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राजस्थान

पुलिस प्रशासन राजस्थान जनहित में जारी।

Shubham bhilala
Last updated: 2025/02/15 at 2:26 PM
Shubham bhilala
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7 Min Read
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Table of Contents

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  • गुरु का सम्मान न करने वाला समाज नष्ट हो जाता है।”यह सत्य है”
  • 95% शिक्षक केवल बच्चों के अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।यह सच है।
  • शिक्षक रहम कर सकते हैं पुलिस नहीं

अभिभावक बच्चों को स्कूल में शिक्षक द्वारा डांटने पीटने पर बुरा ना माने , ये बात समझे कि बच्चे की स्कूल में पिटाई अंत में पुलिस की पिटाई ठुकाई से अच्छी है,”

Contents
गुरु का सम्मान न करने वाला समाज नष्ट हो जाता है।”यह सत्य है”95% शिक्षक केवल बच्चों के अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।यह सच है।शिक्षक रहम कर सकते हैं पुलिस नहीं

अनुशासन के लिए प्रसिद्ध स्कूलों में विद्यार्थियों के हेयर स्टाइल और उनकी चाल-ढाल को लेकर चाहे कितनी भी सख़्ती की जाए, उनके व्यवहार में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा है।

शिक्षक निराश होकर केवल देखते रह जाते हैं, लेकिन कुछ नहीं कर पाते।यदि माता-पिता का बच्चों पर ध्यान और नियंत्रण कम हो जाए, तो वे इस प्रकार के व्यक्तियों में तब्दील हो जाते हैं।

अनुशासन केवल बातों से नहीं आता; थोड़ा डर और सजा भी जरूरी है।बच्चों को स्कूल में डर नहीं है,घर लौटने पर भी डर नहीं है,इसीलिए समाज आज भयभीत हो रहा है।वही बच्चे आज गुंडे बनकर लोगों पर हमला कर रहे हैं।उनके व्यवहार से कई लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।उसके बाद वे पुलिस के हाथ लगते हैं और अदालत में सजा पाते हैं।*“

गुरु का सम्मान न करने वाला समाज नष्ट हो जाता है।”यह सत्य है”

गुरु का न भय है, न सम्मान। ऐसे में पढ़ाई और संस्कार कैसे आएंगे?“मत मारो! मत डांटो! जो खुद नहीं पढ़ना चाहता उससे क्यों सवाल करो? यदि पढ़ने पर जोर दिया गया या काम कराया गया तो गलती शिक्षकों की

होगी!”पांचवीं कक्षा से ही अजीब हेयर स्टाइल, कटे हुए जींस, दीवारों पर बैठना और आते-जाते लोगों का मजाक उड़ाने की आदत बन जाती है।यदि कोई कहे, “अरे सर आ रहे हैं!” तो जवाब होता है, “आने दो!”कुछ माता-पिता तो यहां तक कहते हैं

, “हमारा बच्चा न भी पढ़े तो कोई बात नहीं, लेकिन शिक्षक उसे मारें नहीं।”जब उनसे पूछा जाता है कि “आपके बाल किसने काटे?” तो जवाब आता है, “हमारे पापा ने करवाया ऐसे, सर।”बच्चों के पास पढ़ाई का सामान नहीं होता।

पेन हो तो किताब नहीं, किताब हो तो पेन नहीं।बिना डर के शिक्षा कैसे संभव है?बिना अनुशासन के शिक्षा का कोई परिणाम नहीं।“डर न रखने वाली मुर्गी मार्केट में अंडे नहीं देती।”आज के बच्चों का व्यवहार भी ऐसा ही हो गया है।

स्कूल में गलती करने पर सजा नहीं दी जा सकती, डांटा नहीं जा सकता, यहां तक कि गंभीरता से समझाया भी नहीं जा सकता।आज के माता-पिता चाहते हैं कि सबकुछ दोस्ताना माहौल में कहा जाए।क्या यह संभव है?क्या समाज भी ऐसा करता है?पहली गलती करने पर क्षमा करता है?

