कबीर मिशन समाचार पत्र, सुरेश मैहर संवाददाता गरोठ
गरोठ। भागवत कथा का भव्य कथा मे बताया की जिसमे मनुष्य के अंदर थोडा सा बल, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य, और पद मिलने से मानव अहंकारी बन जाता है और हर समय अपना ही गुणगान करता रहता है। उसे अपने से श्रेष्ठ कोई नहीं दिखता, इन्हीं कारणों से उसका पतन होता है। इसलिए कभी अपने बल और धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। जीवन मे यज्ञोपवीत का अत्यंत महत्व एवं महिमा है, जनेऊ धारण करने से मनुष्य को आध्यात्मिक ऊर्जा,उत्तम स्वास्थ्य एवं स्मरण शक्ति की प्राप्ति होती है।
उक्त उद्गार पं.अमन बैरागी द्वारा श्री रामकुंड, गुराड़िया नरसिह में स्व.श्रीमती गीता देवी काला की स्मृति में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस समुद्र मंथन की कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि प्रथम निकला विष अंत मे अमृत, कार्य के प्रारम्भ में विघ्न या विरोध और अंत मे श्रेय मिलता हैमन्दराचल पर्वत को मथनी ओर वासुकी नाग को रस्सी बनाकर देव और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन किया गया।
जिसमे कालकूट, ऐरावत, कामधेनु, उच्चैश्रवा, कोसुतुभ्मणि, कल्पवृक्ष, रंभा नामक अप्सरा, लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, शारंग धनुष, शंख, गंधर्व और अमृत कुंभ निकले। अमृत का प्रकट होना, मोहिनी अवतार, अमृत वितरण एवं देव-दानव की कथा उल्लेख किया।
दान का अहंकार न हो -सप्तम मन्वन्तर के वामन भगवान की कथा,राजा बलि की स्वर्ग पर विजय। भगवान वामन के द्वारा बलि से भिक्षा में तीन पग पृथ्वी मांगना एव भगवान वामन का विराट रूपधारण कर दो ही पग से स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया, तीसरे पग धरने के लिए बलि ने कहाँ मेरे मस्तक पर ही तीसरा पग रखे और दान देने के अंहकार को समाप्त करे।
कथा के मध्य भजनों की प्रस्तुतियों से उपस्थिति श्रद्धालुजनों का मन मोह लिया। कथा के उपरांत आरती एवं प्रसाद वितरण किया गया।चित्र धर्मप्रेमी जन भागवत कथा का श्रवण करते हुए।