदियों तक एकछत्र राज करने के इस आइडिया को ध्वस्त कर सकती है।

जब वो समझ जाएगी कि संस्कृति, परंपरा के नाम पर बनाए उसूल और नियम सब खोखले है, षडयंत्र का हिस्सा है, तब वो एक कदम और आगे बढ़ाएगी और हमारे पितृसत्तात्मक व्यवस्था की सड़ी गलि रूढ़ियों पर तीव्र प्रहार करेगी। हमारी संरचना को तोड़, इसके मूल पर घात करेगी। यह भी होगा कि वो जाति से बाहर जाकर विवाह करे। फिर तो सत्यानाश ही हो जायेगा। सारा खेल तो जाति का है। महिला को क्या माना गया ग्रंथो में और इस दोहे में स्पष्ट है ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी….

इसलिए यही आइडिया सही है, कि लड़कियों को अनपढ़, गंवार अशिक्षित, रखा जाए, यही कहकर कि आखिर करना क्या है लड़कियो को पढ़ा-लिखाकर ? ब्याह कर उन्हें घर का चूल्हा-चौका ही तो करना है। लड़के की आस मे लड़की के जन्म लेते ही उसे मार दो, समझ विकसित होने से पहले 9, 10 की उम्र में शादी कर दो। इसी को प्रचलित कराओ, वैसे भी भारत के लोग नकल बड़ी जल्दी कर लेते है, अकल आएगी तब तक तो पानी सर के ऊपर निकल जाएगा।

हम अभी थोड़े से लोग ही सही, लेकिन अपने गुट में से ही किसी को तैयार करो सार्वजनिक रूप से बलिदान के लिए और इतना मूल बांटो कि हमें सदियों तक ब्याज मिलता रहे।

“एक नारी सब पर भारी”
गौरवशाली इतिहास वाले भारत देश में शिक्षा की असली देवी, बहुजन क्रांति की ध्वजवाहिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर उस दीवार को तोड़ा और नया इतिहास बना डाला और समय समय पर ऐसी वीरांगनाओं ने अपना जीवन न्यौछावर कर दुनिया की आधी आबादी को स्वतंत्रता, हक अधिकार, न्याय, शिक्षा, सम्मान, सुरक्षा और सबसे महत्वपूर्ण पुरुषो के बराबरी के लिए अवसर के लिए अथक प्रयास किए। लेकिन इसमें सबसे बड़ा हाथ यदि किसी का रहा तो वो थे महामानव बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी। जिन्होंने संविधान में सभी को बराबरी और मानवीय अधिकार दिए और स्पष्ट रूप से महिलाओं की लड़ाई लड़ी। उन्ही की वजह से देश की महिला आज कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, आईपीएस, वैज्ञानिक बनी है, हवाई जहाज उड़ा रही और अंतरिक्ष तक पहुंच रही है।

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को और उनके एकमात्र मसीहा को विनम्र अभिवादन…

बाबासाहेब की प्रेरणा से
आपका राजू कुमार अंभोरे
भीम जन्मभूमि महू

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