मध्यप्रदेश राजगढ़ लेख

मध्यप्रदेश – मैं नई सदी का दलित हुं गांव देहात से आया हूं – मनोज वाल्टेयर

कबीर मिशन सामाचार/मध्यप्रदेश,

लेख – मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं बरसों से पिडित हूँ न्याय मांगने निकला हुँ, शदीयों से अपमानित हुआ हुं, सम्मान पाने आया हूं। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं।लोकतन्त्र है इस देश मे, कहते हो विदेश में तुम तुम्हारी कथनी करनी में कितना फर्क है यही देखने आया हूं।। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। मैं इस देश का मुळनिवासी हूँ, कितना मेरा इतिहास बचा है तुम्हारी किताबों में वही देखने आया हूं।। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। न्याय,बंधुता, समानता समर्पण, त्याग के भाव का शासन करते थे हमारे पुरखे यहां। कैसे तुमने यह इतिहास मिटाया यही जानने आया हूं।।

मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। कहते हो छुआछूत गैरबराबरी खत्म हो गई भारत में ‘ मेरे गांव में मेरे लोगो का ताजा दर्द बताने आया हूं। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं।अरे घोड़ी चढ़ने ,मुछैं रखने और पानी पिने पर हुई हत्या और पिटाई पर हमें हुए दर्द का अहसास कराने आया हूं।।मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। बस,अब बहुत हुआ मत सताओ हमें, ऐ 21वीं सदी के मनुवादियों।।अति हो गई है अब मेरी सहनशक्ति की, खुली चैतावनी देने आया हूं। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं।

और शायद तुम भुल गये होंगे भीमा कोरेगांव का वह दृश्य। कड़कड़ाती ठंड थी,था जनवरी का महीना सन् था 1818 वही याद दिलाने आय हुं। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। अरे भारत के संविधान में विश्वास करते है हम हमारे पुरेख ने ही लिखा है यही बतानें आया हूंमैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। अब फिर हमें मजबूर मत करो, वरना पहले सिर्फ एक आंबैडकर ने तुम्हारी नाक में दम कर दिया था, अब हर गली मोहल्ले में एक आंबैडकर है, बस यही अहसास कराने आया हूं ‌। मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं।

कहना, बताना, समझाना, दिखाना,और अहसास कराना तो बहुत कुछ था।पर समय कम है मेरे पास,तुम इतना जान लो, प्रलय से पहले की आंधी है हम, स्रजन से पहले के अभियंता भी हम ही हैं हर काल खण्ड के।। यह बात समझ गये है हम यह सुनाने आया हूं । मैं नई सदी का दलित हुं, गांव देहात से आया हूं। मत छैडो इस संविधान से वरना अभी तो आरक्षण से पेट में दर्द है। दोबारा फिर लिखने पर आ गए तो ऐसा लिखेंगे की न तन पे चड्डी न हाथ में कटोरा, तुम अपना अस्तित्व बचाते नज़र आओगे। मैं गांव देहात से,बस यही बताने आया हूं,बस यही समझाने आया हूं,बस यही सुनाने आया हूं,बस यही दिखाने आया हूं,……………… ,

लेखक – मनोज वाल्टेयर 🖊️🖊️🖊️🖊️

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