राजनीति नहीं, विकास हो प्राथमिक – श्री गिरिजाशंकर
पत्रकारिता विश्वविद्यालय में वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरिजा शंकर की पुस्तकों पर चर्चा
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में बुधवार को वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरिजा शंकर की पुस्तक ‘समकालीन राजनीति मध्यप्रदेश’ एवं ‘चुनावी राजनीति मध्यप्रदेश’ पर चर्चा का आयोजन किया गया।
पुस्तकालय विभाग द्वारा राधेश्याम शर्मा सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन पुस्तकालय विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. आरती सारंग ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. डॉ. अविनाश वाजपेयी द्वारा किया गया।
वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरिजा शंकर ने अपनी पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि जो तथ्य चुनावी मुद्दों का प्रभावित करते हैं, उन तथ्यों को उन्होंने अपनी पुस्तक में शामिल किया है। उन्होंने कहा कि इसमें उनके द्वारा किसी पत्रकार की पुस्तक या अखबारों में छपने वाली खबरों, कतरनों से अलग हटकर तथ्यात्मक आधार पर पुस्तक को लिखा है। श्री गिरिजा शंकर ने आजादी के पहले एवं बाद में मध्यप्रदेश की राजनीति को पुस्तक चर्चा के दौरान बहुत ही रोचकता एवं गंभीरता के साथ बताया।
राजनीति पर बात करते हुए श्री गिरिजाशंकर ने कहा कि आज राजनीति प्राथमिकता हो गई है जबकि विकास को प्राथमिकता होना चाहिए था। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि चुनाव में प्रबंधन होना बहुत जरूरी है एवं प्रबंधन से ही चुनाव जीते जाते हैं।
उन्होंने मध्यप्रदेश की राजनीति से जुड़े कुछ रोचक किस्से भी सुनाए। श्री गिरिजा शंकर ने कहा कि यदि लोकतंत्र को मजबूत करना है तो युवाओं, महिलाओं एवं किसानों के सशक्तिकरण से पहले नेताओं का सशक्तिकरण किया जाना आवश्यक है बाकी सभी का सशक्तिकरण अपने आप हो जाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने श्री गिरिजाशंकर की दोनों पुस्तकों की सराहना करते हुए कहा कि यदि विद्यार्थियों को मध्यप्रदेश की राजनीति को जानना-समझना है तो इन पुस्तकों को अवश्य पढ़ना चाहिए। प्रो. सुरेश ने कहा कि पत्रकारिता एक इतिहास है लेकिन बिखरे हुए मोती की तरह है। उन्होंने कहा इन मोतियों को इकट्ठा किया जाना बहुत आवश्यक है।
प्रो. सुरेश ने स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके अंतर्गत 75 वर्षों में प्रदेश की राजनीति में क्या-क्या हुआ इसे लिखने की आवश्यकता है। उन्होंने श्रुति एवं स्मृति की बात करते हुए कहा कि हम संतुष्टि में जीवन जीने वाले संतुष्ट प्राणी रहे हैं, यही वजह रही कि हमने कई चीजों का दस्तावेजीकरण नहीं किया।