“67 वे धम्म दीक्षा दिवस, मुक्ति दिवस पर विशेष”…!!!
बाबासाहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर ने अशोक विजयादशमी के दिन 14 अक्तूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धम्म ग्रहण कर भारत में तथागत बुद्ध के धम्म चक्र को पुनः गतिमान ही नहीं किया, बल्कि विश्व में नई धम्म क्रांति की पांच लाख से अधिक अछूतों को समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय पर आधारित बौद्ध धम्म की दीक्षा दी और हिंदू धर्म के सभी बंधन तोड़कर सदियों से वंचितों-अछूतों पर लादी गयी गुलामगिरी से मुक्ति दिलाई.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक के बाद यदि किसी के कारण बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्मांतरण हुआ तो वे बाबासाहेब अम्बेडकर ही एकमात्र महापुरुष है,उन्होंने ही भारत से लुप्त प्राय हो चुके बौद्ध धम्म को पुर्नस्थापित किया. लाखों अछूतों ने बाबासाहेब पर विश्वास रखकर एक क्षण में अपने पुराने हिंदू धर्म की सभी धारणा और कुरीतियों को त्यागकर बौद्ध धम्म अपना लिया. हिंदू संस्कृति का बोझ फेंककर नयी बौद्ध संस्कृति में दीक्षा ली. डॉ. अम्बेडकर ने परंपरावादी मूल्यों से नाता तोड़कर बुद्ध के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दलितों को अवगत कर उनके जीवन में आमूल परिवर्तन का मार्ग दिखाया।
बौद्ध धर्मांतरण समारोह में बाबासाहेब ने अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाऐं दी थी. जो की उनके लिऐ पथ प्रदर्शक सिद्ध हुई. इन प्रतिज्ञाओं से उन्होने अपने अनुयायियों को हिंदू धर्म की सभी मान्यताओं से मुक्त होने की शपथ दिलायी.उन्होने “हिंदू देवता ब्रम्हा, विष्णू, महेश, राम, कृष्ण, गौरी, गणपती को ईश्वर नही मानने की और बुद्ध को अवतार नहीं मानने की प्रतिज्ञा दिलाकर” अछूतों,वंचितों को हिंदू परंपरा से पूरी तरह बाहर निकाला. साथ ही धर्मांतरण की प्रतिज्ञा में ‘मै यह मानता हूं कि मेरा पुनर्जन्म हो रहा है’ की शपथ दिलाकर डॉ.अम्बेडकर ने अछूतों का धर्मांतरण ही नही तो सामाजिक और मानसिक परिवर्तन भी किया.इस परिवर्तन के दृष्य परिणाम अछूतों मे जल्द ही दिखने लगे.
डॉ.अम्बेडकर द्वारा दिखाया बौद्ध धर्मांतरण का मार्ग ही अछूतों के मुक्ति के लिए पथ प्रदर्शक साबित हुआ. शताब्दियों की जाति व्यवस्था से उन्हे स्वतंत्रता प्राप्त हुई. समता,बंधुता,न्याय पर आधारित बुद्ध के वैज्ञानिक विचारों को अपनाने से कतिपय अछूतों के जीवन में संपूर्ण परिवर्तन कर दिया. दीक्षा भूमि पर 14 अक्तूबर 1956 को धर्मांतरण समारोह के अपने ऐतिहासिक संबोधन में बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा था कि ‘‘13 अक्तूबर 1936 को नाशिक जिले के येवला में हमने निर्णय लिया था कि हमे हिंदू धर्म त्याग देना चाहिए.मैंने उसी समय प्रतिज्ञा की थी.‘मैंने हिंदू धर्म में जन्म लिया है,यह मेरे वश में नही था.लेकिन मै हिंदू रहकर मरूंगा नहीं’ मेरी यह 21 वर्ष की प्रतिज्ञा आज पूरी हुई है. मैं आज हर्ष से प्रफुल्लीत हूं. “मुझे प्रतीत होता है, आज मुझे हिंदू धर्म के नरक से छुटकारा मिल गया है.”
