भारत में जन्में महान आत्म ज्ञानी परम , ब्रह्म ज्ञानी सॅत सम्राट कबीर साहेब के 626 वे प्रकट दिवस पर
भारतीय दलित साहित्य अकादमी चितोडगढ जिला अध्यक्ष ,मदन सालवी ओजस्वी लिखते है ,धन्य हे वे जिन्होने जल्द ही संत कबीर साहेब की बताई हकीकत को समझ लिया, तथा उनके बताऐ मार्ग पर पुरा पुरा चलते हूऐ अंधकार की ताकतों से बाहर निकल गये।
ओजस्वी लिखते हे कि हमारे भीतर स्वास का आना जाना ही इश्वर है फिर उसे पाने के लिए, उसे समझने के लिऐ भटकाव होना, ना समझी है। जीवन को जानबूझकर नष्ट करना है।
सतं साहेब कबीर फरमाते हे कि इश्वर हमारे भले नेक सही आचरण में निहीत है। वह तो तिल के भीतर तैल की तरह से है।
एक हवा हे भीतर जिसे आत्मा नाम दे दिया गया है। यह हवा हे तब तक हे जीवन ।इसके बाद कुछ भी नही।
यह जीवन सदाचार से रहने, भलाई व पुण्य कर्म करने के लिए है।
भीतर नफ़रत कपट रखकर कोई भी मरने के बाद स्वर्गीय होना चाहे या बताऐ यह सरासर ग
कबीर मिशन – संजय सूर्यवंशी संवाददाता सिहोर
सिहोर – तो तिल में तैल ओर चकमक में आग की तरह से हे। आप उसे कहां कहां ढूढ़ने में अपने को नष्ट कर रहे हो जानी ओजस्वी
समाज सुधारकर, क्रान्तिकारी संत निराकार ब्रह्म को समझने, समझाने वाले, भक्तिकाल के निर्गुणी संत सम्राट साहेब कबीर को पढ़कर, समझकर उनके बताऐ मार्ग पर जो चल देता है, वह फिर किसी धोखे में अंधकार में नही रहता। 1398 ईस्वी में उतर प्रदेश के वाराणसी जिले के लहरतारा नामक स्थान पर कबीर का प्रकट होना, लालन पालन, जुलहा नीरज नीमा दम्पति द्वारा किया जाना तथा धार्मिक शिक्षा गुरू रामानन्द सा लेना व समाज सुधारक अंधविश्वास रूढ़िवाद आडम्बर के विरूद्ध लगातार प्रयास करते रहै। सॅत कबीर का भाव सदेव काव्यात्मक रहा है।
संत महात्मा इस भारत भूमि पर अनेको हूए हे ,समय समय पर उन्होने अपने दिव्य आलौकिक ज्ञान से इस जगत को अंधकार से बाहर लाने, जिस मार्ग पर चलना चाहिए उस मार्ग को दिखाने, सावधान, सचेत करने में काफी महनत करके समझाते रहे।
इन महान जगत में , एक महान आंतरिक ओर आलौकिक सॅत हूऐ हे साहेब कबीर। साहेब कबीर जेसे सॅत का होना , उनके द्वारा इस जगत को हकीक़त से अवगत कराना, अंधविश्वास रूढ़िवाद आडम्बर से नूकसान समझाना , इस भटकाव भरी मानवी जमात को बचाने के लिए अनेको उदाहरण तथा अपने भजन, दोहों ओर ज्ञान से बाहर लाना चाहा, दूनिया में लाखो लाखों लोग हे जो साहेब सॅत कबीर साहेब को थोडा सा समझकर पढकर ही महान सॅत बन कर बैठे है। हकीकत को समझकर अंधकार से बाहर निकल चुके है।
संत सम्राट ने इस जगत के भटकते लोगों को बताया कि इश्वर को आप क्या समझते है– इश्वर तो ऐसे है जेसे तिल में तेल, चकमक में आग।
हम नासमझी से बाहर निकलना ही नही चाहते है तथा दोडे जा रहे है, अंधकार के दल दल में। पाहन पूझे हरि मिले, में पूजूं पहाड, इससे तो चाकी भली पीस खास सॅसार।
इस बात को भी नही समजा ओर हर रोज इस भटकाव में ना जाने कितने ही लोग अपने को आडम्बर में उलझाकर मोत को गले लगा रहे है, भटकाव के दोडा दोडी में टकरा टकरा कर मर रहे है। राग द्वेष तो भीतर से बिना मिटे ही, अपने को मरने के बाद स्वर्गीय बताने ओर बनाने में लगे है, दूकान लगाकर।
स्वांस का आना ओर जाना ही इश्वर है। संतों की बातों को सुनते भी है मगर उन बातो पर यदि अम्ल किया जाऐ तो अन्याय अपराध, नफरतें पाप इस जगत में रहे ही नही।
भारत में जन्में महान आत्म ज्ञानी परम , ब्रह्म ज्ञानी संत सम्राट कबीर साहेब के 626 वे प्रकट दिवस पर
भारतीय दलित साहित्य अकादमी चितोडगढ जिला अध्यक्ष ,मदन सालवी ओजस्वी लिखते है ,धन्य हे वे जिन्होने जल्द ही संत कबीर साहेब की बताई हकीकत को समझ लिया, तथा उनके बताऐ मार्ग पर पुरा पुरा चलते हूऐ अंधकार की ताकतों से बाहर निकल गये।
ओजस्वी लिखते हे कि हमारे भीतर स्वास का आना जाना ही इश्वर है फिर उसे पाने के लिए, उसे समझने के लिऐ भटकाव होना, ना समझी है। जीवन को जानबूझकर नष्ट करना है।
सतं साहेब कबीर फरमाते हे कि इश्वर हमारे भले नेक सही आचरण में निहीत है। वह तो तिल के भीतर तैल की तरह से है।
एक हवा हे भीतर जिसे आत्मा नाम दे दिया गया है। यह हवा हे तब तक हे जीवन ।इसके बाद कुछ भी नही।
यह जीवन सदाचार से रहने, भलाई व पुण्य कर्म करने के लिए है।
भीतर नफ़रत कपट रखकर कोई भी मरने के बाद स्वर्गीय होना चाहे या बताऐ यह सरासर गलत है।
मनुष्य जीवन से अच्छा ओर बहतरीन जीवन ओर कोई भी नही है मगर हमें भटकाने वाले ही है सब तरफ, । सतं कबीर से हमें दूर कर दिया ताकि हम उनको समझ कर बदल ना जाऐ। जिन लोगों ने सॅत कबीर को समझ लिया उनके जीवन का बदलाव साफ जताता हे, वह प्राणी दिखावा नही करता, आडम्बर में जीवन नही जीता।
संत कबीर साहेब को सुनकर पढकर, उनके बताये रास्ते पर चलना , आचरण व्यवहार, अनुसरण करते हूऐ चलना ही जीवन है। बाकि तो सब
अपने आप से धोखा कर रहे है।
जो कोई भी संत कबीर साहेब को पढकर समझ लेगा वह फिर किसी अंधकार में ना रहेगा।
मदन सालवी ओजस्वी
क्रान्तिकारी समाजसुधारक लेखक
जिलाध्यक्ष भारतीय दलित साहित्य अकादमी
चितोडगढ राजस्थान