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राजगढ़

शहीद राजा शंकर शाह और शहीद कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर पचोर में आदिवासी कांग्रेस ने किया याद

Gopal verma
Last updated: 2022/09/18 at 12:26 PM
Gopal verma
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9 Min Read
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कबीर मिशन समाचार पचोर/राजगढ़,

आज राजगढ़ जिले के पचोर नगर में म.प्र. आदिवासी कांग्रेस कमिटी राजगढ़ द्वारा सन 1857 की क्रांती में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर आदिवासी राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस मना कर उनको याद किया गया l जिसमे की देवेंद्र सिंह भिलाला म.प्र. आदिवासी कांग्रेस जिला अध्यक्ष राजगढ़, जिला कार्यकारी अध्यक्ष विष्णु प्रसाद भिलाला, सारंगपुर ब्लॉक अध्यक्ष उमेश मैड़ा, नरसिंहगढ़ ब्लॉक अध्यक्ष कुमेर सिंह भिलाला, पचोर ब्लॉक सचिव समंदर सिंह भिलाला (पृथ्वीराज इलेक्ट्रिकल्स) की उपस्थिति मे बलिदान दिवस मान्या l जिला अध्यक्ष एवं कार्यकारी अध्यक्ष ने वीर गाथा को याद कर बताया की- गढ़ा मंडला और जबलपुर मध्यप्रदेश के गोंड राजवंश के प्रतापी राजा संग्राम शाह के वंशज थे, इस राजवंश की कई पीढ़ियों ने देश और आत्मसम्मान के लिये आपने प्राण न्योछावर किये थे l

राजा संग्राम शाह के बड़े पुत्र दलपत शाह थे जिनकी पत्नी रानी दुर्गावती और पुत्र वीरनारायण ने अपनी मात्रभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए अकबर की सेना से युद्ध कर अपना बलिदान दिया । इसके पश्चात गढ़ा मंडला अकबर के अधीन हो गया ।11 वीं पीढ़ी में अमर शहीद शंकर शाह ने जन्म लिया राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 की क्रांती में अपने प्राण अर्पित कर इस वंश से पुनः देश के लिये अपना बलिदान दिया ।भारत में 1857 की क्रांती लार्ड डलहोजी की भारतीय राज्यों को हड़पने के लिये एक नीति बनाई थी जिसे डोक्टराइन ऑफ़ लेप्स (Doctrine of Laps ) कहा जाता था इसमें जिस किसी राजा का आनुवंशिक उत्तराधिकारी नहीं होता था उसे अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया जाता था | इस नीति के तहत झाँसी ,नागपुर,अवध ,कानपुर, मंडला के रामगढ को अंग्रेज अपने अधीन करना करना चाहते थे । इसके अतिरिक्त गाय और सुअर के चर्बी वाले कारतूस भी क्रांती का मुख्य कारण बने । इसके पूर्व 1842 के आदिवासी आन्दोलन को अंग्रेज बर्बरता पूर्वक कुचल चुके थे । राजा रघुनाथ शाह इन सभी घटनाओं से वेहद आहत थे और अंग्रेजों को इस देश से भगाना चाहते थे ।वीर शंकर शाह-रघुनाथ शाह और 1857 की क्रांती

जबलपुर मध्यप्रदेश अंग्रेजों में 52 वीं रेजिमेंट तैनात थी जिसके कई सैनिक अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का मन बना चुके थे । इस समय तक क्रांती देश के अधिकांश भागों में फ़ैल चुकी थी । मध्य भारत में राजा शंकर शाह को जिनकी उम्र 70 वर्ष थी , क्रांती का नेता चुना गया । राजा शंकर शाह जबलपुर की अंग्रेज छावनी में तैनात भारतीय सैनिकों की सहायता से छावनी पर आक्रमण कर अंग्रजों को भगाना चाहते थे । किन्तु राजा शंकर शाह के महल के कुछ लोग महल की गोपनीय सूचनायें अंगेजों तक पंहुचा रहे थे । अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने अपने गुप्तचरों को साधू के भेष में गढ़ पुरवा भेजा । 14 सितम्बर 1857 की रात्रि अंग्रजों ने लगभग 20 घुड़सवार और 40 पैदल सिपाहियों के सांथ राजा की हवेली पर धावा बोल दिया और राजा शंकर शाह उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह और 13 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया ।वीर राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह का बलिदान देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया । राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह बंदी बनाकर जबलपुर हाई कोर्ट और एल्गिन हॉस्पिटल के पास रखा गया वर्तमान में इस स्थान पर वन विभाग का कार्यालय है । बतलाया जाता है की राजा रघुनाथ शाह के सामने कुछ शर्तें राखी गई जिनमे अंग्रेजों से संधि करना , अपना धर्म त्याग कर इसाई धर्म अपनाना प्रमुख थीं पर राजा ने इन्हें मानने से इंकार कर दिया । अंग्रेजों को डर था की अगर राजा ज्यादा दिन कैद में रहे तो छावनी के सैनिक और जनता विद्रोह कर देगी ।अंग्रेजों ने तुरंत ही सैनिक अदालत का गठन किया जिसमें डिप्टी कमिश्नर और दो अन्य अंग्रेज अधिकारीयों का सैनिक आयोग बनाने का ढोंग किया गया ।

