कबीर मिशन समाचार।
नीमच। 13 जनवरी 1948 के दिन महात्मा गांधी ने अपने जीवन का अंतिम उपवास किया जो उस वक़्त की हिंसा और नफरत के माहौल के खिलाफ शांति बहाल करने की पुकार थी. उनके उपवास के दौरान सर्वधर्म प्रार्थना सभा में गीता, कुरान और गुरु ग्रन्थ साहिब पढ़े जाते, वैष्णव जन और ईश्वर अल्लाह तेरो नाम के साथ जैसे भजन गए गए, लोग बिरला भवन में इकट्ठे होते लोगो ने हिंसा में सहभागी न होने का वचन दिया और शांति स्थापित हुई । गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि नफरत और हिंसा ने धर्म की आत्मा को नष्ट कर दिया है और प्यार और अहिंसा ही धर्म की आत्मा हैं और यही एकमात्र तरीका है जिससे इस दुनिया में शांति फैला सकता है।
गांधी जी के अंतिम उपवास को याद करते हुए , नफरत और हिंसा के खिलाफ फैसल खान और कृपाल सिंह मंडलोई ने 13 जनवरी से 18 तक उपवास किया । उपवास के अंतिम दिन महात्मा गाँधी की प्रोत्री तारा गांधी भट्टाचार्जी और स्वामी नारायण दास ( वृन्दावन ) ने जूस पिलाकर उपवास समाप्त करवाया। तारा जी ने उपवास कर रहे फैसल खान और कृपाल सिंह मंडलोई को अपने घर की बनी खिचड़ी और खीर भी खुलाई। उन्होंने भावुक होते हुए गाँधी जी के अंतिम उपवास को याद करते हुए कहा की उस दौर में वो हर रोज स्कूल से सीधे बिरला भवन पहुंच जाती थी। उन्होने कहा की इस वक़्त बहुत ज़रूरी है की अमन , मोहब्बत , भाईचारे की बात की जाये और इस तरह की कोशिशों को छोटा नहीं समझना चाहिए।
वृन्दावन से आये स्वामी नारायण दास जी ने कहा की यही धर्म का असली काम है और धर्म के नाम पर नफरत फ़ैलाने वालो को जवाब देना बहुत ज़रूरी है जिसके लिए वो देश भर में यात्रा करने को तैयार है।
फैसल खान ने कहा की दिलों को जोड़ने और नफरत हटाने का काम मुश्किल तो है लेकिन बेहत ज़रूरी भी और इस तरह के उपवास हमे मजबूती देते है। हमे यकी जीत इंसानियत और भाईचारे की होगी।
कृपाल सिंह मंडलोई ने कहा की जिस दौर में जब हिंसा की मार्केटिंग और महिमामंडन किया जा रहा हो ,तब गाँधी की विरासत को आगे ले जाना और युवाओ के बीच अमन और भाईचारे के सन्देश को ले जाना बहुत ज़रूरी है।
सर्व धर्म प्राथना के बाद मशहूर स्क्रिप्ट राइटर प्रोफेसर अज़गर वजाहत , पीस एक्टिविस्ट राहुल कपूर , एडवोकेट सुयश त्रिपाठी , रिज़वान खान आदी ने अपनी बात रखी।