प्रदीप कुमार नायक
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
भारत विश्व के विशालतम देशों में है!इसकी सस्कृति और सभ्यता सदियों पुरानी है!विश्व की अनेकों संस्कृतियां यहां से पनपी है!इसकी गाथा और गौरवशाली बहुत ही पुरानी है!गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए लाखों लोगों ने अपनी प्राणों की आहुतियां देश प्रेम की बलि पर दी! अनगिनत देश भक्तों ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को स्वाधीन कराने में समर्पित किया!आज हम स्वतंत्र है!लेकिन क्या वास्तव में हम स्वाधीन है ? ज़ब हम आजाद नहीं थे, तब भी हम भूतकाल की सुनहरी यादों के सहारे गर्व के साथ जीते थे!कभी हम राम तो कभी कृष्णा, कभी अशोक तो कभी चन्द्रगुप्त को याद कर गुलामी के दंश को भूलते रहते थे!हमारी यादों में अकबर, चाणक्य, शिवाजी, राणा प्रताप आकर हमें ढाढ़स बांधते थे तब और हम दासता के बावजूद भी खुद को वीर, धीर, संयमी, जोशीले पता नहीं क्या -क्या मान आत्म मुग्ध बने रहें! करीब -करीब दो सौ साल हमने यूं ही बिताएं, फिर आजाद हुए, देने वालों ने बलिदान दिए, लेने वालों ने आजादी ली, किसी के प्राणोंत्सर्ग के दम पर कुछ ने आजादी का सोमरस जी भरकर पिया तो कुछ अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करते रहें, कुछ आज भी कर रहें है!
अस्तु, आजाद भी हो गये, कुछ साल सपने देने में तो कुछ साल सपने बुनने में बिताएं! राम राज्य का ख्वाब खाक होते देखते रहें! अब भी भूतकाल का जिन्न पाल ही रहें है! सुभाष, आजाद, भगत सिंह, बिस्मिल, लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, टीपू, मंगल पाण्डे, ही नहीं, राजा राम मोहन राय, विवेकानंद, मालवीय पता नहीं कौन -कौन हमें गर्व करने का मौका देते रहें!हम अपने आप में ही खुश, संतुष्ट रहें और सत्ताधीश मनमानी करते रहें,पर भूतकाल चिपका ही रहा!तब हम आज कैसे भूले? मै प्रदीप कुमार नायक, स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार चले,खंगाल लेते है गर्व, गौरव व शर्म तथा लूटपाट के 76 सालों को आज !
15 अगस्त 1947 को हमने गुलामी की जंजीरो को तोड़ी थी और हम उसी दिन स्वतंत्र हो गये! 15 अगस्त का हमारे जीवन में क्या महत्व है यह किसी से छुपा नहीं है!सच कहे तो असली आजादी आज भी दूर की कौड़ी सी लगती है!बहुत बड़ा वर्ग आज भी जीवन की मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है!सरकार सोने में मस्त है तो आम आदमी “मैंगोमैन”हो गया है!जिसे हर कोई अपने तरीके से चूस रहा है!उसके लिए आजादी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह हो गया है!
हम इक्कीसवीं सदी में लोकतंत्र व सर्वजनहिताय, चार कदम सूरज की ओर जा रहें है!भारत उदय, राइजिंग इंडिया, हम सुनहले कल की ओर बढ़ रहें है,जैसे नारे तो खूब आए पर हकीकत नहीं बदली!गरीबी हटाओं कहते हुए तो रहनुमाओं ने गरीबों को ही हटाते गए!लोगों ने राम, रोटी और इंसाफ की आवाज़ लगाते रहें पर उन्हें कुछ भी नहीं मिला!कितनी सरकारे आयी और गयी, नेता दल, चेहरे, नीति रीति बदले पर आम आदमी की हालत नहीं बदली यानि मिले भी बस ख्वाब, खार, ज़ख्म और टीस ही!
