जीवन परिचय – पिताश्री दामोदर दास और माताश्री मूलादेवी जी के तीसरे पुत्र नर्मदादास जी आप बाल्यकाल से ही माता-पिता के लाड़ले थे आपका जन्म 03 अक्टूबर 1918 को मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर में ग्राम बोहानी की धरती पर अत्यंत गरीब परिवार में हुआ। 11 वर्ष की आयु में पहली कक्षा प्राथमिक शाला बोहानी में दाखिल हुए। 6वीं कक्षा बोहानी से 05 कि.मी. दूर स्थित प्राथमिक शाला कोड़िया से उत्तीर्ण की। 13 वर्ष की आयु में आपका विवाह ग्राम चिर्रिया निवासी श्री बांकेलाल खेमरिया की सुपुत्री ललिता देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सदियों से ब्राह्मणवाद द्वारा लादी गई गुलामी और गरीबी के साथ सन् 1939 में आपके पिता का निधन हो जाने के कारण शिक्षा 6वीं तक पा सके। विद्यार्थी जीवन में ही आजादी की लड़ाई में भूमिगत रहकर काम किया। कम आयु होने के कारण सत्याग्रह करने की कांग्रेस द्वारा आपको स्वीकृति नहीं मिली। पिताजी के निधन उपरान्त अपने व अपने परिवार के
जीवन यापन हेतु चार आने प्रतिदिन के हिसाब से महाराष्ट्र चरखा संघ की शाखा बोहानी में कपास पिंजाई, फैनी बनाना तथा बुनाई का कार्य सीखा। 1942 में रेल्वे तार काटे गये और रेल्वे लाइन की रखवारी में दिन-रात गिरते पानी में भीगते रहे क्योंकि वर्षाकाल का समय था। और मुस्लिम हवालदार द्वारा बारिश में खड़े रहना और बुरी तरह मार मारना फलस्वरूप पैरों से लंगड़े हुए। हमेशा को शारीरिक शक्ति से कमजोर होने के बावजूद बोहानी सहित जिले के संपूर्ण ग्रामों में श्री रामसिंह चौहान (बेधड़क) जैसे नेता जिन्होने इस जिले को अंग्रेजी राज्य के खिलाप जगाया था उनके साथ रहकर काम किया और समस्त समाज में क्रांति पैदा की। साथ ही सामाजिक सेवा का कार्य हाथ में लिया,
समस्त दलित समाज में परम्परागत अंधविश्वास, अभक्ष एवं नशैली चीजों का सेवन तथा सवर्णों द्वारा बलपूर्वक मनवाई गई रीतियां, भाग्य भरोसे जीवन बिताना आदि कुप्रथाओं को समाज में घूम-घूमकर एवं सभा सम्मेलनों, शादियों में सारगर्भित भाषणों द्वारा त्याग कराया। वर्ण, जाति एवं धर्म को न मानना, भक्षक हिन्दू धर्म का त्याग करना और बौद्ध, कबीर, रविदास द्वारा प्रचलित रक्षक मानव धर्म अंगीकार करने को लेख और कविताओं तथा उपदेश द्वारा सामाजिक क्रांति पैदा करना ही जीवन लक्ष्य बनाया, प्रीतभोज और मृत्युभोज न करने के लिये जनमत तैयार किया तथा बाल-विवाह के दुस्परिणामों को समाज को समझाकर बालक-बालिकाओं को शिक्षा पर जोर देने की सलाह दी। तथा समाज में व्याप्त नियमों, कायदों में अमूल्य परिवर्तन किया है जो सामाजिक कार्यों में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो रहा है, संघ के माध्यम से बनाये गये सामाजिक नियम अलग से मुद्रित हैं।
“जन्मत शूद्र मरे पुनि शूद्रा,
कृत्रिम जनेऊ घाल जग घुन्द्रा।”
सत्गुरु कबीर साहेब के कथनानुसार, जन्म से सब शूद्र हैं और मरने पर भी, ब्राह्मणत्व कृत्रिम जनेऊ संस्कार करने से आ जाता है। अतः ब्राह्मणों द्वारा जाति भेद, वर्ण भेद किसी भी दशा में न माने जातियां कर्मानुसार बनी हैं, मानव-मानव समान हैं, ऊँच-नीच का झगड़ा व्यर्थ है।
विनोबा भावे के भूमिदान आंदोलन को जिलें में (पैरों से लंगड़े होते हुए भी) सफल बनाने हेतु महीनों पैदल यात्रा कर सैंकड़ो एकड़ भूमि भूमिहीनों में वितरण की, मकर संक्राति के मेला बरमान घाट पर अलग-अलग पांच सम्मेलन किए, साथ ही रवि महासंघ जबलपुर जिला शाखा के अध्यक्ष, अन्तयोदय महामंडल के सचिव हरिजन सेवक संघ इन्दौर, इंटक उज्जैन जैसे संघ-संगठनों से जुड़कर सामाजिक उत्थान का कार्य करते रहे तथा प्रदेश के मंत्री गणेशराम अनंत, वेदराम जी, चर्तुभुज पाठक, श्याम सुन्दर नारायण मुशरान, आनंद नारायण मुशरान, सरलादेवी पाठक, बाबूलाल जैन, किशोरी