धार – डिप्टी कलेक्टर के.कटारे के माध्यम से ज्ञापन सौंपकर ज्ञापन में बताया कि आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) कोर्ट से अलग रखा जाए क्योंकि आदिवासी अनुसूचित जनजातियों के रीति रिवाज परंपरा अलग विवाह संविधान के अनुपालन 13 ,3,क संविधान अनुच्छेद 44 राज्य नीति निर्देशक तत्व अनुसार समान नागरिक संहिता देशभर में अनुसूचित जनजाति विस्थापित और प्रवासी आदिवासियों पर संवैधानिक संकट खड़ी कर सकती है। देश भर के लगभग 500 से अधिक आदिवासी समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में संविधान अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 के तहत अनुच्छेद 342 366 25 के तहत अधिसूचित किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की नीति निर्देशक तत्व की बाध्यता न होने के कारण तथा संविधान पूर्व करार संधि ( substantial question) होने के कारण यूनिफार्म सिविल कोड/ एक समान नागरिक संहिता को समस्त आदिवासी समुदाय पर, आदिवासी क्षेत्रों में लागू न करें, अन्यथा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संवैधानिक संकट द्वारा संज्ञान लेने पर देश के समस्त आदिवासी क्षेत्रों की विलय पर वाइट पेपर एग्रीमेंट, संविधान सभा में आदिवासियों के प्रतिनिधि, संविधान सभा में आदिवासी क्षेत्रों के लिए लिखित कई वाद विवाद, ब्रिटिश इटली का 3 जून 1947 का प्लान, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947, अनुच्छेद 370,371,372 (1,2), अनुच्छेद 13 पर प्रश्न खड़ा न हो जाए, संवैधानिक संकट न उत्पन्न हो जाएं।
संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की नीति निर्देशक तत्व की बाध्यता न होने के कारण तथा संविधान पूर्व करार संधि (substantial question) होने के कारण यूनिफार्म सिविल कोड/ एक समान नागरिक संहिता को समस्त आदिवासी समुदाय पर, आदिवासी क्षेत्रों( इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 सेक्शन 7 a,b,c, GOI act section 311 में लागू न करें। यूनिफॉर्म सिविल कोड देशभर के आदिवासियों पर अनुसूचित जनजाति पर लागू होगा तो अनुसूचित जनजाति के सृष्टि के स्टेट पर खतरा है जल जंगल जमीन पर खतरा है पांचवी अनुसूची पर खतरा है।
साथ ही संविधान के अनुच्छेद 334 के तहत लोकसभा और विधानसभा MP, MAL अनुसूचित जनजाति आरक्षण का प्रावधान है वह भी एसटी के स्टेट में खत्म होने के साथ आरक्षण भी समाप्त हो जाएगा इसलिए एक समान नागरिक संहिता यूनिफॉर्म सिविल कोड अनुसूचित जनजाति आदिवासी विस्थापित, आदिवासी प्रवासित पर लागू ना हो सुप्रीम कोर्ट के समानता बनाम आंध्र प्रदेश 1997 जजमेंट के अनुसार 5वी अनुसूची का उद्देश्य आदिवासी स्वायत्तता संरक्षित करना है
इसको लेकर माननीय विधि आयोग व महामहिम राष्ट्रपति महोदय राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के नाम ज्ञापन सौंपा ज्ञापन के दौरान आदिवासी छात्र संगठन प्रदेश उपाध्यक्ष महेश डामोर, अखिलेश डामोर,विजय सिंह चोपड़ा,चिन्टु गिरवाल, रोहित भड़काया, कमलेश डावर,प्रविण कटारे, कन्हैयालाल मालिवाड आकाश कटारे ,राज वसुनिया, नारायण भूरिया, राहुल वसुनिया, अन्य छात्र संगठन व जयस के कार्यकर्ता उपस्थित थे।