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लेख। आजादी के 75 वर्ष, अमृत महोत्सव में पानी पीने की भी आजादी नहीं

जातिवादी मानसिकता ने एक मासूम छात्र इंद्र कुमार को मौत के घाट उतार दिया।

इंद्र कुमार मेघवाल की अस्पताल की फोटो

विजय बौद्ध संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश,

राजस्थान में अधिकांश कांग्रेस अशोक गहलोत की सरकार रही है। और इनके शासनकाल में वर्षों से अनुसूचित जाति वर्ग पर अत्याचार होता आ रहा है। यहां चरम सीमा तक जातिवाद छुआछूत और भेदभाव है। कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी कायरता एवं नपुंसकता के कारण, स्वर्ण राजपूत ब्राह्मणों का आज तक कुछ बिगाड़ नहीं सके हैं। इसलिए उनके हौसले बुलंद है।

और वह सामाजिक न्याय और कानून को ठेंगा दिखाते हैं। वहां कानून व्यवस्था एवं पुलिस प्रशासन पर मनु वादियों का दबदबा है। इसी कारण विगत दिनों एक नौजवान जितेंद्र मेघवाल की मूंछ रखे जाने पर जातिवादी गुंडों ने उन पर चाकू से हमला कर उसकी दर्दनाक हत्या कर दी थी।

इस हत्या पर भी कांग्रेस सरकार का दोगला चरित्र उजागर हुआ था। हाल ही में संघ,, आर एस एस द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर में अध्ययनरत 9वर्ष के छात्रा इंद्र कुमार मेघवाल को जातिवादी मानसिकता के स्वर्ण राजपूत छैलसिंह ने घड़े से पानी पीने पर इंद्र कुमार की बड़े ही बेरहमी से पिटाई की थी।

कांग्रेस सरकार के कई अस्पतालों में उस छात्र का सही उपचार नहीं हुआ। और गुजरात के अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में उसने अपनी आखिरी सांस ली।

और उसकी दर्दनाक मौत हो गई। इस दर्दनाक एवं शर्मनाक जातिवादी घिनौनी घटना पर आर एस एस संघ एवं कांग्रेस ने निंदा तक नहीं की है। बल्कि इस पूरे घटनाक्रम को षडयंत्र पूर्वक बदलने की साजिश रची गई। मौत के घाट उतारे छात्र के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करने के बजाय, मनुवादी मानसिकता के गुलाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुलिस प्रशासन ने पीड़ित परिवार पर लाठीचार्ज किया।

उन्हें मानसिक शारीरिक आर्थिक रूप से प्रताड़ित किए जाने का पाप किया है। और इस जातिवादी घटना के विरोध में आंदोलनरत भीम सैनिकों पर पुलिस प्रशासन ने अपनी गुंडागर्दी का रौब दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसी सरकार, पुलिस प्रशासन, मानवता के लिए कलंकित है।

देशभक्ति, जनसेवा के नाम पर धब्बा है। कांग्रेसी विधायक पंनेश चंद मेघवाल ने अपना इस्तीफा देते हुए कहा,,, ₹5लाख से मासूम की जान की कीमत का सौदा नहीं किया जा सकता है।

हम और समाज के लोग मिलकर ₹50,लाख पीड़ित परिवार को देंगे। अपराधी को फांसी और कड़े कानून के अलावा और कुछ अब मंजूर नहीं। यह बात उनकी मर्दानगी, स्वाभिमान को प्रदर्शित करती है। जातिवादी मनुवादी व्यवस्था को लाल करती है। समाज के नाम पर चुने गए जनप्रतिनिधि तो हिजड़े, निकम्मे दिखाई देते हैं।

कांग्रेसी विधायक रमेशचंद्र मेघवाल ने ऐसा कह कर ₹5लाख दिए जाने की घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुंह पर एक करारा तमाचा मारा है। जो प्रतिनिधि, समाज के साथ खड़े हैं।

जो समाज के हित में है, ऐसे जनप्रतिनिधियों की जरूरत है। हमें हिजड़ों की तरह अपने राजनीतिक दलों के आकाओं के समर्थन में ताली बजाने और हाथ खड़े करने वाले मानसिक गुलामों की जरूरत नहीं है। कांग्रेस और भाजपा दोनों मनुवादी राजनीतिक दल है। यह दोनों अनुसूचित जाति वर्ग, समाज के कल्याण,इस वर्ग के विकास की कल्पना तक नहीं करते।

