बिहार। प्रदीप कुमार नायक। स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
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होली को नव संवत्सर का शुभ आगमन सहित बसंत आगमन के अवसर पर मनाये जाने वाले यज्ञ कहाँ जाता है।जिसे मधुबनी जिले के जयनगर में माँ अन्नपूर्णा कम्युनिटी किचन कम्युनिटी की ओर से बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ पटना गद्दी रोड स्थित राउत निवास के सामने कार्यालय के प्रांगण में होली मिलन समारोह मनाया गया। वहीं इस समारोह की अध्यक्षता माँ अन्नपूर्णा कम्युनिटी किचन के संरक्षक प्रवीर महासेठ द्वारा किया गया जबकि मंच संचालन राजेश गुप्ता ने किया।इस मौके पर अतिथियों में उद्धव कुंवर, प्रीतम बैरोलिआ, अनिल बैरोलिआ, अनिल जायसवाल, अमित मांझी, मनोज सिंह, उपेन्द्र नायक, विजय अग्रवाल एवं अन्य वक्ताओं को मंतव्य रखने का मौका मिला।
सभी वक्ताओं ने जमकर माँ अन्नपूर्णा कम्युनिटी किचन की सराहना की, ओर कहाँ कि इस संगठन ने जो कार्य किया है, वो निःसंदेह पुनीत ओर महान है। हम सभी को तन-मन-धन से इसमें सहयोग करना चाहिए।मौके पर संस्था के मुख्य संयोजक अमित कुमार राउत ने कहा कि इस संगठन ने जो नर-नारायण सेवा की है, वो काबिले तारीफ है। जब से कोरोना काल आया है, तब से हर रोज भूखों ओर जरूरतमंद लोगों का पेट भरकर इस संगठन ने निश्चित रूप से रोजाना सेवा जारी रख मानवता ओर जीवटता की मिसाल दी है। हम यहां के समाज के लोगों से अपील करते हैं कि इनको तन-मन-धन से सहयोग कीजिये, ताकि अनवरत ये सेवादारी जारी रहे। इस सेवा के लिए इन सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूँ, क्योंकि ये जो कार्य कर रहे हैं वो निश्चित रूप से महान और नर-नारायण सेवा है।
इसके उपरांत सभी आगंतुकों और अतिथियों ने मिलकर एक-दूसरे को रंग,अबीर और गुलाल लगाकर गले लगाया।इसके बाद माँ अन्नपूर्णा कम्युनिटी किचन के तरफ से होली मिलन समारोह पर आये सभी आगंतुकों और अतिथियों को अल्पाहार दिया गया, जिसमें मख्खन पुआ, चुरा एवं चना का छोला था। सभी ने बड़े आनंद से होली खेली ओर अल्पाहार का लुत्फ उठाया।
इस मौके पर माँ अन्नपूर्णा कम्युनिटी किचन के अमित अमन, राहुल सूरी, विवेक सूरी, गौरव शर्मा, अंकित महतो, रमेश कुमार, बिट्टू कुमार, मिथिलेश महतो, संतोष कुमार शर्मा, सुमित कुमार एवं अन्य कई सदस्य मौजूद रहे।क्यों मनाई जाती है होली :‘रंगों का त्योहार’ के रूप में जाना जाता है, फाल्गुन (मार्च) के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। भारत में कई अन्य त्योहारों की तरह, होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यपु की एक पौराणिक कथा है, जिसके साथ होली जुड़ी हुई है।
हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत में एक राजा था जो एक दानव की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहता था, जिसे भगवान विष्णु ने मार दिया था। इसलिए सत्ता पाने के लिए राजा ने वर्षों तक प्रार्थना की। अंत में उन्हें एक वरदान दिया गया, लेकिन इसके साथ ही हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानने लगा और अपने लोगों से उसे भगवान की तरह पूजने को कहा।क्रूर राजा के पास प्रहलाद नाम का एक जवान बेटा था, जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। प्रहलाद ने कभी अपने पिता के आदेश का पालन नहीं किया और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा।
