भोपाल परिवहन विभाग के सेवा निवृत्त कांस्टेबल सौरभ शर्मा के बारे में जांच में एक बात सामने आई है कि उसने ज्यादातर चेक पोस्टों से उगाही की रकम जुटाने के लिए परिवहन
आयुक्त के पीए की मदद से अनुसूचित जाति और जन जाति के अफसरों को अपना एजेंट बनाया था। आरक्षित कोटे के अधिकारियों की पोस्टिंग इन नाकों पर कराई गई थी और फिर उन्हें महीने की एकमुश्त रकम देकर केवल दस्तखत करने की जवाबदारी थमा दी जाती थी।
उगाही की रकम सौरभ शर्मा के सहयोगी बटोरते थे और फिर आला अफसरों और नेताओं को उनका कमीशन पहुंचाकर चुप कर दिया जाता था।परिवहन विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि यदि इस मामले पर कोई अफसर आपत्ति करता था तो सरकार और शासन में बैठे अधिकारियों के फोन पहुंच जाते थे।
सौरभ को अनुकंपा नियुक्ति भी फर्जी थी और उसकी सेवा निवृत्ति को स्वीकार किया जाना भी फर्जी तरीके से किया गया था। पुलिस, आयकर महकमा ,लोकायुक्त जैसी तमाम एजेंसियां इस मामले के सभी पहलुओं को उजागर करने में जुटी हुई है।
हालांकि ये मामला आपसी रंजिश की वजह से सामने आया है किसी जांच एजेंसी ने इस मामले में पहल नहीं की थी।सूत्र बताते हैं कि सौरभ ने कई अधिकारियों को उनके कमीशन के बदले में ब्याज देने का वादा किया था। अफसरों से कहा गया था कि आपकी रकम हमने अपने सहयोगियों के मार्फत ब्याज पर चढ़ा दी है।
आपको हर महीने राशि का पांच प्रतिशत ब्याज मिल जाएगा। ब्याज की ये राशि उसने थोड़े दिनों तक तो दी लेकिन बाद में आना कानी करने लगा। आपसी टसल की वजह से ही उसके सोने, चांदी और नगद राशि की जब्ती कराई गई है।
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