राजस्थान के जालौर में तीसरी कक्षा के 9 वर्षीय अनुसूचित जाति के मासूम बच्चे इंद्र कुमार मेघवाल ने स्वर्ण जातिवादी शिक्षक के घड़े से पानी निकाल कर पीने पर गुस्साए हैवान छैल सिंह राजपूत शिक्षक ने छात्र कीअमानवीय रूप से पिटाई कर दी थी। पिटाई का वीडियो मेरे पास सुरक्षित है।

शिक्षक,, छैल सिंह, छात्र इंद्र कुमार को बड़ी बेरहमी से पीट रहा है, उसका छोटा भाई एवं उसका साथी चश्मदीद गवाह है। जिस ने मीडिया को बताया कि शिक्षक के घड़े से पानी पीने के कारण शिक्षक ने इंद्र कुमार की बर्बरता से पिटाई की है।

अन्य छात्रों को राजपूत ठाकुरों ने पुलिस प्रशासन एवं कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मिलीभगत साठगांठ कर छात्रों पर दबाव बनाकर, उन्हें झूठ बोलने मजबूर किया है। और झूठी कहानी रची गई है।

स्कूल में घड़ा ही नहीं था। सब टंकी से पानी पीते थे। उस घड़े की सच्चाई सामने आ गई है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण वीडियो में है। जो मेरे पास है। और इंद्र कुमार की छोटे भाई, मृत छात्र का साथी का वीडियो भी मेरे पास है। जिन्होंने बताया है कि, इंद्र कुमार ने घड़े से पानी निकालकर पिया था। इस वजह से छैलसिंह शिक्षक ने इंद्र कुमार को बुरी तरह पिटा।

और शिक्षक की पिटाई से छात्र की मौत हो गई है। देश की गोदी, दलाल मीडिया और दैनिक भास्कर का जातिवादी दोगलापन, इतनी बड़ी गंभीर दर्दनाक एवं शर्मनाक घटना को तोड़ मरोड़ कर हत्यारे जातिवादी शिक्षक को बचाने का प्रयास कर, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता को कलंकित करने का पाप कर रहे हैं।

इंद्र कुमार मेघवाल मासूम छात्र का हत्यारा जातिवादी छैल सिंह,, आर एस एस द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर का शिक्षक है। राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति की बात करने वाले संघ ने इस जातिवादी घटना की निंदा तक नहीं की है। बल्कि उस हेवान शिक्षक को बचाने कई षड्यंत्र रच रहे हैं। पानी का मटका स्कूल में ही था। उस मटके से इंद्र कुमार मेघवाल ने पानी निकालकर पी लिया था।

पानी पीते देख आगबबूला जातिवादी हैवान शिक्षक छैलसिंह राजपूत ने इंद्र कुमार की बड़ी ही बेरहमी से पिटाई कर दी थी। अब कानूनी दांवपेच से बचने और छुआछूत भेदभाव के कलंक से भयभीत मनु वादियों ने यहां से खड़ा हटा दिया है। और यह बताने का प्रयास किया जा रहा है, कि इस स्कूल में भेदभाव ही नहीं है। घड़ा ही नहीं था। जबकि राजस्थान छुआछूत भेदभाव और अत्याचार की जननी है।

और उसके संरक्षक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत है। जितने भी पिछड़े वर्ग से मुख्यमंत्री है। चाहे वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही क्यों न हो,, या अशोक गहलोत, या शिवराज सिंह चौहान, यह सब मनुवाद ब्राह्मणवाद के मानसिक गुलाम है। अछूतों के भाग्य का फैसला केवल संघर्ष में ही है।

हमें अपना भाग्य निर्माण करने के लिए अपनी कुर्बानी और संघर्ष का रास्ता अपनाना होगा। 1923 के पूर्व सार्वजनिक कुओं तालाबों से अछूतों को पानी पीने पर प्रतिबंध था। उसके बाद मुंबई सरकार ने एक कानून पास कर प्रतिबंध हटा दिया था। फिर भी अछूतों को सार्वजनिक कुओं तालाबों से पानी पीने की आजादी नहीं थी। तब महाराष्ट्र एवं गुजरात के अछूतों ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मुख्य आतिथ्य में महाड में एक प्रतिनिधि कान्फ्रेंस ली थी। उस कान्फ्रेंस में लगभग 10,000 लोगो ने भाग लिया था।