जिन लोगों को हम जन सेवक बनाकर भेजते है,वे खास जगहों में महज पांच साल में ही रोड़पति से करोड़पति हो जाते है!उनके हाथ इतने लम्बे हो जाते है कि आम आदमी उनके गिरेवान तो क्या,दरवाजे तक भी जाने की हालत में नहीं होता!उनके सम्पत्ति के आंकड़े,बैंक बैलेंस,नामी बेनामी जमीने, कारोबार, कारखाने, खेत, उद्योग सब एक छलांग की तरह फर्श से अर्श तक पहुंच जाते है! वे जन सेवक ही असल में आजादी का आनन्द लेकिन रहें है और हम? हम बंधनों, कुंठाओं, अभावों, गरीबी व मज़बूरी में जिन्दा है, बस!
किसी भी लोकतान्त्रिक राजनितिक व्यवस्था की सफलता के लिए जिन मूल चीजों की आवश्यकता होती है,वहाँ हम आजादी के इतने वर्षो बाद भी पिछड़े हुए है!हमने शारीरिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली, मगर भूख से स्वतंत्रता अभी भी नहीं मिली!देश की चालीस फीसदी जनता गरीबी रेखा से अभी भी नीचे है!जिन्हें दो वक़्त की रोटी प्राप्त करने की चिन्ता है!रोटी, कपड़ा और मकान की चिन्ता से ग्रस्त लोगों को कैसी स्वतंत्रता मिली ?
सपनों को साकार करने की आजादी कब गरीब वर्ग को मिलेगी और मिलेगी भी या नहीं, कहना मुश्किल है!दोहराने की जरुरत नहीं कि बलिदानो के बाद आजादी मिली थी!इस देश के एक वर्ग ने सब कुछ पाया, ढेर सारे सपने साकार किये, उन्नति की, सुविधाएं भोगी जी भर, हवेलियां खड़ी की, दौलत समेटी, अपनी सात पुश्तों के लिए इंतजाम कर लिया है!
गरीब की हालत बदलने का नाम ही नहीं लेती, आजाद होने का ठप्पा लगा बस!सारे दिन खटकर भी बच्चों को पालने तक की औकात न बना पाया, न उन्हें पढ़ाने लाइक कमा पाया, न खाने को ढंग का खाना दे पाया!उस पर तो आज भी संकट और बंधन है!एक इंडिया में दो -दो पेट हो गये और एक भारत में दो -दो भारत हो गये!
त्रासदीयों की भरमार हो तो जनता क्या करें? किससे फरियाद करें? यह एक आज के दिन ज्वलंत प्रश्न है!इस देश में सत्ता के संस्थान में दूध के धुले नेता और जनप्रतिनिधि ढूढ़ना असंभव सा हो गया है!आज की राजनीति एकदम भ्रष्ट हो चुकी है!घोटाला तो घटने का नाम ही नहीं लेकिन रहा है!सरकार ने आम आदमी को कभी पेट्रोल, कभी बिजली, कभी यातायात, कभी हिंसा तो कभी हड़ताल में पिसने के लिए उसके हाल पर छोड़ दिया है!यानि कि जितना चाहो टैक्स जी भर कर लो पर जनता की आवाज़ को मत सुनो!इस आजादी को क्या कहाँ जाय?
आम आदमी को अर्थ शास्त्रीय ढंग से समझाया जा रहा है!पर न उसे आपका ज्ञान चाहिए न आश्वासन, उसे तो पेट भर रोटी चाहिए, जो मिल नहीं पा रहा है!अब आम आदमी क्या करें, कहाँ जाये!पेट में भूख है पर जेब में पैसा नहीं है!बेतहाशा बढ़ी कीमतों ने आम आदमी का कचुमर निकाल दिया है!सरकार कम्पनियों की ज्यादा व आम आदमी की कम परवाह करती दिखती है!झूठ पर झूठ उसकी आदत, नीयत व नेमत हो गई है!पेट्रोल की आग ढहती है, गैस और बिजली रौशनी कम झटका ज्यादा देती है!सरकार मौन है!सरकार अब मन नहीं मोहते, उनकी चुप्पी गाल पर तमाचे सी लगती है!ऐसे में आजादी को लेकर उसमें गर्व व गौरव का भाव कैसे आए ?