इसी बीच 52 वीं रेजिमेंट के सैनकों ने राजा और राजकुमार को जेल से मुक्त करने का प्रयत्न भी किया जो सफल नहीं हो सका । अदालत ने राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को देशद्रोह की कवितायें लिखने , लोगों को भड़काने और देशद्रोह के आरोप में मृत्यु दंड की सजा सुनाई । राजा और राजकुमार को गिरफ्तार करने के मात्र कुछ ही दिन के अन्दर ही 18 सितम्बर 1857 को जबलपुर एजेंसी हाउस के सामने फांसी परेड हुई । दोनों को अहाते में लाया गया । दोनों को देखने के लिये विशाल जन सैलाव उमड़ रहा था जो आक्रोशित था ।

राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के चहरों पर कोई डर नहीं था दोनों के चहरे शांत और दृढ़ थे ।दोनों की हाथकडियाँ खोल दी गईं और दोनों को तोपों के मुंह से बाँध दिया गया । तोप से बांधते समय राजा और राजकुमार दोनो के सामने शर्त रखी यदि राजा माफी मांगते हैं तो पुत्र को आजाद कर देगें ओर पुत्र माफी मांगते हैं तो पिता को आजाद कर देगें । किन्तु दोनों ने माफी मांगने से मना कर दिया। दोनों के तेजमय चेहरे के सांथ गर्व भाव से चलकर तोपों के सामने आये और दोनों ने सीना तानकर अपनी देवी की प्रार्थना की । तोप के चलते ही राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के शरीर छत-विक्षत हो गये | उनके हाँथ और पैर तोप के पास गिरे क्यूंकि वो तोप से बंधे थे शरीर के भाग लगभग 50 फीट तक विखर गये । चेहरे को छति नहीं पहुंची उनकी गरिमा अक्षुण्य रही । कल्पना नहीं की जा सकती उस समय इनकी शहादत इतिहास में ऐसे किसी की कोई शहादत नहीं हुई जो पितापुत्र को एक साथ तोफ से उडाया गया हो।राजा शंकर शाह की पत्नी रानी फूलकुंवर बाई ने दोनों के शरीर को एकत्र कर अंतिम क्रिया कर्म करवाया और अंग्रजों से बदला लेने का प्रण लिया ।

अंग्रेजों का इस तरह सरेआम राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को तोप से बांधकर मृत्युदंड देने का उद्देश्य लोगों और राजाओं में अंग्रेजों का डर पैदा करना था । परन्तु अंग्रेजों के इस कदम से क्रांती और ज्यादा भड़क गई । लोगों द्वारा दूसरे ही दिन इस स्थान की पूजा की जाने लगी । 52वीं रेजिमेंट के सैनिकों में विद्रोह फ़ैल गया और इनकी टुकड़ी पाटन की ओर कूच कर गई । विद्रोह की आग मंडला, दमोह , नरसिंहपुर ,सिवनी और रामगढ तक फ़ैल गई । जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ सशत्र क्रांती फ़ैल गई । रानी फूलकुंवर बाई ने मंडला आकर क्रांती को जारी रखा और अंततः आत्मोत्सर्ग किया । मंडला में खारी की लड़ाई में रानी अवन्ती बाई ने अंग्रेजों को हराकर सम्पूर्ण मंडला को अंग्रेज मुक्त करा दिया । परन्तु अंग्रेज धीरे-धीरे अपनी शक्ति एकत्र कर क्रांती को दबाने में सफल रहे । सम्पूर्ण क्रांती में इस क्षेत्र से राजा शंकर शाह,कुंवर रघुनाथ शाह , रानी अवन्ती बाई जैसे कई वीर-वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया ।वीर रघुनाथ शाह-शंकर शाह स्मारक जबलपुर में हाई कोर्ट के पास अमर शहीद वीर राजा रघुनाथ शाह शंकर शाह को जिस स्थान पर तोपों से बाँध कर मृत्यु दण्ड दिया गया था उसी स्थान पर एक स्मारक बनाया गया है जिसमें दोनों पिता पुत्र की प्रतिमायें लगवाई गई हैं और प्रतिवर्ष 18 सितम्बर को राजाशंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस मनाया जाता है | आदिवासी राजा शंकर शाह एव रघुनाथ शाह बलिदान दिवस पर उन्हें शत शत नमन l

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