22 प्रतिशत में आगे बढ़ना सही है या 8 प्रतिशत में फैसला आपके स्वयं करें।
गरीब दलितों की चिंता है तो प्राइवेट सेक्टर में इनको आरक्षण दे सरकार।
लेख। रामेश्वर मालवीय। कबीर मिशन समाचार। दुनिया में इंसान का अस्तित्व हजारों सालों से आया है और पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों की अलग अलग धारणाएं हैं। हमारे भारत में तो पुरा विश्व समाहित है क्योंकि जो व्यवस्था पुरे विश्व क्षेत्र के अनुसार बनी है भारत में सभी व्यवस्थाएं भी पुरे देश में कहीं न कहीं देखने को मिलती हैं। आजादी के पहले की स्थिति को आज के समय में कल्पना करके इतिहासकारों पर निर्भर करती है। आजादी के चार दशकों को भी देखें तो भारत में जाति व्यवस्था चरम पर रही है और देश में धर्म जाति भाषा क्षेत्र आदि के नाम पर हमेशा बंटवारे ही होते आए हैं। बंटवारे को हम अपने घर में पिता की संपत्ति को लेकर बंटवारे से भी अच्छे से समझ सकते हैं।
आप उस साधारण सीढ़ी के खेल को क्यों नहीं समझते हैं कि जो सीढ़ी पर पहले चढ़ता है वहीं ऊपर जाएगा और उस सीढ़ी का बंटवारा नहीं कर सकते न ही एक सीढ़ी पर एक साथ दो तीन लोग आगे नहीं बढ़ सकते संभवतः आपसे में लड़कर गिर सकतें हैं और जो समय ऊपर चढ़ने का था उसको भी गंवा दिया जबकि तीनों एक के बाद एक ऊपर आ सकतें थें और आपको ऊपर वाले का सहयोग भी मिलने कि संभावना रहती है।
आज आरक्षण के बारे में आपको अधिक बताना उचित नहीं है क्योंकि सोशल मीडिया पर इसके बारे में कई तर्क कुतर्क टीका टिप्पणी देखने को मिलती हैं शर्म की बात यहां है बुद्धिजीवियों द्वारा भी आरक्षण पर कुतर्क टीका टिप्पणी करते हैं। आज वे अपने ज्ञान का ऐसा प्रदर्शन करते हैं कि जो वहीं बोलते हैं और लिखते हैं मानो जो वो बोल लिख रहे हैं वहीं सही है और हमारे भोले भाले लोग इनकी चाल को समझ नहीं पाते हैं। उनकी बातों का समर्थन करने लगते हैं। मैं इस विषय पर यहां आशय है कि यदि इन लोगों की मंशा वाकय आपको ऊपर उठाने और आर्थिक रूप से मजबूत करने की होती तो 75 सालों से जो आरक्षण दिया जा रहा है क्या उसको इन्होंने एससी एसटी को पुरा दिया है और यदि इनको महादलित की इतनी चिंता है तो अलग से कोई प्रावधान बनाना चाहीए। आरक्षण वर्ग आधारित है फिर जाति में बंटवारा करना कहा तक उचित है। 21 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध में जो भारत बंद आंदोलन किया इसमें यहां देखने को मिला है कि दलित आंदोलन कमजोर कर दिया है। क्योंकि आज जो संख्या दलित आदिवासी की है वहां किसी के पास नहीं है और जनबल से ही यहां वर्ग अपने अधिकार लेता आया है।
शिक्षा, रोजगार, भेदभाव और बंटवारा
इन को भी समझना बहुत जरूरी होता है क्योंकि आज सरकारी शिक्षा का बंटाधार है और प्राइवेट शिक्षा बहुत महंगी है। सरकारी रोजगार तो ईद का चांद हो गया है और भेदभाव तो यथावत ही रहेगा चाहे पुरा आरक्षण ही गरीब दलित आदिवासी को ही क्यों न दे दिया जाए और मान भी लो यदि की आपके आरक्षण का क्रिमीलीयर कर भी दिया तो कितनी संभावना है और कब तक इसके आर्थिक और सामाजिक स्तर में परिवर्तन हो जाएगा लगभग की न कोई सरकारी रोजगार रहेगा न शिक्षा?
