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गलतफहमी में न रहे बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलेगा, षड्यंत्र कर आदिवासी के अधिकार छीन रहे हैं- डॉ हीरालाल अलावा जयस

आदिवासियों के हक अधिकार छीनने के लिए कई प्रकार से राजनीतिक कूटनीतिक षड्यंत्र हो रहे है।

समाज में नेतृत्व से हक , अधिकार मिलेंगे – डॉ हीरालाल अलावा। जयस युवा नेतृत्व मिशन 2023-2024 की तैयारी

हमने बार – बार एक शसक्त आदिवासी नेतृत्व की बात कही क्योँकि आज वास्तव पुरे देश मे आदिवासी नेतृत्व नहीं के बराबर है आज हमने सामुदायिक वनाधिकार की मांग करने वाले संगठनों के ज्ञापनों की जानकारी मांगी थी लेकिन किसी भी सदस्य ने जानकारी नहीं दी। इससे यह साबित होता है आदिवासी समाज का युवा वर्ग आज भी सरकारों से यह उम्मीद करता है की उसे बिना मांगे सब कुछ मिल जाएगा।

अगर आजाद भारत में आजादी के 75 साल बाद वह भी पड़ने लिखने के बाद भी समाज का पड़ा लिखा आदिवासी युवा यह नहीं समझ पाए कि बिना संघर्ष से कुछ नहीं मिलना है, तो वह बहुत बड़ी भूल कर रहे है बल्की उसे यह समझने की जरूरत है की जो कुछ थोड़ा बहुत उनके पास है। उसे भी छीनने के लिए कई प्रकार से राजनीतिक कूटनीतिक षड्यंत्र हो रहे है।आज हम बिरसा मुंडा जयंती मना रहे, हम टंट्या भील जयंती मना रहे है, कोमराम भीम हो, तिलका मांझी हो या फिर वीर गुंडाधुर जयंती हो मना रहे है लेकिन उनसे क्या प्रेरणा ले रहे है?

यह सबसे बड़ा सवाल है महापुरुषों की जयंती के नाम पर सिर्फ नाचने गाने भर से काम चलने वाला नहीं है। हमें उन पुरखों से संघर्ष से बहुत कुछ प्रेरणा लेना चाहिए। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए आज जो जल जंगल और जमीन जिस पर हम रहते है। जिस पर हम खेती कर आजादी से अपना जीवनयापन कर रहे है जो भारत के संविधान मे हमें आदिवासी क्षेत्र और अनुसूचित क्षेत्र के रूप मे मिले है। वह सब हमारे पुरखों के संघर्ष का परिणाम है लेकिन हम उनके संघर्ष से प्रेरणा लेते हुवे कहा नजर आ रहे है।

यह सवाल हमारे आदिवासी समाज की नई युवा पीढ़ी को खुद से पूछना चाहिए आज हम भले ही आदिवासी समाज मे एक शसक्त सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व की बात कर रहे है लेकिन हमें दूर दूर तक युवाओं के पास ऐसा दृष्टिकोण नजर नहीं आ रहा है, जो आदिवासियों के युवा नेतृत्व की थीम पर खरा उतर सके आज आदिवासी क्षेत्रों अनुसूचित क्षेत्रों की जमीनों पर विभिन्न सरकारी परियोजनाओ के नाम पर कब्ज़ा किया जा रहा है। समाज के एक बड़ा वर्ग को पड़ लिखकर आरक्षण का फायदा लेकर बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी मे आता है लेकिन वह भी सिर्फ तमाशा ही देख रहा है।

आखिर यह भोलाभाला समाज किनसे उम्मीद करेगा? कौन इस अंतिम पँक्ति मे खड़े वर्ग की उम्मीदों पर खरा उतरेगा? यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन तब तक कितनी देर हो चुकी होंगी उसका अंदाजा भी अभी से नहीं लगा सकते है बस समाज की कड़वी सच्चाई से अवगत कराते रहेंगे।

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