लेखक निकुंज मालवीय
जी-20 सम्मेलन हेतु राष्ट्रपति द्वारा 9 सितम्बर शाम 7 बजे राष्ट्रपति भवन में महाभोज का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।, महाभोज के औपचारिक आमंत्रण पत्र में ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के स्थान पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया। राजनीतिक हल्कों में यह एक बहस का विषय बन गया ,क्योंकि हाल ही में विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. दिया है। भारत सरकार का ‘इंडिया’ के स्थान ‘भारत’ शब्द प्रयोग करना प्रतिक्रियावादी नीति की ओर संकेत करता है।
आइये ‘भारत’ और ‘इंडिया’ से जुड़े कुछ अन्य पहलुओं को जानने का प्रयास करते हैं। संविधान सभा के समक्ष देश के नाम का प्रश्न खड़ा हुआ तो डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि -” इंडिया को इतिहास में और निकट अतीत में भी ‘इंडिया’ नाम से जाना जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी ‘इंडिया’ नाम अंकित है, सारे वैश्विक समझौते भी इंडिया’ नाम से किए गए हैं।” अर्थात् डॉ अम्बेडकर ‘इंडिया’ नाम की वकालात कर रहे थे। वही कुछ सदस्यों का मानना था कि भारत को अपने प्राचीन नाम भारत’ से ही जाना जाना चाहिए। इस मत के समर्थक् सेठ गोविन्ददास कहते हैं कि-” हमें देश को वह नाम देना चाहिए जो हमारे इतिहास और संस्कृति को लाभान्वित करें।” गोविन्ददास जोर देकर कहते हैं कि- “चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपनी पुस्तक में ‘भारत’ नाम लिखा है। अत: देश को अपने प्राचीन नाम भारत से ही जाना जाना चाहिए।”
परिणामस्वरूप संविधान सभा में बहस के पश्चात “इंडिया डेट इज़ भारत” पर सहमति बनी। और इस तरह अंग्रेजी में ‘इंडिया’ शब्द और हिंदी में ‘भारत’ का प्रचलन शुरू हुआ।
देश के नाम के विवाद को लेकर एक रोचक प्रसंग यह भी है कि 1947 में मुस्लिम लीग ने दो स्वतंत्र हुए राष्ट्रों में भारत के ‘इंडिया’ नाम का विरोध किया। क्योंकि सन् 1932 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन में चौधरी रहमत अली ने पंजाब,अफगानिस्तान, कश्मीर ,सिंध और बलुचिस्तान के लिए ‘पाकिस्तान’ शब्द गढ़ा था। किन्तु मुस्लिम लीग इंडिया’ नाम भारत को नही देना चाहती, जब ब्रिटिश इंडिया का बटवारा हुआ तो भारत को ‘इंडिया’ नाम मिल जाने से अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सीधी मान्यता भारत को मिल जाएगी और पाकिस्तान इंडिया से पृथक हुए हिस्से के रूप में जाना जाएगा। लेकिन मुस्लिम लीग के तमाम विरोध के बावजूद ‘इंडिया’ नाम अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत के लिए स्वीकार किया गया । और पाकिस्तान एक इंडिया से पृथक होकर बना देश माना गया। पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय साख बनाने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा और जब उन्होने संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्या के लिए आवेदन किया तो अफगानिस्तान द्वारा इसका विरोध किया गया। लेकिन अन्ततः पाकिस्तान भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता लेने में सफल हो गया।
संविधान सभा द्वारा अंग्रेजी में भारत का संविधान अंगीकृत किया गया था ।बाद में 1950 ई. में संविधान सभा ने संकल्प पारित करके हिंदी अनुवाद को अंग्रीकृत किया। संविधान के अनुच्छेद 1(1) में अंग्रेजी भाषा में “इंडिया डेट इज़ भारत” जबकि हिन्दी में “भारत अर्थात इंडिया” वाक्यांश का प्रयोग किया गया है। अत: कहा जा सकता है कि कालान्तर में अंग्रेजी में ‘इंडिया’ और हिन्दी में ‘भारत’ शब्द का प्रचलन रहा जो कि एक दूसरे के पर्यायवाची की भूमिका में आकर खड़े हो गए।
अब हम चर्चा करते हैं- क्या वास्तव में ‘इंडिया’ नाम को हटा देना चाहिए?
‘इंडिया’ नाम हटाने के पीछे तर्क है कि यह औपनिवेशिक शासकों द्वारा दिया गया नाम है। और आज़ादी के अमृतकाल में हमें इस औपनिवेशिक नाम को हटा देना चाहिए। लेकिन प्रश्न यह है कि विभिन्न विदेशी आक्रमणों के माध्यम से आयी विदेशी संस्कृति को हम कैसे पृथक कर हटा पायेंगे? ध्यातव्य है कि ‘जय हिन्द’ के नारे में ‘हिन्द’ शब्द भी अरबी भाषा का शब्द है। ‘हिन्दू’ शब्द जो कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सूचक बना हुआ है- यह शब्द की पारसी भाषा का शब्द है। ‘जय हिंद’का नारा जो कि हमारी आत्मा में बस चुका है। क्या इस नारे को बदला जा सकता है?
हाल ही में तुर्की ने अपना नाम बदलकर ‘तुकीये ‘किया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम बदलना अपने आप में एक चुनौति है। इसके लिए एक बड़ी धन राशि खर्च होती है। क्या भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में इस खर्च को उठा पाएगी? जहाँ – गरीबी, बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
क्या भारत की वह जनता जो ‘भारत’ शब्द से अपने आप जोड़ नहीं पाती, वे इंडिया शब्द के साथ अखंडता और एकता का अनुभव करते हैं, क्या इसमें पैदा होने वाले अलगाव को शांत करने में हम सक्षम होंगे? ऐसे ही अनेक “प्रश्न इंडिया बनाम भारत” बहस से हमारे समक्ष खड़े हुए है। और हमें इन प्रश्नों के हल खोजने ही होंगे।