नीमच मंदसौर मध्यप्रदेश

जिस कानून के तहत रिहा हुए 11 दोषी, केंद्र लगा चुका है उस पर रोक

पुष्पेंद्र सूर्यवंशी की रिपोर्ट,कबीर मिशन समाचार

केंद्र सरकार ने इस साल जून में आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में दोषी कैदियों की रिहाई के लिए राज्यों को विशेष दिशानिर्देश जारी किए थे. इस नीति के अनुसार, बलात्कार के दोषी जेल से समय से पहले रिहाई के हकदार नहीं थे. बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई के बारे में अब गुजरात सरकार की ओर से सफाई दी गई है.

गुजरात के 2002 दंगों के बिलकिस बानो मामले में सभी 11 आजीवन कैदियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा कर दिया गया. गुजरात के एक शीर्ष अधिकारी ने मंगलवार को इस मामले में केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के आरोपों पर सफाई दी है. गुजरात सरकार की ओर से कहा गया है कि जब इन आरोपियों को दोषी ठहराया गया था, तब ये रोक लागू नहीं थी. दरअसल विपक्ष ने गोधरा दंगों के समय गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा करने पर सवाल उठाते हुए इसे केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन बताया था.

केंद्र सरकार ने इस साल जून में आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में दोषी कैदियों की रिहाई के लिए राज्यों को विशेष दिशानिर्देश जारी किए थे. इस नीति के अनुसार, बलात्कार के दोषी जेल से समय से पहले रिहाई के हकदार नहीं थे. हालांकि गुजरात के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राज कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से राज्य की रेमिशन पॉलिसी के तहत इन दोषियों की जल्द रिहाई पर विचार करने के लिए कहा था.

शीर्ष अधिकारी ने न्यूज एजेंसी को बताया कि इन 11 लोगों को 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया था. दोषी ठहराए जाने के समय गुजरात एक रेमिशन पॉलिसी का पालन कर रहा था, जो 1992 में लागू हुई थी. जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा तो उसने हमें रिहाई के बारे में निर्णय लेने का निर्देश दिया. इसलिए हमने 1992 की नीति के तहत उन्हें रिहा किया क्योंकि इन आरोपियों के खिलाफ 2008 में दोष सिद्ध हुआ था

गृह विभाग के सीनियर अधिकारी ने बताया कि गुजरात ने 2014 में कैदियों के लिए एक और नई संशोधित छूट नीति अपनाई. यही नीति वर्तमान में प्रभावी है. इसमें दोषियों की श्रेणियों के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश हैं कि किसे राहत दी जा सकती है और किसे नहीं. गृह विभाग के अधिकारी के मुताबिक, चूंकि बिलकिस बानो केस के आरोपियों के खिलाफ 2008 में दोष साबित हुआ था और सुप्रीम कोर्ट ने हमें 1992 की रेमिशन पॉलिसी के तहत इस मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था, जो 2008 में प्रभावी थी, उस नीति में विशेष स्पष्टता नहीं थी कि किसे छूट दी जा सकती है और किसे नहीं. इसलिए 2014 की संशोधित नीति के तहत हमने ये फैसला लिया उन्होंने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर केंद्र द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देश बिलकिस बानो मामले में लागू नहीं होते हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को 1992 की नीति को ध्यान में रखने का निर्देश दिया था.

केंद्र सरकार ने नई योजना शुरू की

आजादी के अमृत महोत्सव में केंद्र सरकार ने हाल ही में एक योजना शुरू की है, जिसमें महिलाओं और ट्रांसजेंडर, 60 वर्ष से अधिक आयु के कैदियों और शारीरिक रूप से अक्षम पुरुषों को दोषी ठहराया जाता है और उन्होंने अपनी सजा को आधे से अधिक पूरा कर लिया है तो गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार, सजा जारी की जाएगी. इसमें गरीब कैदी भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है और जुर्माने का भुगतान नहीं करने की वजह से जेल में हैं तो उन्हें भी रिहाई मिल सकेगी.

तीन चरणों में रिहा होंगे कैदी

गृह मंत्रालय के अनुसारक पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले कैदियों को तीन चरणों में रिहा किया जाएगा. 15 अगस्त, 2022, 26 जनवरी, 2023 और 15 अगस्त, 2023. मंत्रालय ने कहा था कि यह योजना मौत या उम्रकैद की सजा पाने वाले और बलात्कार, आतंकवाद के आरोप, दहेज हत्या और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में दोषी ठहराए गए कैदियों पर लागू नहीं होती है.

18 साल से ज्यादा काट ली सजा

गोधरा के बिलकिस बानो मामले मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा. इन दोषियों ने 18 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद राधेश्याम शाही ने धारा 432 और 433 के तहत सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

हाई कोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली ‘उपयुक्त सरकार’ महाराष्ट्र है, न कि गुजरात. राधेश्याम शाही ने तब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था.

ये था पूरा मामला

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे।।

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