रीवा

मऊगंज। विधायक प्रदीप पटेल सत्ता के मद में हुए चूर सवाल पूछने पर तिलमिला उठे पत्रकारों को बताया दलाल।

मऊगंज। विधायक प्रदीप पटेल सत्ता के मद में हुए चूर सवाल पूछने पर तिलमिला उठे पत्रकारों को बताया दलाल।

मऊगंज/रीवा मध्यप्रदेश। कबीर मिशन समाचार

मऊगंज। भाजपा के विधायक और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री और विधायक मऊगंज प्रदीप पटेल आज ग्राम पंचायत मुनाई में जन शिविर लगाकर लोगों की समस्या सुनने के लिए गए थे। शिविर के बाद जब स्थानीय पत्रकारों के द्वारा विधायक से स्थानी समस्या को लेकर सवाल पूछा गया तो तिलमिला उठे। जब उनसे बिजली पानी की समस्या बताने लगे तो वह पत्रकारों को विधायक पद की धौस वाले लहजे से उल्टा पत्रकार से पूछा कि तुम पत्रकार हो तो हम पता करेंगे हो कि नहीं।

आपको बता दें क्षेत्रीय लोकल पत्रकारिता एक ऐसी पत्रकारिता है जो क्षेत्र में छोटी से छोटी हो रही समस्याओं को बड़े स्तर के पटल पर निकालकर लाती है। विधायक के इशारे पर ना काम करने वाले पत्रकारों से विधायक क्या इसी तरह से बात करेंगे ? वह किसी पार्टी का पक्षकार या प्रवक्ता नहीं होता। कुछ दिन पहले यही विधायक उन पत्रकारों के साथ प्रेस वार्ता करते हुए पुरस्कार दिया था। जब वह पत्रकार स्थानीय समस्या को लेकर उनसे सवाल पूछना चाहा तो विधायक जी उनको पत्रकार होने की सर्टिफिकेट देने लगे। पत्रकार की सर्टिफिकेट पत्रकार को जिस संस्थान में कार्य कर रहा है वह संस्थान देता है कोई विधायक या नेता नहीं देता। विधायक जिस मंच पर खड़े होकर अभी भाषण दे रहे थे और कह रहे थे की यहां पर कुछ लोग आए हैं। वह मेरे जाने के बाद आप लोगों से पूछेंगे फिर उल्टी-सीधी खबर चलाएंगे और दलाली करेंगे।
बताना चाहता हूं सबसे बड़े दलाल तो राजनीति के भ्रष्ट नेता हैं जो जनता की दौलत को अपने दलाली के माध्यम से डकार जाते हैं और अपना घर भरते हैं। विधायक बनने से पहले अगर इनकी दौलत की जांच की जाए और आज की दौलत जांच की जाए तो साफ पता चल जाएगा दलाली कौन कर रहा है एक पत्रकार या भ्रष्ट नेता। राजनीति में आने से पहले इनकी दौलत क्या रही है और आज इनके पास में कितनी दौलत है इसकी जांच होनी चाहिए इससे साफ जाहिर हो जाएगा कि जनता की दौलत की दलाली करके कौन अपना घर भर रहा है। एक भीख मांगने वाला व्यक्ति विधायक या मंत्री बन जाता है 10 साल में वह अमेरिका जैसे शहरों में मकान खरीद कर अपने बच्चों को पढ़ाने लगता हैं ऐसे भ्रष्ट राजनेताओं से तो शायद भगवान भी नहीं बच सकता है।
देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज सरकार पुनः एक बार बीजेपी सरकार को डुबाने में टिकट देगी या फिर बचाने के लिए दूसरे कैंडिडेट को टिकट देगी। यह मुख्यमंत्री के आगे बढ़ा सवाल हो सकता है।

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