सारंगपुर। बिना बिल के बैच रहे हैं दुकानदार खाद, जिम्मेदार विभाग क्यों है नदारद, पर्ची पर बन रहे बिल?राजगढ़। किसी की जरूरत और मजबूरी का फायदा हर कोई उठाता है लेकिन कुछ लोग किसानों की जरूरत का फायदा उठाएं यहां ठीक नहीं है? क्योंकि देश में भोजन की व्यवस्था इन्हीं किसानों के कंधे पर टिकी हुई है।
जब से खाद की कमी होने की खबरें सामने आती हैं तो कुछ शातिर लोग सक्रिय हो जाते हैं और सरकारी खाद की बोरियों को प्रिंट करवाकर अंदर कुछ भी भरकर किसान को थमा देते हैं। साथ ही किसान भी इतना लापरवाह हो जाता है कि बिल तक नहीं मांगता और जो किसान बिल मांगता है उसे एक पर्ची लिखकर दे देते हैं।
जो कोई किसान पक्का बिल मांगता है तो कहते हैं खाद लेना है तो लो वरना रहने दो, खाद चाहिए या बिल? बस फिर क्या था किसान को तो खाद चाहिए वहां बिल का क्या करेगा? और वहां बिना बिल के खाद ले जाता है। इसी का फायदा दुकानदार और कुछ दलाल उठाते हैं। सरकारी गोदामों से भी दलाली करते हैं? क्योंकि पता खाद नहीं है और कब आएगा कितना आएगा किसी को पता नहीं? अब खाद सोसायटी में पर्याप्त मात्रा क्यों नहीं आ रहा यहां भी किसी को पता नहीं बस जो अधिकारी बोल दे वही सही। जब बस कुछ पता है फिर भी खाद विभाग कौन सी नींद सो रहा है?सोसायटी में खाद नहीं, दुकान में खाद नहीं फिर खाद कहा से आ रहा है और कौन बेच रहा है और जो बेच रहा वहां क्या किसान को पक्का बिल दे रहा है।
जिसके सबुत दुकानों में लगे कैमरे बता देंगे। खबर के बाद हो सकता है विभाग जाग भी जाएं तो क्या होगा? जांच पड़ताल होगी और जब तक होगी किसान खाद को मिट्टी में मिला देगा। सीजन निकल जाएगा और फिर सब कुछ भुला दिया जाएगा अब बस दो लोग याद रखेंगे एक दुकानदार और दुसरा पत्रकार क्योंकि बाकी तो एक सिस्टम बन चुका है।
आजकल पत्रकार भी किसी को भी खरी खोटी लिखने में डरता है क्योंकि उसके इस कर्म का पता नहीं क्या फल मिले। फिर भी हम पत्रकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते हैं बस यही बात सरकारी विभागों में एक जगह अपना पिछवाड़ा टिकाएं बैठे अधिकारी को समझना चाहिए कि मुझे बस अपना काम जिम्मेदारी करना है। बाकी देखते क्या होता है और किसान भाईयों को भी अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए और सही ग़लत की पहचान करके ही खाद ख़रीदे चाहे वहां सरकारी सोसायटी से ले रहे हो या किसी दुकान से खरीद रहे हो। जय जवान जय किसान