विदिशा से कबीर मिशन समाचार पत्र महाराज सिंह दिवाकर की रिपोर्ट “
लालच में फंसने वाले लोग समाज के लायक नहीं होते ।”किसी कार्य को करने की सांक हो माथे पर वो ही अद्वितीय कर गुजरते हैं।चाहे वो थामस एडीसन
हो,आइंस्टीन हो,प्लेटो हो,डॉ अरस्तू,या सिंग मन फ्राइड हर कोई सनकी था।अपने आप में ऐसे ही थे मान्य दीना भाना जी थे,धुन के धुनी।जब उनके सामने बुद्ध एवं अंबेडकर की जयंती रद्द करने का प्रस्ताव आया,इसका विरोध करने में जन की बजी लगा दी और मनुवादी सोच के लोगों को हर का मुंह देखना पड़ा।आज उनकी
सामयिक सोच,तार्किकता,निर्भीकता और उनके त्याग को दुनिया सैल्यूट कर रही है।राजस्थान के जिला जैसलमेर ग्राम वागास केनिवासी थे।उनका जन्म दलित समाज की चूहड़ा (भंगी) परिवार में हुआ था।पिता के निधन के बाद घर में भुखमरी का साया मंडराने लगा।रोजी रोटी की तलाश में अपने भाई के पास
दिल्ली आ गए ।डॉ अंबेडकर कभाषण एक सभा में सुना।दिल्ली छोड़कर पूना पहुंच गए।1948 में नौकरी मिल गई सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मिलिट्री एक्सरलोसिब में सफाई कर्मचारी की और 1960 में प्रमोशन मिला दीनाभाना जी इंस्पेक्टर बन गए। दीनाभाना ने कहा कोई देवता मेरे काम नहीं आए,बाबा साहब ही कम
आए।जिसकी वजह से मुझे नौकरी मिली है यह बात उन्होंने अपने विभाग के चेयरमैन से कहीं।यही से जीवन संघर्ष की कहानी शुरू होती है।एक जोशी नामक ब्राह्मण बहुत अच्छा आदमी था वह यूनियन के कम में हाथ बंटाता था,जोशी कांशीराम से मिला और बोला दीनाभाना अच्छा आदमी है ये अधिकार के लिए लड़ता है।मगर इसके वर्कर ही बात नहीं मानते हैं।कांशीराम ने कहा ये क्या लड़ेगा कल उनके पैरों में गिर जाएगा।
दीनाभाना को गुस्सा आ गया।कांशीराम आप तों बी एस सी करके आए हो मगर मेरे पास तो कोई सर्टिफिकेट नहीं है।मैने अंग्रेजी की दो या तीन किताबें पढ़ ली इसलिए मेरे को प्रमोशन मिल गया ,तुम क्यों एक अनपढ़ आदमी का मनोबल गिरते हो?अगर मेरे पास डिग्री होती तो मैं ब्राह्मण अधिकारी की ऐसी तैसी कर देता।फिर कांशीराम को गुस्सा आ गया
।दीनाभाना जी भी गुस्सा हो गए ।कांशीराम बोले काहे का अच्छा आदमी है बहुत ज्यादा बोलता है।फिर जोशी कांशीराम जी को को अपने कमरे में ले गया।और समझाया आप दोनों एक ही शैडयूल्ड के लोग हो तुम्हे आपस में लड़ना नहीं चाहिए।कांशीराम जी को समझ आ ही गया कि हमारे समाज को ऐसे ही लोगों की जरूरत है। दीनाभाना को नौकरी से निकल दिया
गयाकांशीराम जी ने दीनाभाना को ब्राह्मण अधिकारी से बात करते हुए देखा वार्तालाप में दीना भाना ने कहा मै यूनियन का प्रेसीडेंट हूं ।रुल समझ कर लगाना कही उल्टा न पद जाए। कांशीराम ने कहा वाकई में तुझे डर नहीं लगता? दीना भाना बोले अरे साहब ये ब्राह्मण है ये मुझे मारेगा तो मैं भी मारूंगा।ये मेरी नौकरी लेगा जान तो नहीं लेगा।कही भी जाऊंगा इज्जत की रोटी
खाऊंगा। में इसके खिलाफ कोर्ट में जाऊं गा ।दीनाभाना जी मान्य खापर्डे जी के संपर्क में थे और अच्छी तरह जानते थे कि ये महार है कांशीराम जी के बारे में नहीं जानते थे क्योंकि पंजाब से थे।एक दिन कांशीराम जी ने दीनाभाना से कहा आप बाबा बाबा चिल्लाते हो,बाबा का साहित्य मुझे भी बताओ तब
खापर्डे जी ने कांशीराम जी को एक किताब दी जो बाबा साहब की लिखीथीजिसकानाम था “जात पात का बीज नाश” साहब कांशीराम जी ने उस किताब को रात भर पढ़ा और सुबह आके सड़ी गडी व्यस्था को गाली देने लगे।दीना भाना ने कहा मै तो बाबा साहब के स्पीच सुनकर ही पागल हूं और आप तो एक किताब पढ़ कर पागल हो गए।तब कांशीराम जी ने कहा बाबा साहब ने बहुत बड़ा काम किया है
,दलित शोषित समाज के लिए वहीं से कांशीराम जी के दिल और दिमाग के लगे ताले खुल गए और दीना भाना जी से अच्छी दोस्ती हो गई। दीनाभाना जी कोर्ट में केस लड़े खापर्डे जी ने कांशीराम जी से कहा कुछ पैसे दो , दिए। कांशीराम जी केस को लेकर रक्षा मंत्रालय गए और उच्च स्तरीय जांच करने के आदेश कराए।जांच में मंत्रालय ने न्याय देते हुए दोषी
