आगामी आम चुनावों में अब कुछ ही दिनों का समय शेष है। निर्विवादित रूप से लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी के एक बार फिर सत्ता में आने के कयास लगाए जा रहे हैं। जहां बीजेपी अबकी बार 400 पार का नारा बुलंद कर रही है वहीं विरोधी खेमा लगातार पतझड़ का सामना करने पर मजबूर है। ऐसे में बहुत आसार है कि ब्रांड मोदी एक बार फिर बीजेपी को सत्ता में लाने और अपनी पीएम पद की कुर्सी बचाने में सफल होंगे। लेकिन इस बार वह लगभग डेढ़ साल ही प्रधानमंत्री के रूप में देश को अपनी सेवाएं दे पाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह पीएम मोदी की वर्तमान उम्र है। खुद बीजेपी आलाकमान जिसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, द्वारा बनाई गई 75 वर्ष की अलिखित सेवानिवृत्ति की आयु सीमा किसी से छिपी नहीं है और अपनी बात को पत्थर पर लकीर मानने वाले मोदी, इस बात और विषय की गंभीरता को भी अच्छी तरह समझते हैं। अब सवाल ये है कि सितम्बर 2025 में अपने ही बनाये नियम के अनुसार, जब पीएम मोदी अपने पद से इस्तीफा दे रहे होंगे, तब प्रधानमंत्री का उत्तराधिकारी कौन होगा? और क्या यही वो समय होगा जब बीजेपी के अंदर दो धड़े आमने सामने होंगे और प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए जंग करते नजर आएंगे?
चूँकि कांग्रेस पार्टी या इंडिया एलायंस में फिलहाल वह आत्मविश्वास नहीं झलकता है जो मोदी के जादुई तिलिस्म को भेद सके। नीति और नेता के अभाव वाली कांग्रेस अपना अस्तित्व खोती जा रही है तथा दिशा और नेतृत्व विहीन होकर चलने पर मजबूर है, जिसके आधार पर ये कहना भी आसान हो जाता है कि बीजेपी का विकल्प भी बीजेपी के पास ही नजर आता है। हालांकि पीएम मोदी का उनके पद से स्वेक्षापूर्वक हटना, बीजेपी को दो खेमों में बांटने का काम भी करने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 के बाद से मोदी-शाह की एक अलग बीजेपी प्रकाश में आई है। जिसमें ज्यादातर कांग्रेसी व अन्य दलों के नेता न केवल शामिल हैं बल्कि ऊंचे पदों पर बैठे हुए हैं। फिर वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय नेतृत्व में शामिल करने की बात हो या चह्वाण जैसे नेताओं को राज्यसभा और नीतीश कुमार जैसे व्यक्तिगत राजनीति में अधिक विश्वास रखने वाले नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी थमाने की बात हो।
इस नई बीजेपी में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो नए और बागी नेताओं को ही तोहफे के रूप में आगे बढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। लेकिन जैसे मरी मछली धारा के साथ बहती है और जिन्दा मछली धारा के विपरीत, उसी समान मूल बीजेपी जिसमें लाल कृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी से जुड़ी कड़ी से लेकर नीतिन गडकरी, उमा भारती या वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान, सुरेश प्रभु, मेनका गाँधी जैसे नेता शामिल हैं, उनके अपने हक़ की मांग लेकर आगे आने की संभावना है। इसमें नीति निर्माता कहे जाने वाले आरएसएस से जुड़े कुछ बड़े नाम भी शामिल हो सकते हैं, जो उन भाजपाइयों को किनारे करने की डिमांड कर सकते हैं जिन्होंने सालों कांग्रेसी या गैर बीजेपी विचारधारा से चलने के बाद, अपने निजी लाभों के लिए बीजेपी का दामन थामा हुआ है।
एक बात जो दबे स्वर में ही सही लेकिन बीजेपी के भीतर सुनने को मिलती है कि मोदी-शाह के आगे किसी की नहीं चलती, लेकिन जब मोदी अपने शब्दों को सिद्ध करने वाली अपनी भव्य छवि के नीचे और न चाहते हुए भी अपने पद से इस्तीफा दे रहे होंगे तो संभवतः अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी बाहरी और बागी नेता को ही चुन सकते हैं। बहुत आश्चर्य नहीं होगा यदि वो नाम मोदी के करीब और ख़ास लोगों में गिने जा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का हो। उम्मीद है नाम कोई ऐसा ही होगा जो मूल बीजेपी और आरएसएस के विश्वास मत से दूर होगा। यदि ऐसा होता है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी दो अलग-अलग खेमों में बंटी नजर आएगी।
एक वो जिसे मोदी-शाह की जोड़ी ने राजनीतिक लाभों के आधार पर तैयार किया है, दूसरी वे जिन्होंने बीजेपी को आधार दिया है। 2025 में भले मोदी पसंद का नेता उनके उत्तराधिकारी के रूप में कमान संभाले लेकिन यह स्थिति उस दीमक की तरह होगी जो पार्टी को अंदर ही अंदर खोखला कर रही होगी। इसके आधार पर हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि 2027 तक बीजेपी के अंदर ऐसी स्थिति बन चुकी होगी कि 2029 के लोकसभा चुनावों में एक पार्टी के बैनर तले दो धड़े मैदान में होंगे।
ये लड़ाई बेशक दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल के लिए ऐतिहासिक होगी और इसके बाद पीएम पद के लिए जो नाम सामने आएगा वो भी बीजेपी के एक नए अध्याय की शुरुआत की तरह होगा। हालांकि अंत में इस बात को ध्यान रखना भी जरुरी है कि उपरोक्त सभी अनुमान, आसार व गणना तभी सार्थक सिद्ध होंगे जब पीएम मोदी अपनी पार्टी के बनाये नियम, जो कई दिग्गजों पर लागू हो चुके हैं, पर टिके रहते हुए, अपने पद से इस्तीफा देंगे। हालांकि यहाँ ये भी गौर फ़रमाया जायेगा कि पंडित नेहरू के सबसे अधिक दिनों तक प्रधानमंत्री रहने के रिकॉर्ड को तोड़ने की मनसा के साथ बीजेपी खेमे द्वारा ऐसा कोई ऐसा कैम्पेन नहीं चलाया जा रहा होगा कि देश को सिर्फ मोदी की ही जरुरत है, मोदी नहीं तो देश नहीं।