राहुल मेहर 8463011225
मंदसौर जिले की गरोठ तहसील के चचावदा पठारी में चंबल नदी के तट पर पांडवकालीन शंखोद्वार मेला लगता है। मान्यता है कि पांडवों ने युद्ध में मारे गए परिजन और सैनिकों की आत्माओं की मुक्ति के लिए यहां सबसे पहले तर्पण किया था। तभी से यहां सड़क दुर्घटना सहित अन्य कारणाें से मौत का शिकार होने वालों की मुक्ति और सद्गति के लिए देशभर से लोग आते हैं। चंबल नदी के पावन तट डूब क्षेत्र में 151 साल से भी ज्यादा समय से शंखाेद्वार मेला लग रहा है जहां भेरू बावजी का स्थान है। कार्तिक शुक्ल (सुदी) पक्ष की ग्यारस से पूर्णिमा तक लगने वाले मेले में मप्र ही नहीं देशभर के कौने-कौने से लोग पितरों (पूर्वजों) की मुक्ति की आस से आते हैं। इस बार भी नवंबर मे मेला लगा है। वैसे तर्पण कार्य के लिए तेरस और चौदस की रात का ज्यादा महत्व है।
अकाल मृत्यु पर नोत कर लाते हैं पितरों को
इसी मान्यता के चलते लोग आते हैं। परिजन यहां पूजन करके आत्मा काे मुक्ति दिलाते हैं। शंखोद्वार मेले में आने के पहले घर पर रातजगा दिया जाता है। जहां पितरों को यहां आने के लिए नोतते हैं। घर से निकलते वक्त उन्हें चलने के लिए कहते हैं। बस, ट्रेन या अन्य वाहन से आने पर पूर्वज के लिए एक सीट रिजर्व रहती है। रास्ते में जहां रुकते हैं, वहा चाय-नाश्ता, भोजन पूछते । वाहन से उतरते समय उन्हें उतरने के लिए कहना जरूरी है। मेला स्थल पर आने के बाद जमीन पर मिट्टी या पत्थर से घर अर्थात् घेरा बनाया जाता है। इसमें घर से लाए दीपक और अन्य सामान को रखा जाता है। परिजन चंबल नदी में नहाने के बाद पूजन व तर्पण करते हैं। रात को रतजगा करने के बाद अगले दिन फिर से भेरू बावजी के स्थान पर जाकर पूजन कर, मृत व्यक्ति और पूर्वजों की मुक्ति व आत्मशांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
चंबल नदी के तट पर विराजित श्री भेरूबावजी का स्थान।
यहाँ के स्थायी लोग बताते हैं कि वे अपने दादा-दादी से शंखोद्वार मेले के बारे में सुनते आए हैं। शंखोद्वार मेला और भेरू बावजी का मूल स्थान वर्तमान स्थल से करीब 6 किमी दूर चंबल नंदी के अंदर था। गांधीसागर बांध बना और डूब क्षेत्र में आने के बाद वर्तमान स्थल पर भेरू बावजी की स्थापना करने साथ यहां मेला लगता है। अब केवल लोग आत्मा की मुक्ति के लिए पूजन व तर्पण करने आते हैं।
देशभर से आते हैं श्रद्धालु
इस स्थान पर दर्शन और पूजन-तर्पण के लिए शाजापुर, शुजालपुर, मक्सी, उज्जैन, देवास, खाचरौद, नागदा, रतलाम, इंदौर, धार, झाबुआ, भोपाल, रायसेन, गंजबासौदा, हरदा, गुजरात के गोधरा, सूरत, राजस्थान के छपरा, बारां, कोटा सहित दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, कश्मीर तक से श्रद्धालु आते हैं। पिछले साल 90 हजार से ज्यादा श्रद्धालु आए थे।