नीमच मध्यप्रदेश सीधी

जर्मनी का युवक सीधी की बेटी को देगा बोन मैरो, पिता मांगकर जुटा रहे धन थैलेसीमिया से पीड़ित है 10वर्षीय बच्ची आराध्या तिवारी

कबीर मिशन समाचार।

(इलाज का खर्च करीब 60 लाख जमा हुए 14 लाख रुपये।)

सीधी। सीधी जिले की थैलेसीमिया से पीड़ित 10 वर्षीय बच्ची आराध्या तिवारी को जर्मनी का युवक बोन मैरो दान करके जीवनदान देगा। वह भारत आकर ट्रांसप्लांट के लिए तैयार है, लेकिन बच्ची के परिवार के पास उसके महंगे ट्रांसप्लांट के लिए रुपये नहीं हैं। सरकार से भी ज्यादा आर्थिक सहायता नहीं मिल सकी है। ऐसे में बच्ची का जीवन बचाने के लिए पिता 25 जून से प्रदेशभर में आर्थिक मदद के लिए यात्रा निकाल रहे हैं। वे पैदल यात्रा करते हुए अब तक जनसहयोग से 14 लाख रुपये एकत्र कर चुके हैं, लेकिन बच्ची के उपचार के लिए उन्हें 50 से 60 लाख रुपये जुटाना है।

सीधी निवासी पंकज तिवारी की बेटी आराध्या कक्षा पांचवीं की छात्रा है। वह जन्म से ही गंभीर थैलेसीमिया से पीड़ित है। उसे माह में दो से तीन बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। डाक्टरों ने स्थायी उपचार का एकमात्र उपाय बोन मैरो ट्रांसप्लांट बताया है। क्रिश्चियन मेडिकल कालेज वेल्लोर (सीएमसी) में उसका ट्रांसप्लांट होना है। वहां के डाक्टरों ने सबसे पहले माता-पिता, फिर कुछ अन्य रिश्तेदारों का बोन मैरो टेस्ट किया, लेकिन आराध्या के बोन मैरो से मैच नहीं हो सका। देश-विदेश में तलाश के बाद सीएमसी के हेमेटोलाजी डिपार्टमेंट को जर्मनी का एक डोनर मिला है, जिससे आराध्या का बोन मैरो मैच हुआ है। मेडिकल कालेज प्रबंधन ने स्वजन से जल्द ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए तैयार रहने को कहा है। इसे लेकर अस्पताल प्रबंधन ने जरूरी दस्तावेज सीएमसी भेजने को कहा है। बता दें कि जिस अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है, उसके पास दुनियाभर के ऐसे दानदाताओं की एक सूची उपलब्ध है, जो जरुरत पड़ने पर दान देते हैं। सीएमसी ने बोन मैरो दान देने वाले का नाम गोपनीय रखा है।

यह होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट
बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक प्रक्रिया है जिसमें रोग ग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मैरो के स्थान पर एक स्वस्थ रक्त उत्पादक बोन मैरो को प्रतिस्थापित किया जाता है। इसके दो प्रकार आटोलोगस ट्रांसप्लांट और दूसरा एलोजेनिक ट्रांसप्लांट है। आटोलोगस ट्रांसप्लांट में जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाना है उसी के शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर प्रत्यारोपण किया जाता है। वहीं एलोजेनिक ट्रांसप्लांट में किसी दूसरे के शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर उनका प्रत्यारोपण किया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो बीमार व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को शून्य स्तर पर लाकर दूसरे का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है। आराध्या का एलोजेनिक ट्रांसप्लांट होना है।

सरकार से लगाई गुहार, अब तक मदद का इंतजार
आराध्या के पिता पंकज अपनी सारी जमा पूंजी बिटिया के इलाज में लगा चुके हैं। सरकार से भी वह लगातार आर्थिक सहायता के लिए अपील कर रहे हैं। हाल ही में सीधी कलेक्टर से मिलकर उन्होंने सरकारी मदद दिलाने की गुहार लगाई है। कलेक्टर और वहां के एडीएम ने मानवता दिखाते हुए आर्थिक सहयोग भी दिया। साथ ही आश्वासन भी दिया कि वह इस संबंध में प्रस्ताव भेजकर मदद दिलाएंगे, लेकिन अब तक उन्हें मदद का इंतजार है। उधर, उपचार के ल‍िए रुपये जुटाने को पंकज ने सीधी से यात्रा शुरू की है।
सीधी-सिंगरौली से रीवा होते हुए वे भोपाल पहुंचेंगे।

इनका कहना है
हम लगातार बच्ची की मदद करने का प्रयास कर रहे हैं। रेडक्रास से परिवार को एक लाख रुपये दिए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई है। उपचार का एस्टीमेट आने पर शासन को प्रस्ताव भेजकर प्रयास किया जाएगा।
– साकेत मालवीय, कलेक्टर, सीधी

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