इस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा था, किसी जमाने में मेरे समाज के लोग इस भूमि पर छाती तान कर चलते थे। उस युग में हम ब्राह्मण क्षत्रियों वैश्यों से कहीं अधिक उन्नत और सभ्य थे। किंतु आज हमारी अधोगति की हालत देखकर हमें लज्जित होना पड़ता है। हमारे इस पतन का मुख्य कारण यह है, कि हमने सैनिकों का जीवन जीना छोड़ दिया है।

इस कारण हम अपने अधिकारों से वंचित है। हमें आज प्रतिज्ञा लेना होगा, जब तक हमें अपने जायज अधिकार नहीं मिलेंगे, तब तक हम इन अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे। जैसे ही प्रतिनिधी कान्फ्रेंस खत्म हुई, वैसे ही हजारों अछूतों का समूह,, काफिला डॉक्टर अंबेडकर के नेतृत्व में चावदार तालाब की ओर बढ़ा, काफिले को देख कट्टर हिंदुत्व हिंदूओ का खून खौल उठा था।

डॉक्टर अंबेडकर ने सबसे पहले महाड चौवदार तालाब का पानी पिया था। अछूतों के पानी पीने से हिंदुओं का धर्म भ्रष्ट हो गया, वे बौखलाए हुए कहने अछूतों के पानी पीने से तालाब का पानी अपवित्र हो गया है। हिंदू धर्म खतरे में पड़ गया है।

और आक्रोशित कट्टरपंथी हिंदुओं ने निहत्थे अछूतों पर लाठी, तलवारों को लेकर हमला कर दिया। उन पर टूट पड़े। यह सत्याग्रह आंदोलन में कई लोगों की जानें चली गई, और कई बुरी तरह से जख्मी हुए थे। यह हिंदुओं के हिंसक हमले का जवाब दिए जाने लाखों लोग तैयार थे। परंतु डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने खून खराबा नहीं चाहा।

महार तालाब सत्याग्रह आंदोलन का मुख्य मकसद था, कि जिस तालाब से कुत्ते बिल्ली पानी पी सकते हैं, परंतु हम पानी को छू भी नहीं सकते। इस बात का डॉक्टर अंबेडकर अपने समाज को एहसास कराना चाहते थे। इसलिए महाड सत्याग्रह किया गया था। उनका कहना था, कि हम इस तालाब का पानी नहीं पिएंगे तो मर नहीं जाएंगे, परंतु हमें अपने स्वाभिमान को बरकरार रखने के लिए यह आंदोलन करना पड़ा।

और आपको यह एहसास कराना पड़ा कि आप हिंदू नहीं हो, इसलिए आपको हिंदू धर्म त्यागना होगा। जिस धर्म में पशुओं की पूजा की जाती हो, और मनुष्य मनुष्य को छूना पाप समझता हो, वह धर्म कैसाॽ इसलिए धर्म परिवर्तन करना होगा। डॉक्टर अंबेडकर यह बताना चाहते थे कि हिंदू,, हमें कुत्ते बिल्ली से भी बदतर समझते हैं। इस तालाब से कुत्ते बिल्ली पानी पी सकते हैं, परंतु हम छू नहीं सकते। हमें पानी पीने की मनाई है।

भीमराव अंबेडकर जिस स्कूल में पढ़ते थे, उसी स्कूल के कक्षा शिक्षक ने छात्रों से एक प्रश्न पूछा था। ऐसी कौन सी वस्तु है, जिसे हम देख सकते हैं। परंतु छू नहीं सकते। कई छात्रों ने कहा,, हम सूर्य चंद्रमा और तारे देख सकते हैं। परंतु छू नहीं सकते। तब भीमराव अंबेडकर ने कहा था, मैं स्कूल में रखे पानी के मटके को देख सकता हूं, लेकिन छू नहीं सकता। यह मार्मिक उत्तर 100 वर्ष पूर्व भीमराव अंबेडकर ने दिया था।

यह उत्तर सुनकर 100 वर्ष पूर्व का शिक्षक शर्मसार हो गया था। परंतु आजादी के 75 वर्ष बाद जहां इस देश में आजादी अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। हमें संवैधानिक अधिकार है पानी पीने का,, उसके बावजूद छैल सिंह जैसा जातिवादी हैवान शिक्षक द्वारा एक मासूम बच्चे को घड़े से पानी पीने पर मौत के घाट उतारने के लिए वह शर्मसार नहीं हुआ।

