कबीर मिशन समाचार पत्र भिण्ड
गोहद -गोहद तहसील के वार्ड 16 बसारा गांव में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन 16 फरवरी से किया जा रहा है। जहां कथा के दूसरे दिन कथा व्यास पंडित संतोष शास्त्री ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को जान से मारना ही हत्या नहीं है। इज्जत दार व्यक्ति की सार्वजनिक रूप से बेज्जती करना भी आज इज्जत दार की मौत के बराबर है पांडवो ने अश्वत्थामा के व्यवहार से व्यथित होने के बाद भी मारा नहीं अपितु सार्वजनिक रूप से आधे सिर एवं आधी मूंछों के बाल काट दिए। जिससे उसकी बेज्जती हुई।
अपनी इस बेज्जती के कारण अश्वत्थामा ने प्रतिज्ञा ली कि पांडवों के कुल में कोई नहीं रहेगा।इसी के कारण अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा जिससे कान्हा ने रक्षा की।वहीं कथा के दौरान बताया कि शकुनि ने भीष्म पितामह से सेनापति का कार्य हटाकर कर्म को सेनापति बनाने का निर्णय लिया तब भीष्म ने प्रतिज्ञा ली कि कल के युद्ध में एक पांडव का वध किया जाएगा इससे व्यथित होकर श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि आपको चूड़ी पहनकर एवं मेहंदी लगाकर भीष्म पितामह के पास जाना होगा। और उनसे प्रणाम करके आशीर्वाद लेना होगा।
क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा दृढ़ है यह बात सुनकर द्रोपदी आशीर्वाद लेने के लिए चल दी तभी कृष्ण भी साथ में चल दिए और द्रोपदी की चप्पलों की आवाज हो रही थी जिन्हें उतरवा कर श्री कृष्णा ने अपने पीतांबर में बांधकर कांख में दबा लिया। द्रौपदी जब भीष्म पितामह के सामने पहुंची और प्रणाम किया तो उन्होंने दुर्योधन की पत्नी समझकर बिना देखे ही सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया इस पर द्रौपदी ने कहा हे पितामह कल आपने एक पांडव को करने का संकल्प लिया है वहीं आज मुझे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया है यह दोनों कैसे संभव है यह सुन भीष्म पिता ने कहा कि तुम किसके साथ आई हो जब द्रौपदी ने पीछे मुड़कर देखा तो भीष्म पिता समझ गए और दरवाजे के बाहर जाकर देखा तो श्री कृष्ण अपने पीतांबर को ओड़े हुए खड़े थे।जैसे ही पीतांबर को कांख में दबे होने को खींचा तो द्रोपदी की चप्पल नीचे गिर गई ।तब भीष्म पिता ने कहा कि जिसकी चप्पलों को भगवान उठाते हो भला उसको कौन विधवा बन सकता है।और युद्ध में खुद ही बाणों की सैया पर सो गए। कथा का आयोजन राजा भैया गुर्जर द्वारा कराया जा रहा है।