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छतरपुर। आदमी तो दलित है पुलिस वाला है तो क्या हुआ? पुलिस की मौजूदगी में निकल पुलिस वाले दुल्हे का जूलुस

इस खबर और घटना से शायद ही किसी को फर्क पड़ता हो या नहीं लेकिन अपने आप को सभ्य समाज कहने वाले इतने नीचे गिर जाएंगे इसका अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। मप्र का एक एक जिला नहीं बचा है जहां ऐसी खबरें नहीं आ रही है। फिर संविधान के बाद बनी सभी सरकारों ने समाजिक तानाबाना क्यों नहीं बदला। एक पुलिस वाले दुल्हे का जूलुस घोड़ी पर सवार होकर निकालने के लिए भी पुलिस की मदद लेनी पड़े इससे अच्छे दिन और क्या हो सकते हैं।

जिले के ग्राम कुण्डलया में दलित दूल्हे की बारात गांव के लोगों ने घोड़ी से नहीं निकलने दी है। हमने अभी तक सुना था कि समाज सभ्य हो गया है लेकिन आज भी ऐसे कई मामले सामने आ रही है और हद तो अब हो गई कि पुलिस वाले को घोड़ी पर नहीं बैठने दे रहे हैं। मामला छतरपुर जिले के कुण्डलया गांव में सामने आया है। कुण्डलया गांव के पुलिस आरक्षक दयाचंद अहिरवार की बारात पुलिस के पहरे में निकली है।

बारात जाने से पहले गांव में दुल्हे का जूलुस निकाला जाता है पुलिस आरक्षक की गांव में घोड़ी पर बैठकर बनौरी निकालनी थी। उसके बाद लड़की पक्ष के यहां बारात जानी थी। इसके बाद गांव में विवाद शुरू हो गया। मामला बिगड़ता देखकर परिवार के लोगों ने दूल्हे को मना लिया और घोड़ी बैठकर नहीं निकलने दिया। इसके बाद दूल्हा बारात लेकर चल गया है। वहीं, आरक्षक दूल्हे को यह रिवाज और दबंगई रास नहीं आई।

उसने पुलिस विभाग में इसे लेकर अपने अधिकारियों से बात की। यह खबर जिले के प्रशासनिक महकमे में आग की तरफ फैल गई। बारात लौटने के दूसरे दिन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में गांव में आरक्षक का जूलुस घोड़ी पर बैठाकर निकाली गई। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच गांव में दूल्हे को घुमाया गया है।

रोज ऐसी खबरें गांवों से निकल आ रही जहां दलितों की बारात घोड़ी से नहीं निकल सकती है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों से आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं। दयाचंद अभी टीकमगढ़ कोतवाली में आरक्षक के पद पर तैनात है।

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