बेटी पढ़ गई पर बची नहीं, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
अब कहा सुरक्षित हैं बेटियां ? इक सवाल मन को रहा हैं काट
कभी शिकार हुई रेप और हवस की तो
कभी शिकार हुई अन्याय शोषण की।।
कभी शिकार हुई घरेलू हिंसा की वो बिटिया।
होती रहती हैं जो दुष्कर्म, बलात्कार, शोषण की घटनाएं
सरकार सोती रहती हैं, फिर क्यूं इनकी ऐसी दुर्दशाओं पर
हमने आजादी पाई थी क्या देश की मासूम बेटियों की इस हालत के लिए ?
वीरों ने गोली खाई थी क्या देश को गर्त में धकेलने के लिए ?
विकसित देशों की गिनती में आयेंगे क्या ऐसा होने से ?
सुरक्षित राज्य (देश) कहलाएंगे? क्या ऐसा होने से ?
देश को उत्तम बनायेंगे क्या न्याय की गति धीमी कर देने से?
आजादी के अमृत उत्सव का मना रहे हैं अखबारों में भरी बलात्कार की खबरों से।
हैवानों थोड़ी तो शर्म करो हैवानों, महापुरुषों की तपस्या को बेकार मत करो हैवानों।
बुद्धा, राम, कबीर, रहीम, अंबेडकर, फूले, पेरियर, कलाम की भुमि विश्व में बदनाम मत करो?
विश्वगुरु की इस धरती पर नारी के भाग्य को अबला मत करो?
जिस देश में नारी की पूजा की जाती हैं इसको तुम ऐसे मत बदनाम करो,
वीरांगना रानी, देवी, ने इस माटी को अपने खून से सींचा हैं तुम वीरों की कुर्बानी को मत बेकार करो?
प्रशासन की मेहनत को मत तार-तार करो,
न्याय व्यवस्था के नियमों को मत उलंघना करो।
जिस माटी का नमक खाया उस मां को तो मत शर्मशार करो।
इन हालातों पर मां भारती भी रोती हैं
जब देखती अपने ही देश अपनी माटी पर,
बेटी को नोचते, चीखते, बिलखते, जलते, मदद की भीख मांगती है तो न्याय की देवी भी शर्मशार हो जाती हैं।
समय की अनकही कहानी, पूजा मालवीय