राजा इतना कठोर था कि उसने अपने ही बेटे को मारने का फैसला किया, क्योंकि उसने उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया था।किस प्रकार मनाया जाता है होली का त्योहार :हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से पूछा, जो आग से प्रतिरक्षित थी, उसकी गोद में प्रहलाद के साथ अग्नि की एक चिता पर बैठना था। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी। लेकिन उनकी योजना प्रहलाद के रूप में नहीं चली, जो भगवान विष्णु के नाम का पाठ कर रहे थे, सुरक्षित थे, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई।
इसके बाद, भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया।यह भगवान कृष्ण (भगवान विष्णु के पुनर्जन्म) की अवधि के लिए है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों के साथ होली मनाते थे और इसलिए वे लोकप्रिय थे। वह वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों के साथ होली खेलते थे। गाँव भर में प्रैंक किया और इस तरह इसे एक सामुदायिक कार्यक्रम बना दिया।
यही वजह है कि आज तक वृंदावन में होली का उत्सव बेजोड़ है।होली एक वसंत त्योहार है जो सर्दियों को अलविदा कहता है। कुछ हिस्सों में उत्सव वसंत फसल के साथ भी जुड़े हुए हैं। नई फसल से भरे हुए अपने भंडार को देखने के बाद किसान होली को अपनी खुशी के एक हिस्से के रूप में मनाते हैं। इस वजह से, होली को ‘वसंत महोत्सव’ और ‘काम महोत्सव’ के रूप में भी जाना जाता है।होली सबसे पुराने हिंदू त्योहारों में से एक है और यह संभवत: ईसा के जन्म से कई शताब्दियों पहले शुरू हुआ था। इसके आधार पर, होली का उल्लेख प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है, जैसे कि जैमिनी का पुरवामीमांसा-सूत्र और कथक-ग्राम-सूत्र।
यहां तक कि प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर होली की मूर्तियां हैं। इनमें से एक विजयनगर की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का एक मंदिर है। मंदिर में होली के कई दृश्य हैं, जिनकी दीवारों पर राजकुमारों और राजकुमारियों को दिखाया गया है और उनके नौकरानियों के साथ राजमिस्त्री भी हैं, जो राजमहल में पानी के लिए चिचड़ी रखते हैं।पहले, होली के रंगों को ’टेसू’ या ’पलाश’ के पेड़ से बनाया जाता था और गुलाल के रूप में जाना जाता था। रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे हुआ करते थे क्योंकि इन्हें बनाने के लिए किसी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन त्योहारों की सभी परिभाषाओं के बीच, समय के साथ रंगों की परिभाषा बदल गई है।
आज लोग रसायनों से बने कठोर रंगों का उपयोग करने लगे हैं। होली खेलने के लिए भी तेज रंगों का उपयोग किया जाता है, जो खराब हैं और यही कारण है कि बहुत से लोग इस त्योहार को मनाने से बचते हैं। हमें इस पुराने त्योहार का आनंद उत्सव की सच्ची भावना के साथ लेना चाहिए।साथ ही, होली एक दिन का त्योहार नहीं है जैसा कि भारत के अधिकांश राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन यह तीन दिनों तक मनाया जाता है।
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े प्रदीप कुमार नायक कहते हैं कि इस पर्व की पवित्रता तभी बनी रह सकती हैं, जब हम सभी अपने दिलों से ईष्या व द्वेष-भाव को छोड़ एक दूसरे के साथ प्रेम-प्यार से रहे और सामुदायिकता को बढ़ावा दे।
तभी हम सभी को सुरक्षित व स्वास्थ्य समाज मिलेगा। अतः होली के इस पर्व पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि समाज में फैली हुई सामाजिक बुराइयां जैसे साम्प्रदायिकता या ऊँच-नीच को दूर भगाएंगे और इस रंगोत्सव को कभी फीका नहीं होने देंगे।