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“राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर” पत्रकारिता मिशन बनाम प्रोडक्शन – प्रदीप कुमार नायकराष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर” पत्रकारिता मिशन बनाम प्रोडक्शन – प्रदीप कुमार नायक

आज विश्व में लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद हैं भारत में प्रेस को वाचडॉग एवं प्रेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडाँग कहाँ गया हैं।राष्ट्रीय प्रेस दिवस,प्रेस की स्वतंत्रता एवं जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता हैं। प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एवं पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी।परिणाम स्वरूप चार जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई,जिसने 16 नवम्बर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया।तब से लेकर आजतक प्रति वर्ष 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया हैं।पत्रकारिता जन-तक सूचनात्मक,शिक्षाप्रद एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुँचाने की कला एवं विधा हैं।समाचार पत्र एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान हैं, जिसके लाखों परीक्षक एवं अनगिनत समीक्षक होते हैं। अन्य माध्यमों के भी परीक्षक एवं समीक्षक उनके लक्षित जन समूह ही होते हैं।तथ्य परकता, यथार्थ वादिता,संतुलन एवं वस्तु निष्ठता इसके आधारभूत तत्व हैं।परंतु इनकी कमियां आज पत्रकारिता के क्षेत्रों में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी हैं।पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित, यह सबको पता हैं कि पत्रकारिता में तथ्य परकता होनी चाहिए।परंतु तथ्यों को तोड़-मरोड़कर,बढ़ा-चढ़ाकर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृत्ति आज पत्रकारिता में बढ़ने लगी हैं। खबरों में पक्षधरता एवं असंतुलन भी प्रायः देखने को मिलता हैं।इस प्रकार खबरों में निहित स्वार्थ साफ झलकने लग जाता हैं।आज समाचारों में विचार को मिश्रित किया जा रहा हैं। समाचारों का संपादकीय करण होने लगा हैं।विचारों पर आधारित समाचारों की संख्या विकसित होने लगी हैं।समाचार विचारों की जननी हैं।इसलिए समाचारों पर आधारित विचार तो स्वागत योग्य हो सकते हैं।परंतु विचारों पर आधारित समाचार अभिशाप की तरह हैं।

मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक माना जाता हैं।इनमें जो समाचार मीडिया हैं, चाहे वे समाचार पत्र हो या समाचार चैनल,उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता हैं।दर्पण का काम हैं, समतल दर्पण की तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सके।परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण समाचार मीडिया समतल दर्पण की तरह काम करने लग जाते हैं।इससे समाज की उल्टी,अवास्तविक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती हैं।

तात्पर्य यह हैं कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज पीली व नीली पत्रकारिता हमारे कुछ पत्रकारों के गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही हैं।भारतीय प्रेस परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहाँ भी हैं कि “भारत में प्रेस ने ज्यादा गलतियां की हैं एवं अधिकारियों की तुलना में प्रेस के खिलाफ अधिक शिकायतें दर्ज हैं।” पत्रकारिता आज़ादी से पहले एक मिशन थी।आज़ादी के बाद यह एक प्रोडक्शन बन गई हैं।हाँ बीच में आपातकाल के दौरान जब प्रेस पर सेंसर लगा था,तब पत्रकारिता एक बार फिर थोड़े समय के लिए भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान को लेकर मिशन बन गई थी।धीरे-धीरे पत्रकारिता प्रोडक्शन से सेंसेशन एवं सेंसेशन से कमीशन बन गई हैं।

परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं हैं।समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही हैं, जिससे बदलाव आता रहता हैं।विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं।ऐसी अवस्था में समाज असमंज की स्थिति में आ जाता हैं।

इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता हैं।मीडिया समाज को प्रभावित करता हैं।लेकिन कभी कभी येन-केन प्रकारेण मीडिया समाज से प्रभावित होने लगता हैं।राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत हैं।बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा रेखा कायम रखें।

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