नामी मिठाइयों की दुकानों व उनके गोदामों पर खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा क्यों नहीं की जा रही छापेमारी
प्रदीप कुमार नायक
दीपावली खुशियों का त्योहार है। ऐसे में मिठाई और विशेष व्यंजन लाजिमी है। लेकिन जरा सावधान हो जाइए..! बाजार में मिलावटी मिठाइयों की भरमार है। थोड़ी सी लापरवाही हुई नहीं कि नकली खाद्य पदार्थ हमारे पाचन तंत्र को बिगाड़ कर रख देगा।
त्योहारों के इस समय में कहीं आपका स्वाद फीका ना हो जाए इस लिए मधुबनी खाद्य एवं औषधि विभाग समेत प्रशासन नकली मिठाइयों की बिक्री को लेकर चौकन्ना हो गए हैं।
त्योहारों के आने से पहले ही बाजारों में मिलावटी मिठाइयों का कारोबार शुरू हो गया है। दूध के दाम बढ़ने से अब दूध से बनने वाली मिठाइयों की जगह पावडर से मिठाइयां तैयार की जा रही है। साथ ही इन्हें आकर्षित बनाने के लिए केमिकल रंगों का प्रयोग किया जा रहा है।खास बात यह है कि मिलावटी होने के कारण इनके दाम भी ज्यादा नहीं हैं। त्योहार से पहले ऐसी मिठाइयों का स्टॉक तैयार किया जाने लगा है। ज्ञात रहे कि दीपावली के त्योहार पर मिठाइयों की विक्री बढ़ जाती है। लोग त्यौहार के लिए बाजार से मिठाई खरीदते हैं। इसके चलते दीपावली में मिठाइयों की जमकर विक्री होती हैं। ऐसे में दूध व दूध से बने अन्य पदार्थों व लेबर के रेट बढ़ जाने के कारण इन दिनों मधुबनी जिला मुख्यालय सहित जयनगर, खजौली, राजनगर,बाबूबरही, खुटौना के अलावे छोटे बाजारों के अनेक हलवाई खुद मिठाइयों बनाने की बजाय बाहरी हलवाइयों से ठेके पर मिठाई बनवा रहे हैं। यही कारण है कि मिठाई के कारोबार में ज्यादा लाभ कमाने के लिए मिलावट चल रही है।
वहीं बेसन महंगा होने के कारण मिठाई बनाने वाले सस्ती मैदा व पीले केमिकल युक्त रंग का उपयोग कर मिठाई बना रहे हैं। लड्डू व पीली बरफी बनाने में यही मिलावट की जा रही है। एक मिठाई निर्माता ने बताया कि बेसन 70 रुपए किलो मिलता है जबकि मैदा 22 रुपए किलो। ऐसे में मैदा में पीला कैमिकल युक्त रंग मिलाकर उसकी बूूंदी से लड्डू तैयार किये जाते हैं। इसके दाम भी कम रखे जाते हैं जिससे ग्राहक इसे खरीदने के लिए तैयार हो जात हैं।वहीं बताया जाता है कि अच्छी किस्म के कुकिंग ऑलय के दाम 140 रुपए किलो तक हैं। ऐसे में सस्ता ऑयल बूंदी, बरफी व सोन पपड़ी बनाने में किया जाता है। घटिया क्वालिटी की रिफाइंड का उपयोग करते समय इनमें माल की क्वालिटी बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के एसेंस की खुशबू डाली जाती है। जिससे लोगों को घटिया क्वालिटी का माल होने का एहसास न हो। जानकारी के अनुसार यह मिठाई ठेके पर काम करने वालों से दुकानदारों को 80 से 100 रुपये किलो तक में मिल जाती है जिसे वह 200 रुपये किलो तक ग्राहकों को देते हैं। ग्राहक भी कम दाम के चलते इनको ले जाता है।
खोवा की जगह सपरेटा व पाउडर का इस्तेमाल
इसी तरह खोवा की मिठाई भी अन्य विकल्पों से तैयार की जा रही है। जिसमें चावल का पावडर, दूध पाउडर से निर्मित खोआ, क्रीम रहित दूध से बना खोवा आदि का उपयोग मिलावट खोरो द्वारा किया जा रहा है। इससे तैयार मिठाई 80 रुपए किलो तक थोक में मिल जाती है। इसी मिठाई को कुछ दुकानदार अपनी दुकानों में सजाकर रखते हैं और 200 रुपए किलो तक के भाव पर बेचते हैं।
जैसे _जैसे दीपावली त्यौहार करीब आ रहा है मिठाईयां की दुकान सजाने लगी वैष्णव, साकेत, केमिकल की मिठाइयां बाजार में धड़ल्ले से बिकने वाली हैं क्षेत्रवासी किस सेहत के ऊपर हानिकारक साबित होने वाली ऐसे में जिम्मेदार अधिकारी जांच के नाम पर खानापूर्ति हो सकता है सवाल जांच करने वाले अधिकारी जांच करें इन दुकानों पर इन दुकानों को खुला छोड़ देंगे ग्रामीण क्षेत्र वासियों को होना पड़ेगा केमिकल से बनी मिठाइयों का शिकार।