सारंगपुर ने निकाला चल समाहरोह सारंगपुर रविदास जयंती के उपलक्षय मे समाज के लोगो द्वारा बेंड बाजे और डीजे की धुन पर रविदास जी की झांकी मुख्य मार्गो से निकाली जिसमे नगर के सभी लोगो ने स्वागत फुल मलाओ से किया जिसमे
मुख्य रूप से उपस्थित राज्यमंत्री कौशल विकाश मप्र शासन गौतम जी टेटवाल और हजारों की संख्या मे माताए बहने जुलुस मे शामिल हुई जुलुस मे सभी धर्मो के लोग शामिल हुए और समापन रविदास मंदिर मे हुआ संत रविदास जयंती हर वर्ष माघ पूर्णिमा को मनाया जाता है। संत रविदास एक
महान भक्ति संत, समाज सुधारक और कवि थे, जिन्होंने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनके द्वारा दिया गया प्रेम, एकता और भक्ति का संदेश आज भी लोगों को प्रेरित करता है। संत रविदास का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें समाज में समानता, प्रेम, भक्ति और सादगी का महत्व सिखाती हैं।
उनके दोहे आज भी प्रासंगिक हैं और मानवता को सही दिशा दिखाते हैं। जन्म और प्रारंभिक जीवनसंत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। लेकिन उन्होंने सामाजिक भेदभाव से ऊपर उठकर भक्ति मार्ग अपनाया और समाज में समानता का संदेश दिया।
जाति-पाति के विरुद्ध विचारसंत रविदास ने समाज में व्याप्त जातिवाद का विरोध किया और मानव मात्र को समान बताया। उनका मानना था कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि उसकी जाति से।भक्ति आंदोलन में योगदानसंत
रविदास भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। उन्होंने भक्ति मार्ग को अपनाकर भगवान की भक्ति को सर्वश्रेष्ठ बताया और निष्काम प्रेम तथा सेवा पर बल दिया।गुरु नानक और मीरा बाई से संबंधकहा जाता है कि गुरु नानक देव जी और मीरा बाई सहित कई संतों ने संत रविदास से आध्यात्मिक प्रेरणा ली। मीरा बाई उन्हें अपना गुरु मानती थीं।
संत रविदास की रचनाएंसंत रविदास द्वारा रचित अनेक पद और दोहे सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी संकलित हैं। उनके दोहे सरल भाषा में गहरे आध्यात्मिक संदेश देते हैं।संत रविदास के पाँच प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ”मन चंगा तो कठौती में गंगा”अर्थ: यदि मन पवित्र और निर्मल है
, तो किसी भी स्थान पर किया गया कार्य पवित्र ही होगा। बाहरी आडंबरों की बजाय आंतरिक शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है।”जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।रैदास मानुष नहीं, जो गिनत जाति के साथ।।”अर्थ: जाति-पाति का भेदभाव समाज में कृत्रिम रूप से बनाया गया है। असली इंसान वही है जो जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता।
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।छोट-बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।”अर्थ: संत रविदास एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां कोई भुखा न रहे, सब समान हों और किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो
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