आत्मा से परामात्मा का मिलन ही रुकमणी मंगल-अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा।
कबीर मिशन समाचार जिला सीहोर।संजय सोलंकी की रिपोर्ट।
सीहोर। बेटी का विवाह योग्य वर से होना चाहिए, बेटी के विवाह में धन नहीं परिवार का प्रेम और स्नेह की आवश्यकता है। रुकमणी मंगल का यह प्रसंग कहता है कि बेटी जहां आत्मा से सुखी रहे उसका विवाह उस परिवार में होना चाहिए।
आत्मा से परामात्मा का मिलन ही रुकमणी मंगल है। उक्त विचार एक दिवसीय कथा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। उन्होंने मंगल में बताया कि सत्संग के प्रभाव बचपन से पड़ने लगता है। जिस तरह से माता रुकमणी अपने पिता की गोद से ही संस्कार और सत्संग
का प्रभाव से प्रभावित थी। राजा विदर्भ नरेश भीषम के यहां पर माता रुकमणी के जन्म के बाद ही पूरा राज्य में मंगल हो गया था। देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, जो विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी साक्षात लक्ष्मी का अवतार थीं। वह मन ही मन श्री कृष्ण से विवाह करना चाहती थीं।
उधर, श्री कृष्ण भी जानते थे कि रुक्मिणी में कई गुण है। लेकिन रूकिमणी का भाई रूक्मी श्री कृष्ण से शत्रुता रखता था। अंतत श्री कृष्ण ने रूक्मी को युद्ध में परास्त करके रुक्मिणी से विवाह किया। पंडित श्री मिश्रा ने गोपी गीत, महारास, रुक्मिणी मंगल विवाह एवं प्रेम योग के बारे में विस्तार
से चर्चा करते हुए महारास के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि महारास का अर्थ जीव से जीव का मिलन नहीं अपितु ब्रह्म से जीव के मिलन को महारास कहा गया है। रुक्मिणी मंगल कथा के बारे में बताते हुए कहा कि जो इसका श्रवण करता है, उसके घर में कलह-क्लेश की सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं और परिवार मंगलमय जीवन व्यतीत करता है।