पुण्यतिथि “सावित्री बाई फुले” प्रथम महिला शिक्षिका
कबीर मिशन समाचार
विजय सिंह बोड़ाना
उज्जैन मध्यप्रदेश
आज भारत की पहली महिला शिक्षिका के नाम से जानी जाने वाली सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि है। देश में उन्हें हर कोई नमन कर रहा है। क्योंकि उनके संघर्ष के बिना शिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाता है। 3 जनवरी 1831 को जन्मी सावित्री बाई फुले एक महान हस्ती में शामिल हैं। सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी ट्वीट में लिखा है, कि नारी सशक्तिकरण की अप्रतिम प्रतीक, देश की प्रथम महिला शिक्षिका एवं महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। नारी सशक्तिकरण, शिक्षा और शोषितों व वंचितों के उत्थान में आपका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
शिक्षा की इस ज्योति को प्रज्वलित करने में सावित्री बाई फुले के पति ज्योतिबा फुले ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इनका मूल उद्देश्य स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना रहा है। फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया।
ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।