भीमराव अंबेडकर को भी स्कूल में रखे घड़े से पानी पीने की मनाई थी। वह दिनभर प्यासे ही रह जाते थे। और घर जाकर ही पानी पीते थे। इसलिए उन्होंने आत्म सम्मान से जीने के लिए महाड सत्याग्रह , आंदोलन किया था। 1920 में मुंबई सरकार ने एक कानून लाकर सार्वजनिक कुएं तालाबों से अछूतों को पानी पीने पर लगे प्रतिबंध हटा दिया था।

उसके बावजूद अछूतों को सार्वजनिक कुएं तालाब से पानी पीने की मनाई थी। उस समय डॉक्टर अंबेडकर जिंदा थे। तो उन्होंने महाड आंदोलन सत्याग्रह किया था। अपने जीते जी आजाद भारत का संविधान लिखा, और हमें संवैधानिक अधिकार दिए। हमे सार्वजनिक कुएं तालाबों का पानी पीने का अधिकार दिया है। परंतु उसके बावजूद भी एक मासूम छात्र स्कूल में रखे घड़े का पानी पी लेता है, तो उसे मरते तक मारा जाता है।

इस अन्याय के खिलाफ, यदि उंगली पर गिनने लायक लोग संघर्ष करेंगे, तो पुनरावृति होना तय है। उस जमाने में पानी पीने की लड़ाई महाड तालाब सत्याग्रह में 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया था। मैं देख रहा हूं,राजस्थान के जालौर में हुई एक मासूम छात्र की हत्या के विरोध में चंद लोग मिलकर उसे आंदोलन का रूप देकर अपनी फॉर्मेलिटी निभा रहे हैं।

और कुछ मनुवादी मानसिकता के जीवन भर गुलाम, समर्थक रहे, वे नेतागिरी कर रहे हैं,और बड़े बेशर्मी से अपनी फोटो व्हाट्सएप कर रहें हैं। हमें उंगली पर गिनने लायक लोगों की नहीं, लाखों करोड़ों लोगों को, समाज को संगठित कर जातिवादी फासीवादी मनु वादियों के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष करने की सख्त जरूरत है। आज देश का संविधान, लोकतंत्र खतरे में है। जातिवादी, मनुवादी, हिंदू राष्ट्र संविधान,, वर्णव्यवस्था लागू की जाने कटिबद्ध एवं संकल्पित है। ऐसे भयानक दौर में चंद लोग नहीं, लाखों करोड़ों लोगों को इनके खिलाफ संघर्ष करना होगा।

अछूतों के भाग्य का फैसला, संघर्ष में ही है। और हमें अपना भाग्य निर्माण की जाने अपनी कुर्बानी और संघर्ष का रास्ता ही अपनाना होगा। डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को महार तालाब सत्याग्रह किया था। और 25 दिसंबर 1927 को हिंदु, ब्राह्मणों के पवित्र धर्म ग्रंथ मनुस्मृति का दहन इसी महाड में किया था। यह डॉक्टर अंबेडकर की दूसरी ऐतिहासिक सामाजिक क्रांति थी। 1950 में आजाद भारत का संविधान निर्माण कर हमें जो संवैधानिक अधिकार दिलाए थे। उन अधिकारों को कुचलने मनुवादी, डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान बदलकर हिंदूराष्ट्र संविधान ,,,वर्ण व्यवस्था, मनुस्मृति का संविधान, 2025 शताब्दी वर्ष में लागू करने आर एस एस भाजपा की सरकार संकल्पित और कटिबद्ध है।

इसलिए संगठित संघर्ष करो। समाज को संगठित करो। यदि संगठित संघर्ष नहीं किया गया तो, हम मनुवाद के गुलाम बन जाएंगे, और आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेंगी। सवाल खड़ा करेगीॽ तुम्हें जब गुलाम बनाया जा रहा था, तुम्हारे हक़ अधिकार छीने जा रहे थे, तब तुम लड़े क्यों नहीं ॽ इसलिए आने वाली पीढ़ी को गुलामी की जंजीरों से मुक्त रखें जाने संगठित संघर्ष करो, क्रांतिकारी जय भीम,,

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