“स्वाभिमान सुरक्षा का आंदोलन जोरदार ढंग से शुरू करना आज की स्थितियों में जरूरी हो गया है। इसी आंदोलन के बल पर स्पृश्य और अस्पृश्य के बीच के आपसी भिन्नता, भेदभाव के प्रति लोगों में अनुभूति होगी। पूरे समाज में समता स्थापित करने के लिए अवसर प्राप्त होगा।
अस्पृश्योद्धार आदि अस्पृश्यों के उद्धार के बारे में हवाई बातचीत करने के दिन अब लद चुके हैं। आज प्रत्यक्ष स्वाभिमान को जगाने का समय आन खड़ा है।अस्पृष्य समाज की हालत को देखें तो उनकी स्थिति के बारे में असंतोष, असमाधान दिखाई देगा।
अस्पृश्य माने गए समाज में जन्म से शामिल होने के कारण उच्चवर्ण के समाजबंधुओं से अधिक अलौकिक गुण होने के बावजूद वे कुछ कर नहीं पाते। उच्चवर्णियों द्वारा पैदा किए गए हालात हमारे, हमारे स्वाभिमानपूर्ण उद्देश्यों और कार्यों के राह के रोड़े बन रहे हैं। मंदिर प्रवेश, तालाब, कुएं आदि जगहों पर प्रवेश करने के लिए अस्पृश्यों को मना किया जाता है। उन पर अत्याचार किए जाते हैं। ऐसे हीन हालात से मुक्त होने के लिए अस्पृष्य बंधुओं को चाहिए कि वे अपना स्वाभिमान जगाएं और इंसानियत की रक्षा के लिए आर या पार की लड़ाई छेड़े।
केवल शिक्षा से अगर इंसानियत पाई जाती तो पढ़े-लिखे वर्ग की ओर से हम अस्पृष्य बंधुओ पर सुधार के इस अवसर पर अन्याय एवं अत्याचार नहीं किए जाते। एक षडयंत्र के तहत उच्च समाज द्वारा बेवजह हमारा दर्जा हीन बताया गया है। हीनता का यह कलंक धो डालने के लिए मुझे स्वाभिमान जगाने का यह मार्ग ठीक लगता है। इसीलिए मेरे बंधुओं, स्वाभिमान को जिंदा रखना। अपने पर हो रहे अन्यायपूर्ण अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह कीजिए। इसके बगैर हमें इंसानियत के सच्चे अधिकार कभी प्राप्त नहीं होंगे।” – डॉ. भीमराव अम्बेडकर