कबीर मिशन समाचार
भोपाल मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति संचनालय एवं धर्मस्व विभाग के द्वारा मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद विकासखंड नरसिंहगढ़ के तत्वाधान में गायत्री परिवार नरसिंहगढ़ के सहयोग से वैशाख शुक्ल पंचमी दिन मंगलवार को स्थान गायत्री मंदिर सभागृह में एकात्म पर्व संगोष्टी का आयोजन किया गया l जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में रविन्द्र पोद्धार (वरिष्ठ समाजसेवी) , पंडित सुरेश शास्त्री (ज्योतिषाचार्य एवं अध्यक्ष मृतुन्जय एकता परमार्थ गो सेवा समिति), पर्वतसिंह लहरी (वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ) के साथ श्रीमती संतोष त्रिवेदी (जिला अध्यक्ष- नारी शक्ति महिला मंडल), परिषद के विकासखंड समन्वयक खजानसिंह ठाकुर उपस्थित हुए l कार्यक्रम की शुरुआत आदि शंकराचार्य के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन कर की गई तत्पश्चात परिषद की ओर से अतिथियों का स्वागत किया गया।
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परामर्शदाता हरिओम जाटव द्वारा परिषद की अवधारणा गठन एवं प्रस्फुटन,नवांकुर सृजन, समृद्धि, सीएमसीएलडीपी आदि योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी तत्पश्चात परिषद के विकासखंड समन्वयक खजानसिंह ठाकुर द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा की विस्तृत जानकारी दी तत्पश्चात वक्ताओं ने आदि शंकराचार्य के जीवन वृतांत पर अपने अपने विचार व्यक्त किए जिसमें श्री पोद्दार द्वारा बताया गया कि आचार्य शंकर अद्वैत वेदान्त सिद्धान्त के जनक, महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे आचार्य का जन्म ५०७-५०८ ई. पू. में केरल में कालपी अथवा ‘काषल’ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। बहुत दिन तक सपत्नीक शिव को आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा। जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। ये बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके संन्यास ग्रहण करने के समय की कथा बड़ी विचित्र है। कहते हैं, माता एकमात्र पुत्र को संन्यासी बनने की आज्ञा नहीं देती थीं। तब एक दिन नदीकिनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर पकड़ लिया तब इस वक्त का फायदा उठाते शंकराचार्यजी ने अपने माँ से कहा ” माँ मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दो नही तो हे मगरमच्छ मुझे खा जायेगी “, इससे भयभीत होकर माता ने तुरंत इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान की ; और आश्चर्य की बात है की, जैसे ही माता ने आज्ञा दी वैसे तुरन्त मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर छोड़ दिया। और इन्होंने गोविन्द नाथ से संन्यास ग्रहण किया।पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया तथा वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया। कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं, क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की।
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३२ वर्ष की अल्प आयु में सम्वत ४७७ ई . पू.में केदारनाथ के समीप शिवलोक गमन कर गए थे। इसी प्रकार अन्य वक्ताओं ने भी आचार्य शंकर के जीवन के बारे में बताया l इस अवसर पर विकासखंड नरसिंहगढ़ की नवांकुर संस्थाओं बिहार से धनसिंह कुशवाह, कुरावर से सुनील राज, हीरापुरा से विक्रमसिंह लववंशी पिपलिया बीरम से कैलाशसिंह राजपूत, कुदाली से राजू कुशवाह के नरसिंहगढ़ की वार्ड समितियों के सुनील साहू, देव प्रकाश वर्मा के साथ साथ नारी शक्ति महिला मंडल व ग्राम विकास प्रस्फुटन समितियों नगर/वार्ड विकास समितियों के प्रतिनिधि व सदस्यगण उपस्थित रहे l कार्यक्रम का संचालन परामर्शदाता रंगलाल नागर एवं आभार प्रदर्शन परामर्शदाता अमिय कश्यप द्वारा किया गया।