यदि बंटवारा करते हैं तो गरीब दलित आदिवासी को 8 प्रतिशत का हिस्सा आता है और यदि बंटवारा नहीं होता है तो 22 प्रतिशत में आते हैं केवल एक प्रतिशत के लिए कुछ जातियां इसका समर्थन कर रही है। जो इस बंटवारे का गणित समझ नहीं पा रहे हैं या समझना नहीं चाहते। यहां आरक्षण की आड़ में ये आपका स्तर उठाना नहीं चाहते बल्कि आपकी ताक़त और आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म करना चाहते हैं? मान लीजिए आज यदि देश की सत्ता व्यवस्था आपके आरक्षण पर प्रहार करती है तो आप सभी एक साथ होकर इसका विरोध करेंगे। और यदि बंटवारा हो गया तो भविष्य में सत्ता व्यवस्था किसी का भी आरक्षण को समाप्त करने में सक्षम रहेगा और बाकि आरक्षण लाभार्थी समाज चुपचाप देखती रहेगी और क्योंकि फिर वो आरक्षण आपका नहीं उनका है और विरोध करने वाले भी जनबल के आभाव में सक्षम नहीं रहेगी की व्यवस्था पर दबाव बना सकें।
इस उदाहरण से अच्छे से समझते इस आरक्षण के बटवारे को।
एक गांव में एक किसान की तीन संतान थी और किसान के पास 100 बिघा जमीन थी। जिसमें पिता किसान सहित तीनों भाई काम करके कमाई करते थे। जिससे घर में बड़ी आमदनी आती थी जिससे वहां गांव में कोई भी बड़ा काम करने में सक्षम था और अपने संसाधनों को जुटाने व किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम था। लेकिन इसमें एक भाई थोड़ा कमजोर था लेकिन साथ में लेकर उसे भी आगे रखते थे। इस बात की गांव में बहुत चर्चा होती थी जिससे गांव में कुछ लोगों को ईर्ष्या होती थी उन्होंने बड़ी योजना बनाकर तीनों को अलग-अलग कर दिया और कमजोर बेटे को भी पिता के हिस्से सम्मिलित करवा दिया। जमीन का बंटवारा हो गया और सभी मेहनत करते थे और आमदनी कमाते थे लेकिन बंटवारे में पहले के संसाधनों का हिस्सा हो गया था तो अन्य को और भी संसाधन लेना जरूरी था लेकिन कोई भी एक भाई इतना सक्षम नहीं था। साथ ही गांव में जमीन बिकती थी तो तीनों भाईयों में से कोई भी नहीं ले सकता था। कुछ सालों बाद भाईयों की स्थिति में परिवर्तन हुआ और कोई भी एक दुसरे का सहयोग नहीं करते थे। पिता (किसान) चले जाने के बाद कमजोर बेटे की बरगलाया जाता है और धीरे-धीरे उसकी जमीन बिकवा देते हैं फिर अन्य दो भाईयों को विवादों में फंसाकर आर्थिक रूप से तोड़ देते हैं और उस किसान परिवार की संपत्ति, ताकत और उन्नति का मार्ग बंद कर देते हैं। फिर वही शातिर लोग गांव पर राज करते हैं।
आज अनुसूचित जाति जनजाति को 22 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है और यहां सभी को समान रूप से 22 प्रतिशत मिलता है लेकिन देश सत्ता व्यवस्था के कारण पुरा लाभ नहीं मिल पाता है अन्यथा क्रिमीलीयर की जरूरत ही नहीं पड़ती। यदि इस 22 प्रतिशत का हिस्सा होता है तो जिनके लिए ये आदेश हुआ है उन्हें केवल 8 प्रतिशत में सीमित कर दिया जाएगा। अब वे खुद सोचे कि वे 8 प्रतिशत में सीमित रहना चाहते हैं या 22 प्रतिशत में समान रूप से आगे बढ़ेंगे। केवल एक प्रतिशत के लिए आप अपनी ताकत को कमजोर कर रहे हैं और सामंतवादी यही चाते। क्योंकि आज वे आपकी एकजुटता से भयभीत हैं और इसी एकता को तोड़ना चाहते हैं और क्या भरोसा है कि वो एक प्रतिशत से आपके जीवन में कोई बदलाव करेंगे जो 22 प्रतिशत से नहीं कर पाए। सत्ता और स्वार्थ के चक्कर में अपनी ताकत को कम न करें 100 प्रतिशत के बारे में सोचें।
धन्यवाद
लेखक – रामेश्वर मालवीय
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर,आरटीआई कार्यकर्ता, कबीर मिशन साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रबंधन संपादक है।
नोट – लेख में लेखक के निजी विचार हैं और बिना अनुमति के प्रकाशन न करें।
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