कोचिंग और ट्यूशन सेंटर डमी स्कूल्स के जनक हैं। अक्सर कोचिंग और ट्यूशन सेंटर ही डमी स्कूल भी होते हैं या स्टूडेंट्स को डमी स्कूल प्रोवाइड कराते हैं। डमी स्कूल, कोचिंग कल्चर की ही ईजाद हैं। शिक्षा के धंधा हो जाने का यह अंतिम उपक्रम शिक्षा का ही
हत्यारा है। डमी स्कूल वो स्कूल हैं जिनमें विद्यार्थियों का केवल नामांकन होता है, पढ़ते वो कोचिंग में हैं। डमी स्कूल के स्टूडेंट पढ़ने विद्यालय नहीं कोचिंग या ट्यूशन सेंटर ही जाते हैं। कारण? किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में विद्यार्थियों का नियमित विद्यार्थी होना अनिवार्य है।
कहीं-कहीं तो 10वीं या 12वीं परीक्षा में 75 प्रतिशत के साथ उत्तीर्ण अंक आवशयक होते हैं।डमी विद्यालय विद्यार्थियों को हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल सर्टीफिकेट परीक्षा में नियमित परीक्षार्थी के रूप में सम्मिलित हो पाने हेतु पात्रता अटेंडेंस प्रदान करते हैं।
इन्हीं से संबंधित प्रैक्टिकल परीक्षा, आंतरिक मूल्यांकन आदि आयोजित करते हैं।कहने की ज़रूरत नहीं कि डमी स्कूल रेगुलर विद्यालयों को ख़त्म कर रहे हैं। किसी शहर में या दूरदराज इलाके में डमी स्कूल केंद्रीय विद्यालय या जवाहर नवोदय विद्यालय जैसे रेगुलर
विद्यालयों को अगर खत्म न भी कर पाएं, तो वो उन्हें कोंचिंग या ट्यूशन सेंटर की तरह चलने को बाध्य करते हैं। फलस्वरूप अच्छे से अच्छे विद्यालय बोर्ड परीक्षाओं में बेहतर रिजल्ट देने के लिए ही चलने लगते हैं।भारत में विद्यालयों को खत्म कर देने वाली डमी स्कूल व्यवस्था को हर कोई देख रहा है, लेकिन
दिखता किसी को नहीं है। हर किसी को समझ में आ रहा है लेकिन समझता कोई नहीं है। यह आजकल के डिजिटल फ्रॉड या ईवीएम सिस्टम की तरह है जिससे सभी जागरूक हैं लेकिन बच कोई नहीं पा रहा। अपराधियों के पकड़े जाने की ख़बर तो कभी आती ही नहीं।हर कोई जानता है कि भारत में कोई भी कोचिंग या
ट्यूशन सेंटर स्कूल की तरह नहीं होता, नहीं हो सकता। कोई भी कोचिंग या ट्यूशन सेंटर बहुत सुविधा जनक हो तब भी विद्यालय के संसाधन नहीं उपलब्ध करवा सकता। लेकिन इनका प्रभाव इतना सर्वग्रासी है कि हर स्कूल कोचिंग या ट्यूशन सेंटर या डमी स्कूल की तरह रिजल्ट
देने के भारी दवाब में होता है।क्या कोई देख सुन पा रहा है कि भारत के डॉक्टर और इंजीनियर डमी स्कूलों से निकल रहे हैं। ये अपने भावी जीवन में किन शैक्षणिक नैतिकताओं का पालन करने लायक हो पाते होंगे? जिस विद्यार्थी ने विद्यार्थी जीवन में अटेंडेंस के फ़र्ज़ी 75 परसेंट प्रॉप्त
किये थे वो एक्सीलेंस के क्षेत्र में कितना सच और कितना झूठ प्रतिशत उत्पन्न करेगा?नियमित विद्यालयों में परीक्षा में सम्मिलित हो पाने हेतु कम से कम 75 प्रतिशत उपस्थिति की अपेक्षा की जाती है। क्या विद्यालय यह न्यूनतम उपस्थिति भी जुटा पाते हैं?
शिक्षा बोर्ड क्या इसकी मॉनीटरिंग और रिकॉर्ड रख पाते हैं? अगर इतनी भी मॉनीटरिंग सम्भव नहीं तो शिक्षा बोर्ड करते क्या हैं?विकसित भारत बनते न्यू इंडिया में क्या विद्यालयों को नष्ट हो जाने से बचाया जा सकता है? इसकी गुहार कहाँ लगानी चाहिए? क्या बिना शिक्षा के कोई देश विश्व गुरु हो सकता है