जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा देते हैं गुरु : प्रो. केजी सुरेश
व्यास पूजा के प्रसंग पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में ‘गुरु-शिष्य परम्परा’ पर व्याख्यान
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में व्यास पूजा के प्रसंग पर ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। शिक्षाविद एवं मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री डा. उमाशंकर पचौरी ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा भारत का प्राण तत्व है।
दुनिया में भारत को गुरु–शिष्य परंपरा के लिए जानते हैं। वहीं, कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि आदर्श शिक्षक अपने विद्यार्थी को सिर्फ परीक्षा में सफलता पाने के लिए नहीं अपितु जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिए तैयार करता है। मुख्य अतिथि डा. पचौरी ने कहा कि जब शिक्षक गुरुत्व का स्मरण करता है तो उसे शिक्षक का सामर्थ्य ध्यान आता है और शिक्षक का सामर्थ्य क्या है, इसे हम आचार्य चाणक्य, गुरु रामदास और रामकृष्ण परमहंस से लेकर विरजानंद तक के उदाहरणों से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में शिक्षक की चिंताएं बढ़ गयीं हैं इसलिए उसका प्रभाव क्षेत्र घट गया है। आवश्यकता है कि शिक्षक अपने गुरुत्व का स्मरण कर अपने चिंता क्षेत्र को घटाए ताकि उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़े। डॉ. पचौरी ने कहा कि युग कोई भी हो गुरु–शिष्य परंपरा राष्ट्र का निर्माण करती है। परिवर्तन की प्रक्रिया गुरु से शुरू होती है और उसका वाहक बनता है शिष्य।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि बहुत से लोगों को लगने लगा है कि जानकारियों के लिए गूगल उपलब्ध है तो गुरु की क्या आवश्यकता है? स्मरण रखें कि गूगल या इस तरह की सुविधा ज्ञान का विकल्प नहीं बन सकती। आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (एआई) में मानवीय स्पर्श नहीं है इसलिए एआई पर आधारित शिक्षा व्यवस्था हमें सर्वांगीण विकास की ओर नहीं ले जा सकती। इसलिए मशीन आधारित कोई भी व्यवस्था गुरु का स्थान नहीं ले सकती है। उन्होंने कहा कि आदर्श शिक्षक को स्वयं को कक्षा में अध्यापन तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयास करने चाहिए। इससे पूर्व कार्यक्रम के संयोजक सहायक प्राध्यापक डॉ. मणिकंठन नायर ने व्यास पूजा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि महर्षि वेद व्यास की स्मृति में भारत में व्यास पूजा या गुरु पूजा की परंपरा है।
वहीं, कार्यक्रम का संचालन कर रहे सहायक प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि वेद व्यास ने वेदों के ज्ञान को युगानुकूल करके समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। उनके प्रमुख ग्रन्थ ‘महाभारत’ को पंचम वेद कहा जाता है क्योंकि महाभारत में दुनिया का सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है। इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के ध्येय वाक्य का पाठ विकाश शर्मा ने किया। सहायक कुलसचिव विवेक सावरिकर ने सरस्वती एवं गुरुवंदना की। आभार प्रदर्शन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षकगण उपस्थित रहे।