अब शिक्षकों के अधिकार नहीं बचे हैं।*यदि शिक्षक सीधे बच्चे को सुधारने की कोशिश करें, तो वह अपराध बन जाता है।**लेकिन वही बच्चा बड़ा होकर गलती करे तो उसे मृत्युदंड तक दिया जा सकता है।*माता-पिता से एक विनती:

बच्चों के व्यवहार को सुधारने में शिक्षक मुख्य भूमिका निभाते हैं।कुछ शिक्षकों की गलती के कारण सभी शिक्षकों का अपमान न करें।

95% शिक्षक केवल बच्चों के अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।यह सच है।

इसलिए आगे से हर छोटी गलती के लिए शिक्षकों पर आरोप न लगाएं।हम जब पढ़ते थे, तब कुछ शिक्षक हमें मारते थे।लेकिन हमारे माता-पिता स्कूल आकर शिक्षकों से सवाल नहीं करते थे।वे हमारे कल्याण पर ही ध्यान देते थे।पहले माता-पिता बच्चों को गुरु के महत्व को समझाने की जिम्मेदा

री उठाएं।बच्चों के भविष्य के बारे में एक बार सोचें।बच्चों की बर्बादी के 60% कारण हैं – दोस्त, मोबाइल और मीडिया।लेकिन बाकी 40% कारण माता-पिता ही हैं!अत्यधिक प्रेम,

अज्ञानता और अंधविश्वास बच्चों को नुकसान पहुंचाते हैं।आज के 70% बच्चे –

माता-पिता यदि कार या बाइक साफ करने को कहें तो नहीं करते। ओर बिना प्रयोजन की चीजें वो भी महंगी खरीदने की जिद करते हैं,

बाजार से सामान लाने के लिए तैयार नहीं होते। अब तो ऑनलाइन ही मंगा लेते हैं। खरीददारी का तजुर्बा भी नहीं है।

स्कूल का पेन या बैग सही जगह नहीं रखते।

घर के कामों में मदद नहीं करते। और टीवी में कुछ से कुछ देखते रहते हैं।

रात 10 बजे तक सोने की आदत नहीं और सुबह 6-7 बजे जागते नहीं।

गंभीर बात कहने पर पलटकर जवाब देते हैं।

डांटने पर चीजें फेंक देते हैं।

पैसे मिलने पर दोस्तों के लिए खाना, आइसक्रीम और गिफ्ट्स पर खर्च कर देते हैं। नाबालिग लड़के बाइक चलाते हैं, दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं और केस में फंस जाते हैं।

लड़कियां दैनिक कार्यों में मदद नहीं करतीं। मेहमानों के लिए पानी का गिलास तक देने का मन नहीं होता। 20 साल की उम्र में भी कुछ लड़कियों को खाना बनाना नहीं आता।

सही ढंग से कपड़े पहनना भी एक चुनौती बन गया है। फैशन, ट्रेंड और तकनीक के पीछे भाग रहे हैं।इस सबका कारण हम ही हैं।हमारा गर्व, प्रतिष्ठा और प्रभाव बच्चों को जीवन के पाठ नहीं सिखा पा रहे हैं।“कष्ट का अनुभव न करने वाला व्यक्ति जीवन के मूल्य को नहीं समझ सकता।”

आज के युवा 15 साल की उम्र में प्रेम कहानियों, धूम्रपान, शराब, जुआ, ड्रग्स और अपराध में लिप्त हो रहे हैं।दूसरे आलसी बनकर जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रखते।बच्चों का जीवन सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।यदि हम सतर्क नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी।बच्चों के भविष्य और उनके अच्छे जीवन के लिए हमें बदलना होगा।

इस संदेश को पढ़ने वाले सभी लोग इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ साझा करें।“मुझे नहीं लगता कि हर कोई बदलेगा…लेकिन मुझे भरोसा है कि कम से कम एक व्यक्ति तो बदलेगा।”

शिक्षक रहम कर सकते हैं पुलिस नहीं

“पुलिस कि ठुकाई पिटाई और बाद में कोर्ट कचहरी तक पैसे खर्च होते हैं, शिक्षक की डाट डपट पर कोई खर्चा नहीं होता “

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