कुक्षी जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के नेतृत्व में संस्कृति परंपरागत ढोल – मांदल लेकर भगोरिया में नाच गाकर हमारे लोगों द्वारा अन्य लोगों को यह संदेश दिया जाता है कि होली का बाजार है खुशियों के दिनों में रिश्तेदार, परिवार पलायन हेतू गए आदिवासी समुदाय गांव से दूर दराज शहरों
राज्यों में नौकरी पेशेवर परिवार बाहर निवासरत अपने मूलत पैतृक गांव परिवार के सदस्य रिश्तेदारों एवं ग्रामीण अंचल के साथी होली के पूर्व भोंगर्या हाट में मिलकर सामान की खरीदी कर लाते हैं एवं उसके पश्चात सब मिलकर एक साथ होली का त्योहार मनाया जाता है,,,अंतिम मुझाल्दा।
जयस प्रदेश अध्यक्ष मध्यप्रदेश *संस्कृति_उत्सव_और_होली_डांडा*भोंगर्या होली पाषाण काल अर्थात आदि काल से निहित आदिवासियों का संस्कृति से जुड़ा अभिन्न हिस्सा भी है आदिवासी ढोल, मांदल की थाप के साथ परिवार रिश्तेदार स्माजजनो क्षेत्रवासियों के साथ नाच गाकर भोंगर्या हाट के माध्यम से होली के त्योहार का आगाज करते हैं भोंगर्या हाट यह कुछ दशक नहीं
आदि काल से आदिवासी समाज की जो संस्कृति, परम्परा, रीति रिवाजों, वेशभूषा को संजोए हुए हैं उसकी निहित परंपरा चली आ रही हैं उसका हिस्सा हैं आदिवासी समाज प्रतिवर्ष पतझड के उपरांत होली का त्योहार जब पलाश के पेड़ पर रंग बिरंगी किशोड़ी आ जाती हैं यह भी होली के त्योहार और आदिवासी समुदाय जो पेड़ पौधों की पूजा करता आता है इनका गहरा संबंध रहा हैं ऐसे में पलाश
के पेड़ के रंग बिरंगे किशोड़ी जो होली के रंग गुलाल का बेहतरीन संदेश लेकर भी आता है आदिवासी समुदाय एवं पेड़ – पौधों का गहरा संबंध होने के कारण आदिवासी पेड़ पौधों का
संरक्षण निरंतर करते आ रहा है एवं होली दहन से एक माह पूर्व गांव के तड़वी, पटेल, चौकीदार गांवों में परम्परागत तिथि अनुसार पूर्णिमा को होली का डांडा गाढ़ते है फसलों के खेत खाली होने के दौरान होली दहन की जाती हैं होलिका दहन से पूर्व अर्थात होली का डांडा गाढ़ने के
पश्चात आदिवासी समुदाय में कोई भी शुभ अर्थात मांगलिक उत्सव कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं और जयस प्रदेश अध्यक्ष अंतिम मुजाल्दा, जयस प्रदेश महासचिव गेंदालाल रणदा, गौरव अलावा, कमल बामनिया, रोहित, पुष्पराज सोलंकी, कमलेश मंडलोई, धर्मेंद्र मंडलोई, विवेक तड़वाल, अर्जुन सिलकुवा, अर्जुन बामनिया, वह अन्य जयस युवा साथ शामिल हुए,,,