24 जुलाई 1824 को अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे अमर शहीद कुंवर चैन सिंह
देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली सशस्त्र क्रांति 1858 में प्रारंभ हुई और देश भर में अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई गयी तथा अनेक वीर सपूतों ने अंग्रेजी सेना से लड़ाई करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस क्रांति का नायक शहीद मंगल पाण्डे को माना जाता है। मेरठ क्रांति के 33 साल पहले ही इस क्रांति की शुरूआत हो चुकी थी। मालवा अंचल में अनेक वीरों ने अंग्रेजी सेना से बगावत कर युद्ध लड़ा और अपने प्राणों का बलिदान किया। स्वतंत्रता के इतिहास में सीहोर जिले की अन्य घटनाओं के साथ ही अमर शहीद कुंवर चैन सिंह की शहादत भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। सीहोर स्थित कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गॉड ऑफ ऑनर की परम्परा मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से शुरू की।
सन् 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी और भोपाल के तत्कालीन नवाब के बीच हुए समझौते के बाद कंपनी ने सीहोर में एक हजार सैनिकों की छावनी बनाई। कंपनी द्वारा नियुक्त पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को इस फौजी टुकड़ी की कमान सौंपी गई। समझौते के तहत मैडॉक को भोपाल सहित नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ रियासत से संबंधित राजनीतिक अधिकार दिए गए। इस फैसले को नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज अमर शहीद कुंवर चैन सिंह ने गुलामी की निशानी मानते हुए स्वीकार नहीं किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
उन्होंने अंग्रेजो के वफादार दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा को मार दिया। इन दोनों की हत्या के अभियोग से बचने के लिए अंग्रेजो ने कुछ शर्तें रखी जिसे कुंवर चैन सिंह ने ठुकरा दिया। अमर शहीद कुंवर चैन सिंह 24 जुलाई 1824 की दोपहर अपने घोड़े पर बैठकर कैम्प से बाहर जाने लगे तब अंग्रेजों के कर्मचारियों ने उन्हें यह कहते हुए रोका दिया कि आपको कैम्प से बाहर जाने की इजाजत नहीं है। इससे कुंवर चैन सिंह का स्वाभिमान आहत हुआ। उन्हें ब्रिटिश हुकुमत की गुलामी कतई स्वीकार नहीं थी।
वे मेडॉक और जॉनसन के आदेश की अवहेलना कर कैम्प से बाहर चले गये। मना करने के बाद भी कुंवर चैन सिंह के बाहर चले जाने से युद्ध की आशंका के चलते मेडॉक ने सेना को बुलवाने का प्रबंध किया और यह सेना डाबरी की छावनी, सीहोर की छावनी, भोपाल तथा होशंगाबाद से बुलवाई थी। लगभग 5 से 6 हजार सैनिक सीहोर पहुंच चुके थे। अंग्रेजी सेना ने 24 जुलाई 1824 की रात्रि में कुंवर चैन सिंह के कैम्प को घेर लिया और अंग्रेजी फौज द्वारा आक्रमण कर दिया गया। कुंवर चैन सिंह अपने विश्वस्त साथी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित 43 सैनिकों के साथ अंग्रेजी फौज का वीरतापूर्वक सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आगाज किया।