तस्वीर भयावह लगता है!हर बात के लिए जेब में दाम चाहिए!डालर ने रूपये को आईना दिखा दिया है!औधे मुंह पड़ा रूपया बेदम है!परिणाम मंहगाई का सूचकांक लगातार बढ़ रहा है!आम आदमी त्रस्त पर सरकार मस्त है!घरेलू मोर्चे पर हम लुढ़क चुके है!देश का उत्थान करने वाला कोई नहीं दिख रहा है!दुनियां को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला भारत आज भ्रष्ट देशों की कतार में बहुत ऊपर है!निजी स्वार्थ देश से बड़ा हो गया है!हर तरफ गिरावट का दौर साफ -साफ नजर आ रहा है!पर समाधान कब और कैसे मिलेगा, अभी तो कोई नहीं जनता ? आदमी, संस्था, देश, दल सब पतन की ओर अग्रसर दिख रहें है!
भारत में आज भी जातिवाद, साम्प्रदायिकता के साथ -साथ भ्रष्टाचार और हिंसा देश के लिए सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती है!यह हमारी लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्ष प्रणाली और संविधान की पवित्रता को कमजोर बनाती है!जातिवाद और साम्प्रदायिकता भारतीय एकता को टुकड़े -टुकड़े कर देना चाहती है!नेता, अधिकारी, अफसर, कर्मचारी, व्यापारी, मजदूर सब ही तो अपने -अपने स्तर पर देश को लूटने के मुजरिम है!कुछ ने नींव में मट्ठा डाला है तो कुछ ने शाखे तोड़ी है!
ऐसा लगने लगा है!जैसे सत्ता संस्थान देश का भला करना नहीं चाहते! ऐसा करने में उन्हें निजी नुकसान नजर आता है!
अदालत में न्याय के अलावा सब कुछ है!वहाँ लगी “सत्यमेव जयते “की पट्टी अब आँखो में उम्मीद कम जगाती है पर डर उससे ज्यादा लगता है!मीडिया को सबसे ज्यादा मोह अपने “सकूप “से हो गया है!वहाँ स्टिंग भी है और उसे दबाने, बदलने का कमल भी है!पिछले कुछ दशकों में इस व्यवस्था के कार्यकरण जों भयावह विसंगतिया पैदा हुई, उन्होंने देश को यह सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि राजनितिक, संविधान समस्या हमारी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप है भी या नहीं ? क्या इसकी सफलता के लिए अनिवार्य पूर्व अपेक्षाएं हमारे यहां विधमान भी है या नहीं ? प्रश्न यह नहीं है कि संसदीय व्यवस्था कितनी अच्छी है या ख़राब!सवाल यह है कि यह हमारे लिए कहाँ तक ठीक साबित हुई है!हमारी समस्याएं सुलझाने में कहाँ तक सफल रही है?
कमाल तो यह भी है कि इतना सब होने पर भी हम अभी तक जीवित है, उम्मीद अभी तक छुटी नहीं है!हम आज भी आजादी पर लट्टू है और यही हमारे लोकतान्त्रिक बने रहने का आधार भी है!चले आज नहीं तो कल ही सही, आप सुनहरे भारत का सपना देखते रहिए!हो सकता है कही किसी तरफ से कोई देवदूत भारत भूमि पर उतर आए जो सब कुछ ठीक कर दे!काश ऐसा चमत्कार हो और खास के साथ आम आदमी भी आजादी के त्यौहार पर झूम सके!जिस दिन आम आदमी को इस देश की क़ानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, राजनितिक व्यवस्था पर पुन :विश्वास हो जाएगा उसी दिन एक नये भारत का उदय होगा
लेखक – स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं चैनलों में अपनी योगदान दे रहें है!
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