ग्राम रेव…. गांव रेव के अंदर सहरिया आदिवासियों का एक बड़ा डेरा है… तकरीबन एक सैकड़ा से अधिक परिवार यहां रहते है… समस्या सहरिया आदिवासियों की सबसे बड़ी है…कि इस गांव में सहरिया आदिवासी परिवारों के घरों में 2 वर्ष से अंधेरा व्याप्त है। आजादी के बाद बेहद दुखद करने वाली यह तस्वीर विकास के तमाम दावों की पोल खोलती है तो वही उन जिम्मेदार अफसर को कटघरे में खड़ा करती है
जो सफेद कागज का झूठ बोलकर सरकार को गुमराह कर रहे है। चिलचिलाती धूप.. चल रही लू.. और प्रचंड गर्मी के मौसम में जहां लोग पंखे, कूलर में से घरों से बाहर निकलने में शाम होने का इंतजार करते है तो ऐसे मौसम में इन सहरिया आदिवासियों का क्या हाल होता होगा जिन्हें 2 वर्ष से बिजली नहीं मिली..?
सहरिया आदिवासियों के मासूम और बुजुर्ग महिलाएं बीमार है। बीते मंगलवार को दतिया कलेक्ट्रेट में आयोजित जनसुनवाई के दौरान ट्रैक्टर ट्रॉली में भरकर यह सहरिया आदिवासी परिवार कलेक्टर को अपनी समस्या से अवगत कराने पहुंचा था.. परेशान सहरिया आदिवासियों ने लिखित प्रार्थना पत्र अधिकारियों को सोपा था …
लेकिन अभी तक उनकी समस्या का कोई निराकरण नहीं हुआ।गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना अंतर्गत कुछ पक्के घर भी बने है लेकिन अधिकांश घर कच्चे है.. गांव में बिजली की डीपी सड़क किनारे लगी है और विद्युत की कनेक्शन लाइन मौजूद है.. गांव में पानी की सुविधा है लेकिन बिजली नहीं आती। सहरिया आदिवासियों को अपने गांव से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर स्थित दूसरे।
गांव में उचित मूल्य की दुकान पर सरकारी खाद्यान्न लेने जाना पड़ता है। गांव की बुजुर्ग महिलाएं सरकारी राशन लेने दूसरे गांव जाना नहीं चाहती क्योंकि सहरिया आदिवासियों के डेरे से दुकान की अधिक दूरी है। ग्राम पंचायत रेव में सहरिया आदिवासियों के अलावा अन्य जाति समुदाय के भी लोग रहते हैं जिनके घरों में बिजली आने से उजाला है।
हमने अपनी इस खास रिपोर्ट में सहरिया आदिवासी परिवारों से उन तमाम मूलभूत विषयों को लेकर बातचीत की जो जीवन निर्वाह करने के लिए जरूरी होते है। गांव में सहरिया आदिवासियों के परिवार इस समय परेशानी में है और उन्हें इंतजार है अंधेरे के खत्म होने का…?