कबीर मिशन समाचार पत्र तेलंगाना
लेखक संजय सोलंकी हैदराबाद,
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक बार फिर पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
खबर है कि राज्य सरकार ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से सटे करीब 400 एकड़ के हरे-भरे जंगल को काटने का फैसला किया है। इस जंगल को शहर का “फेफड़ा” कहा जाता है, जो न सिर्फ ऑक्सीजन का स्रोत है, बल्कि सैकड़ों प्रजातियों के पौधों,
पक्षियों और जानवरों का भी आशियाना है। लेकिन अब विकास के नाम पर इस प्राकृतिक धरोहर को नष्ट करने की योजना ने बेजुबान जीवों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस जमीन को समतल कर एक विशाल आईटी पार्क बनाने की तैयारी में है।
इस परियोजना से 50 हजार करोड़ रुपये के निवेश और 5 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होने की बात कही जा रही है। लेकिन इस चमचमाते सपने के पीछे जंगल में रहने वाले हिरण, अजगर, नीलगाय और 450 से अधिक
प्रजातियों के वन्यजीवों का भविष्य अंधेरे में डूबता नजर आ रहा है। जंगल में मौजूद तीन झीलें और सदियों पुरानी चट्टानें भी इस “विकास” की भेंट चढ़ने वाली हैं।स्थानीय पर्यावरणविदों और छात्रों का कहना है कि यह जंगल हैदराबाद की जैव विविधता का अनमोल हिस्सा है।
विश्वविद्यालय के छात्र पिछले कई दिनों से इसका विरोध कर रहे हैं और इसे बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। उनका कहना है, “यहां कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है जहां ये जानवर जा सकें। अगर जंगल काटा गया तो इन बेजुबानों की मौत निश्चित है।
विपक्षी दल भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और इस जमीन को ईको पार्क में बदलने की मांग की है।हालांकि, सरकार का दावा है कि यह परियोजना आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। लेकिन सवाल यह है कि
क्या विकास की कीमत पर प्रकृति और वन्यजीवों का बलिदान जायज है? सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए जंगल में पेड़ काटने पर अंतरिम रोक लगा दी है, लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा।
हैदराबाद के इस जंगल का भविष्य अब कोर्ट और जनता के हाथों में है। क्या यह हरा-भरा इलाका बेजुबान जानवरों का घर बना रहेगा या कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो जाएगा? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।