लाल जी ज्योतिषी सागर, रामानंद दुबे रामपुर, चन्द्रशेखर आजाद, रामलाल जाटव कौड़िया, हरिदत्त शर्मा हर्रई हवेली, सुन्दरलाल श्रीधर बोहानी, नाथूराम चौकसे बोहानी, बाबूलाल वर्मा बोहानी, सहित अनेको नामी व्यक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सामाजिक उन्नति के कार्य करते रहे। आपके दलित समाजो के उत्थान कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए दिसम्बर सन् 1957 में नरसिंहपुर जिला अलग होने से जनवरी 1957 में द्विसदस्सीय सीट गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीते।
विधायक काल में क्षेत्रीय जनता की मन-वच-कर्म से सच्ची सेवा की, सन् 1962 में पुनः कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और सवर्णों की जाति भेद रूपी संकुचित भावना की वजह चुनाव हार गये, गरीब थे और गरीब हो गये। तब से दिसम्बर 1989 तक कांग्रेसी रहकर इंदिरा गांधी जी के बीस सूत्रीय कार्य क्रमांतर्गत 16 वर्ष जिला बीस सूत्रीय समिति के सदस्य रहे। मार्च 1981 में शासन द्वारा मान्यता प्राप्त जाटव नव जाग्रति संघ मध्यप्रदेश (रजि.क्र.9999) जिला नरसिंहपुर के अध्यक्ष रहे एवं 13 वर्ष ग्राम पंचायत बोहनी के सदस्य भी रहे। कबीर पंथी होने के नाते सामन्ती ब्राह्मणवाद का जन्म जाति विरोधी थे और अंतिम सांस तक सक्रिय रहने का प्रयास जारी रहा। दलित समाज में परम्परागत व्याप्त दुखदाई रीतियों के स्थान पर हर संभव सुखदाई रीतियां प्रचलित कराने के फलस्वरूप अंधविश्वासी लोगों द्वारा विरोधाभास होने करने पर भी मान-सम्मान, पद इज्जत की परवाह नहीं की, समाज के नम्र सेवक की हैसियत से समाज स्वस्थ्य, सुखी एवं सशक्त और संगठित कर हर प्रकार के अत्याचार और शोषण के मुकाबले बुलंद आवाज से करने कराने का दृढ़ निश्चय लिये समाज के लिये लड़ते रहे। जिले की गरीब, दलित समाजों के उत्थान व विकास में अनेक राजनैतिक मतभेद होने के उपरान्त आपने कांग्रेस पार्टी का परित्याग कर दिया। भारतीय संविधान शिल्पी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के मिशन को देश व्यापी आंदोलन को चलाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय कांशीराम जी द्वारा स्थापित राजनैतिक बहुजन समाज पाटी ने आपको नरसिंहपुर जिले में ब.स.
पा. का संयोजक अपने उद्घोदन में निरुपित किया।
आप बचपन से संगीत के बड़े प्रेमी थे, यह शिक्षा आपको विरासत के रूप में मिली सभी प्रकार का गाना बजाना आपका शौक था आप संगीत के वाद्ययंत्रों पर कुशलतापूर्वक गायन तथा वादन कर लेते थे नाटक-नौटंकी के माध्यम से अनेको बार कुशलतापूर्वक मंचन किया। इसी भावना के साथ सन् 1988 को संत शिरोमणि रविदास जी की संगीतमयी जयंती की शुरूआत कर समाज को संगठन में रहने की प्रेरणा दी, जो वर्तमान में जिला स्तर पर बड़े हर्ष के साथ प्रतिवर्ष मनाई जाती है।
नर्मदादास जी का सम्पूर्ण जीवन समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में व्यतीत हुआ ऐसा बिरला मानव देखने में मिलेगा जो अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में लगा दे निश्चत ही नर्मदादास जी नरसिंहपुर जिले में सामाजिक परिवेश के बदलाव में एक क्रांतिकारी बतौर रहे। इन्होनें अपने जीवन काल में किसी भी प्रकार की आपत्ति, विपत्ति, संकटों, मुसीबतों की परवाह नहीं की और वरन अगाध रूप से अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक वीर सैनिक की भांति कार्य करते रहे अनेको मुसीबतों से गुजरने के बाद एक नये साहस एवं ऊर्जा से ओत-प्रोत रहकर कार्य करते रहे। 05 सितंबर 2001 दिन बुधवार का बड़ा ही दुखद दिन था उस दिन हमारे प्रेरणास्त्रोत हम सब को छोड़कर इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गए।
द्वारा – (मुकेश चौधरी द्वारा लिखित किताब “क्रांतिदुत”)