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Kabir Mission News > Blog > लेख > बदली हुई न्याय की देवी से क्या सचमुच बदलेंगे हालात?-
लेख

बदली हुई न्याय की देवी से क्या सचमुच बदलेंगे हालात?-

Shubham bhilala
Last updated: 2024/12/22 at 5:02 PM
Shubham bhilala
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7 Min Read
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अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)देश में आजकल

बदलाव की लहर चल रही है। अब तक तो हमने शहरों के नाम बदलते देखे थे लेकिन हाल ही में न्याय की देवी की मूर्ति ही बदल दी गई। इस नए बदलाव में अब न्याय की देवी का स्वरुप बदल कर उसका भारतीयकरण कर दिया गया है। जहाँ पुरानी न्याय की देवी

आँखों पर पट्टी और हाथ में तराजू और तलवार लिए दिखाई देती थी, वहीं अब भारतीय परिवेश में आ गई है। आँखों से पट्टी हट चुकी है। हाथ में तराजू तो है, लेकिन अब तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह बदलाव अच्छा है, लेकिन क्या न्याय की देवी के बदल जाने से देश

की न्याय व्यवस्था में भी बदलाव आ जाएगा..?केवल प्रतीक स्वरुप को बदल देने से क्या हालत सुधार जाएँगे? आज भी देश की न्याय व्यवस्था में कई कमियाँ हैं, जिनके कारण लाखों लोग न्याय की राह देख रहे हैं।

और इसमें सबसे बड़ी समस्या है न्यायालयों के लंबित केस। आँकड़ों की मानें, तो 2024 में सभी प्रकार और सभी स्तरों पर लंबित मामलों की कुल संख्या 5.1 करोड़ से अधिक रही, जिसमें जिला और उच्च न्यायालयों में 30 से अधिक वर्षों से लंबित 1,80,000 से

अधिक अदालती मामले शामिल हैं। नीति आयोग ने 2018 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अदालतों में इसी तरह धीमी गति से मामले निपटते रहे, तो सभी लंबित मुकदमों के निपटारे में 324 साल लग जाएँगे। यह स्थिति तब है, जब 6 साल पहले अदालतों में

लंबित मामले आज की तुलना में कम थे। इन लंबित मामलों के चलते पीड़ित और आरोपी दोनों को न्याय की राह देखते बैठे हैं। समय चाहे बदल गया हो, लेकिन देश में आज भी पुराने नियमों के आधार पर ही सुनवाई चल रही है, जिससे यह नियम अब न्याय व्यवस्था के लिए ही

गले की हड्डी बन गए हैं। सुनवाई के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है, जिससे यह मामले सालो-साल चलते रहते हैं। यदि सच में न्याय व्यवस्था में बदलाव करना है, तो ऐसे नियम जो आज के समय के अनुसार उचित नहीं है, उन्हें बदलने या हटाने पर विचार किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए, सीआरपीसी का एक नियम आरोपी या गवाह की अनुपस्थिति में सुनवाई को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं देता है। एनजेडीजी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार केवल इस नियम के कारण 60% से अधिक आपराधिक मामले कोर्ट में लंबित हैं।

इन लंबित मामलों और अव्यवस्था के कारण लाखों विचाराधीन कैदी न्याय की आस लगाए बैठे हैं। इनमें से ऐसे कई मामले हैं, जिनमे निर्दोष भी अपनी बेगुनाही की सज़ा काट रहे हैं। अप्रैल 2022 में बिहार राज्य की एक अदालत ने 28 साल जेल में बिताने के बाद

, सबूतों के अभाव में, हत्या के आरोप में कैद एक कैदी को बरी कर दिया। उसे 28 साल की उम्र में गिरफ्तार किया गया था और 58 साल की उम्र में रिहा किया गया। इस मामले में अंत तक हत्या के असल आरोपी का पता नहीं लग सका।

इस तरह न पीड़ित परिवार को न्याय मिल सका, और तो और एक व्यक्ति के जीवन के 30 साल बर्बाद हो गए। इस तरह के न जाने कितने ही मामले मिल जाएँगे, जहाँ न्याय व्यवस्था की ढील के कारण अन्याय हुआ है। यदि सच में न्याय व्यवस्था को दुरुस्त करना

है, तो केवल मूर्ति में बदलाव से काम नहीं चलेगा। जरुरत है जमीनी स्तर पर बड़े सुधारों की। हमें पुराने और अप्रासंगिक नियमों में बदलाव करना होगा और मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया को तेज़ करना होगा

, साथ ही विचाराधीन कैदियों के लिए नए नियम लाने होंगे, जिससे निर्दोष लोगों के साथ अन्याय न हो। पुराने ढर्रे से चल रही सुनवाई को आज के दौर के अनुसार बनाने के लिए तकनीकी समाधान अपनाने की जरूरत है, जैसे ऑनलाइन सुनवाई

, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित केस मैनेजमेंट सिस्टम और फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स का गठन। इसके अलावा, अदालती प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने और न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने पर भी ध्यान देने की जरुरत है।

आज भी हजारों मामले न्यायाधीशों की कमी के चलते भी लंबित पड़े हैं। आपराधिक और दीवानी विवादों के जितने मुकदमे अदालतों में पहुँच रहे हैं, उस तुलना में उनकी सुनवाई करने और फैसला देने वालों जजों की संख्या बहुत कम है। आज भारत में हर 10 लाख की आबादी पर औसतन 21 जज काम कर रहे हैं।

न्याय की देवी का स्वरुप बदलना प्रतीकात्मक रूप से अच्छा है, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब न्यायालयों में फैसलों की गति तेज़ होगी और एक आम नागरिक को यह भरोसा हो कि उसे समय पर न्याय मिलेगा।

यदि हम वास्तव में एक बेहतर न्याय व्यवस्था की उम्मीद रखते हैं, तो हमें बदलाव के लिए सिर्फ प्रतीकों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि

इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा। न्याय का असली अर्थ है समय पर निष्पक्ष और सटीक फैसले देना। यही असल न्याय है और यही असल बदलाव भी..।

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