भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन के सहयोग से प्रदेश के 28 पवित्र आस्था स्थलों यथा क्रमशः ग्वालियर, दतिया, ओरछा (निवाड़ी), चित्रकूट, रामवन, नागौद (सतना), मऊगंज, देवतालाव (रीवा), मैहर, सलेहा (पन्ना), सलकनपुर (सीहोर), सीहोर, जामसांवली (छिंदवाड़ा), अमरकंटक (अनूपपुर), जबलपुर, खजुराहो (छतरपुर), देवास, इंदौर, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, नलखेड़ा (आगर), कुण्डेश्वर (टीकमगढ़), ओंकारेश्वर (खण्डवा), दमोह, सिंग्रामपुर, नोहटा, तेंदूखेड़ा (दमोह) में श्रीरामकथा के चरितों आधारित क्रमशः श्रीहनुमान, भक्तिमति शबरी एवं निषादराज गुह्य लीला नाट्य प्रस्तुतियों एकाग्र ‘श्रीलीला समारोह’ का आयोजन किया जा रहा है। समारोह 11 से 21 जनवरी, 2024 तक आयोजित किया जायेगा, जिसमें 11 से 13 जनवरी तक उज्जैन, रतलाम एवं मंदसौर, 13 से 15 जनवरी तक नलखेड़ा(आगर-मालवा), 14 से 16 जनवरी, देवास, सीहोर, सलकनपुर (सीहोर), 15 से 17 जनवरी तक जामसांवली(छिंदवाड़ा), जबलपुर, अमरकंटक (अनूपपुर), 16 से 18 जनवरी तक चित्रकूट (सतना), कुण्डेश्वर (टीकमगढ़), खजुराहो (छतरपुर), सलेहा (पन्ना), 17 से 19 जनवरी तक ग्वालियर, दतिया, ओरछा (निवाड़ी) तथा 18 से 20 जनवरी तक रामवन (सतना), देवतालाब (रीवा), मऊगंज, 19 से 21 जनवरी तक मैहर, नागौद (सतना) , सिंग्रामपुर, नोहटा, दमोह, तेंदूखेड़ा (दमोह) में प्रस्तुतियां दी जायेंगी।
लीला की कथाएं-
लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय़ शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं।
लीला नाट्य निषादराज गुह्य में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया।
श्रीहनुमान लीला में भगवान हनुमान के जीवन के उपाख्यानों को 15 दृश्यों में प्रस्तुत किया गया। श्रीहनुमान लीला को भक्ति की लीला के रूप में देखना चाहिये। भारतीय पौराणिक आख्यानों में सबसे बड़े भक्त के रूप में श्रीहनुमान जी का वर्णन अलग-अलग संदर्भों में आता है। अपने बाल्यकाल से ही श्रीहनुमान जी एक लीला की संरचना करते हैं, जिसमें वे सूर्य को निगलते हैं और देवता चिंतित हो जाते हैं। तब सभी देवता उपस्थित होकर श्रीहनुमान जी से प्रार्थना करते हैं और अपनी-अपनी शक्तियां श्रीहनुमान जी को आशीष स्वरूप प्रदान करते हैं। श्रीहनुमान जी का चरित अलग-अलग देव शक्तियों को एक ही चरित में प्रतिस्थापित करने की लीला का आख्यान है। कहा जाता है कि श्रीहनुमान भगवान शिव के अवतार हैं और देवी पार्वती उनकी पूंछ हैं। जब भी श्रीहनुमान जी से किसी भी तरह का दुर्व्यवहार आख्यान में आता है, जहां-जहां उनकी परीक्षा लेने और दंडित करने का किसी चरित के द्वारा प्रयत्न किया जाता है। तब देवी ही क्रोधित होकर अपने नाथ की रक्षा के लिये आगे आती हैं। पूंछ देवी और शक्ति का प्रतीक है। इन अर्थों में यह आख्यान, बहु भक्ति की अवधारणा को कितनी सहजता से प्रकट करता है।