अधिकारियों को सख्त चेतावनी देकर दोनों छुट्टियां बाल करने के साथ ही दीना भाना को पुन: नकारी में वापस ले लिया गया।बुद्ध और डॉ आंबेडकर की छुट्टियां बहाल होने और दीनाभाना को नौकरी में वापस लेने पर कर्मचारियों ने कांशीराम के साथ दीनाभाना को सम्मानित किया।चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के आंदोलन का कांशीराम जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
कांशीराम जी ने दीनाभाना जी की लड़ाई को अपनी लड़ाई मान कर केस का रात दिन अध्ययन करते रहे और अपने संस्थान के सहयोगी बन गए।कर्मचारी अपने बीच प्रथम श्रेणी अधिकारी को देख कर उत्साहित हुए। कर्मचारियों ने आंदोलन आगे बढ़ाया कांशीराम के समर्थन से मोर्चा सफल रहा।”
बाबा साहब की किताब ने बदल दी जिंदगी।””दीनाभाना जी की प्रेरणा से मान्य कांशीराम संघर्ष की राह पर ।”कांशीराम को दीनाभाना के साहसी संघर्ष और डॉ अंबेडकर साहित्य सेप्रेरणा मिली कि अनुसूचित जातियों,जनजातियों,पिछड़े वर्गों तथा अल्पसंख्यक कर्मचारियों का गैर राजनैतिक
संगठन बना कर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया जा सकता है।एक चतुर्थ श्रेणी”कल्याणसमिति “का साधारण सदस्य अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकता है तो मैं क्या?इस प्रेरणा से छ:साल पुरानी श्रेणी की नौकरी छोड़कर 1964 से दलित समाज के लिए नव जागरण की रूप रेखा बनाने में जुट गए और शेष जीवन समाज के लिए संघर्ष में लगने का फैसला लेकर
आजीवन शादी ना करने का संकल्प लेकर समाज को संगठित करने में पूर्ण विश्वास के साथ जुट गए।6 दिसंबर1978 में बामसेफ और 6 दिसंबर 1981 में डी एस फोर के नाम से संगठन बनाए ,इनके माध्यम से बहुजन समाज में सामाजिक व राजनैतिक जागरूकता पैदा करने के बाद 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज की स्थापना की।
दीनाभाना जी ने मान्य कांशीराम को जगा दिया।जितना योगदान मिस्टर कैलुसकर का अंबेडकर को जगाने में, पढ़ाने में,आगे बढ़ने में रहा उतना ही योगदान मान्य
कांशीराम को जगाने में डॉ अंबेडकर का साहित्य पढ़ाने में और सामाजिक आंदोलन करने में मान्य दीनाभाना जी को श्रेय जाता है।जब दीनाभाना जी अपने हक अधिकारों के लिए जंग छेड़े हुए थे,तब कांशीराम जी को पता नहीं था कि डॉक्टर अंबेडकर क्या है।
उन्होंने मेरे लिए क्या किया? दीना भाना जी ने कहा था कि मुझे दिल्ली में काफी लोगों ने तंग किया।बी जे पी के लोगों ने तंग किया, और कांग्रेस के लोगो ने भी तंग किया कि आप हमारी पार्टी में आ जाओ लेकिन में कैसे जा सकता हूं,अपनी जिंदगी बामसेफ में लगा दी ,बामसेफ हमारा घर है।इसलिए में अपने घर को छोड़कर नहीं जा सकता दीनाभाना ने कहा शासक जाती के लोग हमारे पुराने दुश्मन है
इसलिए बाल्मीकि जातियों से यही अपील है दुश्मनों के षड्यंत्रों से बचे,क्योंकि बाल्मीकि जाती के लोग लालच में चले जाते है।लालच में फंसने वाले लोग बुरे होते है।वे समाज के लायक नहीं होते।समाज को लायक बनाने के लिए हमें कुछ खोना पड़ेगा और हमें कुछ पाना भी होगा।जब हम कुछ खोते है
तभी हमे कुछ मिलेगा।उन्होंने कहा मेरे पास तो अब कुछ नहीं है मेरा सब कुछ मेरा समाज है।में अपनी लड़ाई बाबा साहब द्वारा बताए हुए रास्ते पर लड़ते चला आ रहा हूं।आप लोगों को देख कर मेरा हौंसला बढ़ जाता है
,जबसे मैने बाबा साहब का भाषण सुना तबसे मैं कुछ और नहीं देखता हूं।बाबा साहब की उस लड़ाई के लिए अपनी जिंदगी देने को तैयार हूं। आज में यहां खड़ा हुआ हूं,बाबा साहब की देन हैं।नहीं तो में भी झाड़ू मारते मारते मर जाता मेरे साथ के लोग मर चुके हैं लेकिन में 78 साल का हूं
और ठीक हूं में अपने आप को अभी भी जवान महसूस करता हूं। मान्यवरदीनाभाना जी ने कहा कि हम लोग सदियो से गुलाम हैं और मनुवाद ने गुलामी की बेड़ियां डाल रखी है इस गुलामी को तोड़ने के लिए यह आंदोलन चल रहा है।यह आंदोलन देश विदेश में फैल गया है
आज विदेश से लोग आ रहे हैं और हमारे लोगो को प्रबोधन कर रहे हैं।यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है।हमारे लोगो को शिक्षा पर ध्यान देना चाहिएऔर अधिक से अधिक शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।कोटि कोटि नमन