लेख। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां आदिकाल से खेती की जा रही है। भारत में आज भी 80 प्रतिशत लोग खेती-बाड़ी से जुड़े हैं। जैसे जैसे भारत आधुनिकता बढ़ती गई। खेती किसानी का तरीका भी बदलता गया है। जीवन जीने के लिए भोजन बहुत जरूरी चीज है और वही भोजन भी आधुनिकता में बदल गया है। पहले के भोजन और आज के भोजन में बहुत बड़ा अंतर खाने वाले भी महसूस कर रहे होंगे। खैर कुछ भी खाना तो चाहिए। लेकिन क्या वाकई में जो खा रहे हैं वहां जाति धर्म देखकर खा रहे हैं और आजकल उसी की राजनीति में भी चर्चा हो रही है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है और आज इस देश की कृषि प्रधानता को बिजनेस बना दिया है जो किसानों को समझ नहीं आ रहा है। खेती-बाड़ी करने के लिए मिट्टी पानी जरूरत होती है किसी कैमिकल की नहीं? कृषि को आधुनिक बनाने के चक्कर में फसलों में जहर घोलने को मजबूर किया गया है। आज किसान की मजबूरी बन गई है खेतों में अमानक ज़हर डालने की। किसान भी अधिक उपज के लालच के चक्कर में उपजाऊ जमीन को बंजर बनाता जा रहा है और इंसान फसलों में जहर न देखते हुए जाति धर्म में जहर देख रहा है।
फल, सब्जी और अनाज उगा कौन रहा है कैसे उगा रहा है इसको छोड़कर बेचने वाले की जाति धर्म का नेमप्लेट पर फोकस किया जा रहा है। यहां सब राजनीति का हिस्सा है लेकिन हम बात कर रहे हैं किसानों और खेती-बाड़ी की, पहले गोबर के खाद से अच्छी पैदावार होती थी और हमारी जमीन भी उपजाऊ जमीन थी लेकिन आज के दौर में कृषि भूमि बंजर होती जा रही है। अनगिनत रासायनिक उर्वरकों और कैमिकल दवाइयों का स्प्रे करके करके फल-सब्जी अनाज को तो जहरीली बना रहे हैं साथ ही इसके कचरे को खाने वाले जानवर भी इसका अंश ले रहे हैं और दुध मांस मछली अंडा भी अछूता नहीं है।
इन रासायनिक उर्वरकों और कैमिकल दवाइयों के इस्तेमाल से हमारे शरीर में अनगिनत बिमारियों ने घर कर लिया है और इसका सबसे बड़ा असर इंसानों की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ रहा है। प्रजनन क्षमता कम हो रही है। मौसम परिवर्तन की मार को न फसल झेल पा रही है और न इंसान। तुरंत बिमारी के जान में फंस जाता है और मेहनत की कमाई अस्पतालों में भर रहा है। आने वाली पीढ़ियों को क्या देंगे आज हम जिस जमीन पर खेती कर रहे हैं यदि वहां खेती करना मुश्किल हो जाएगा तो फिर क्या करेंगे। भूख से मर जाएंगे और इसकी पुर्ति कैसे होगी। इसलिए किसानों को आधुनिक खेती छोड़कर पारम्परिक खेती पर ध्यान देना होगा।
आज का किसान पढ़ा लिखा और समझदार है। वहां पंजाब हरियाणा जैसे राज्यों की हाल देख सकते हैं और यही दौर कुछ सालों में मप्र में भी हो सकता है। सिक्किम और मेघालय पुर्ण रूप से जैविक खेती करते हैं। इन चारों राज्यों के बीच में मप्र है और मप्र को भारत का दिल कहते हैं और यदि यहां दिल कमजोर हो गया तो हालात बिगड़ते देर नहीं लगेगी। हमारे पास अभी भी समय है और इन रासायनिक उर्वरकों और कैमिकल दवाइयों का इस्तेमाल धीरे धीरे कम करें। जिससे मिट्टी, फसल और उपज तीनों में संतुलन बना रहेगा। फिर तीन चार साल में मप्र पुरी तरह से जैविक प्रदेश बन जाएगा।
इन रासायनिक उर्वरकों और कैमिकल दवाइयों के इस्तेमाल के दुष्परिणामों को देखते हुए भारत सरकार द्वारा कई कैमिकल दवाइयों पर रोक लगा दी गई है। फिर भी बहुत मात्रा में किसान कैमिकल दवाइयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज खरपतवार नाशक दवाई से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है यहां एक तरह से प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। एक दिन खरपतवार भी इसका आदी हो जाएगा और दवाईयां काम करना बंद कर देगी तथा इल्लियों में भी परिवर्तन हो जाएगा। क्योंकि समय के साथ सब बदलाव करते हैं। और जब तक बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि जमीन बंजर हो चुकी होगी। इसलिए मध्य प्रदेश के किसानों के पास अब भी समय है अपनी जमीन को बंजर होने से बचाएं और फसल उगाए न कि ज़हर।
आपको बता दें कि हमें एक समाचार पत्र में खबर छपी है कि मप्र नर्मदापुरम क्षेत्र में जो मूंग उगाई गई है उसमें अधिक मात्रा में केमिकल है। किसान जो उगाते हैं उसे इंसान और दुधारू पशु दोनों खाते हैं। लिखा है यही हालत रहे तो 10 साल में पंजाब जैसे हालात बन जाएगा। जहरीली फसल उगाएंगे तो वहीं जहर हमारे भोजन में भी आएगा। इसलिए आज खाने पीने की जरूरत को नकली चीजों से भी पुर्ति करने में भी इंसान पीछे नहीं हट रहा है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा फल और सब्जियों का है जिसे हम सेहत बनाने के लिए खाते है लेकिन हमें पता नहीं है कि जो हम खा रहे हैं वहां हमारी सेहत बनाएगा या बिगाड़ेगा। अब आप स्वयं तय करें की फसल उगाना है या ज़हर। जय हिन्द