अग्निवीर योजना को लेकर तरह तरह के सवाल पहले भी उठाए गए हैं लेकिन कोई मजाल कि इसके विरोध में बोल दे। सरकार ने इस देश की आर्मी में भी योजना लागू कर दी और अब पात्र – अपात्र का खेल हो सकता है। यह एक बेटे की जान गई है। वो भी अन्य फ़ौजियों की तरह ही देश की रक्षा में खड़ा था। क्या उसकी जान की कोई कीमत नहीं है? देश की रक्षा में अपनी जान देने वाला हर कोई देश का नागरिक फ़ौजी ही होता है। शहिद ही कहलाता है। यह तो अग्निवीर है इसने तो अग्नि परीक्षा दी है। सम्मान तो पुरा मिलना चाहिए।
कश्मीर में तैनात एक अग्निवीर की गोली लगने से मौत हो गई। अग्निवीर का नाम अमृतपाल सिंह था। उनका शव एक हवलदार और जवान गांव लेकर पहुंचे। खबरों के मुताबिक, उनके अंतिम संस्कार के दौरान आर्मी की ओर से कोई सलामी नहीं दी गई। समाज के प्रबुद्ध लोगों की दखल पर लोकल पुलिस ने सलामी दी- रणविजय सिंह
आज शहीद अग्निवीर अमृतपाल सिंह का पार्थिव शरीर उनके गांव कोटली कलां आया गया। जिसे 2 फ़ौजी भाई सिविल की प्राइवेट एंबुलेंस से छोड़ कर गए। जब ग्रामीणों ने पूछा तो उन्होंने बताया कि सरकार की नई नीति के तहत अग्निवीर को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया हैं। सलामी नहीं देनी है, फिर एसएसपी साहब से गांव वालों ने बात कर सलामी पुलिस वालों से दिलवाई। इसलिए पूर्व सैनिक अग्निवीर नीति का विरोध करते थे। पंजाब के 19 वर्षीय अमृतपाल सिंह अग्निवीर के तौर पर सेना में भर्ती हुए।
कश्मीर में 10 अक्टूबर को गोली लगने से वे शहीद हो गए। यहाँ उनकी बहनें कंधा दे रही हैं। इनके लिए न सैन्य सम्मान, न आर्मी की कोई यूनिट हैं। वो शहीद हैं लेकिन ये अग्निवीर योजना की असलियत पंजाब के रहने वाले अमृतपाल सिंह ने आयना दिखा दिया है जो अग्निवीर के तौर पर सेना में भर्ती हुए थे। वो कश्मीर में तैनात थे। 10 अक्टूबर को गोली लगने से वे शहीद हो गए। देश के लिए शहीद होने वाले अमृतपाल जी को सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई भी नहीं दी गई। उनका पार्थिव शरीर एक आर्मी हवलदार और दो जवान लेकर आए। इसके अलावा आर्मी की कोई यूनिट तक नहीं आई। यहां तक कि उनके पार्थिव शरीर को भी आर्मी वाहन के बजाए प्राइवेट एंबुलेंस से लाया गया। ये देश के शहीदों का अपमान है।
सोशल मीडिया पर अग्निवीर योजना को लेकर उठ रहे सवाल