धर्मांतरण घोषणा पर चर्चा हेतू डॉ. अम्बेडकर ने 30 और 31 मई 1936 को मुंबई में महार जाति का सम्मेलन बुलाया था. इस सम्मेलन में उन्होंने हिंदू धर्म पर कड़े प्रहार कर धर्मांतरण के कारण भी गिनाये थे. उन्होंने कहा था ‘‘ – जब तक अस्पृश्य वर्ग हिंदू समाज का हिस्सा रहेंगा, तब तक उनकी जुल्मों से मुक्ति और उन्नति नहीं हो सकती. स्वतंत्रता पाने के लिये उनको हिंदू धर्म छोड़ना होगा. जब तक वे हिंदू बने रहेंगे, तब तक उन्हें अच्छे कपड़े,अच्छा भोजन,नौकरी,शिक्षा के अधिकार से वंचित ही रहना होगा.हिंदू धर्म में अधूतों के विकास के लिए विद्या,वित्त,और शस्त्र का अधिकार,वैयक्तिक स्वतंत्रता नकारी गयी है.जो धर्म इसलिए अनुकूल परिस्थिति निर्माण करेगा, उसे हमे अपनाना होगा।
बौद्ध धर्मांतरण से अछूतों में आत्मविश्वास जगा. उनमें आशावान और संभावनात्मक परिवर्तन हुआ है. बाबासाहेब अम्बेडकर इनके धर्मांतरण के पीछे समता,स्वतंत्रता, बंधुता और सामाजिक न्याय की पृष्ठभूमि है. उन्होंने एक नये समतामूलक समाज निर्माण की परिकल्पना की थी. जो नवबौद्ध समाज के रूप में आज दिखता है. प्रस्थापित वर्ण-व्यवस्था की परंपराओं, रूढ़ी, विषमता को त्यागकर इस समाज ने नवीन मूल्यों, परम्परा और आधुनिक मान्यताओं को स्वीकार किया है. डॉ.अम्बेडकर का अनुकरण कर रहे बहुजनो ने जाति की जंजीरो से मुक्ति ही नहीं पायी, जिस देश में शताब्दियों से अछूत का दंश झेला है, उसी भारत के हर क्षेत्र में अव्वल रहकर अपना लोहा मनवाया है।
यह परिवर्तन यकायक नहीं हुआ. महाराष्ट्र में अछूतों को धर्मांतरण करने के बाद भी अनेक जगहों पर हिंदुओं के जुल्मों सितम सहने पड़े थे. धर्मांतरित अछूतों की बस्तियों का बहिष्कार कर दिया गया. सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की मनाई की गयी. आटे की चक्की पर गेंहूं नहीं पीसकर दिया जाता था. किराना दुकानदार सामान देने से मना करते थे. डॉ. अम्बेडकर के साथ बौद्ध धर्मांतरण करने की सजा उन्हें दी जा रही थी. लेकिन धर्मांतरित अछूतों के हौसले बुलंद थे. पूरे आत्मविश्वास के साथ वे सभी संकटों का सामना करने के लिए तैयार थे। आत्म स्वाभिमान की ज्योत प्रज्वलित हो गयी थी।
उन्होंने परम्परागत सभी घृणास्पद काम करना बंद कर दिया था. मरे हुए जनावर उठाना,उनकी खाल निकालने का काम छोड़ दिया. अछूतपन के सभी कामों से उन्होंने मना कर दिया था. धर्मांतरण के बाद पहला परिवर्तन यह था.गांवो-कस्बों में घर की देवी-देवताओं की मूर्ती, प्रतिमाओं को नदी मे प्रवाहित कर दिया. अछूत बस्ती में हिंदू मंदिरों को या तो ताले लग गये या वहां की हिंदू देवता की मूर्ती हटाकर बुद्ध विहार बना दिये गये.बस्ती के मैदानों में पंचशील झेंडे लहराने लगे. जगह-जगह बाबासाहब डॉ.अम्बेडकर की प्रतिमायें खड़ी की गयी. तथागत बुद्ध की मूर्ती बैठायी गयी.अछूत बस्तियों में बुद्ध वंदना के स्वर गुंजने लगे.
हमे मुक्ति का मार्ग दिखाकर बाबा साहब जल्दी ही इस दुनिया से विदा हो गये, जो काम बहुजनो को सौपकर गये थे वह काम अधूरा रह गया हमारा बहुजन समाज टुकड़ो टुकड़ो में बट गया। नतीजा हम आज देख रहे है, आओ फिर से संकल्पित हो जाओ और बाबा साहब के सपनो का भारत बनाने का प्रयास करो।