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राजगढ़। पटवारी की सांठ गांठ से 10 बीघा सरकारी जमीन को कब्जा कर बेंच दी।

राजगढ़। पटवारी की सांठ गांठ से कांग्रेसी नेता ने 10 बीघा सरकारी जमीन को कब्जा कर बेंच दिया, उद्योगपति पर राजगढ़ कलेक्टर की अनुकम्पा बनी हुई है, मुख्यमंत्री कहते हैं भृष्टाचार कोढ़ है।

राजगढ़ मध्यप्रदेश। कबीर मिशन समाचार

राजगढ़। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने रविवार की सुबह एक ट्वीट किया जिसमें लिखा कि भृष्टाचार कोढ़ है, इसे पूरी तरह समाप्त करना है। अगर कोई गड़बड़ कर रहा है तो इसकी जानकारी मुझे दें। ऐसे लोगों को में किसी कीमत पर नही छोडूंगा। लेकिन मुख्यमंत्री जी आपके ही राजगढ़ कलेक्टर की राजगढ़ पदस्थापना के दिन से लेकर अभी तक उन्हें कई बार दस्तावेजो के साथ समझाया कि ब्यावरा के एक कांग्रेसी उद्योगपति ने हाइवे किनारे की 10 बीघा शासकीय जमीन पटवारियों की सांठ गांठ से बेच दी।

इस मामले में जांच के बाद अधिकारियों पर विभागीय जांच बिठा दी गयी। लेकिन मुख्य आरोपी एवं पटवारियों को क्यों बख्शा जा रहा है? दिग्विजयसिंह के कृपापात्र उद्योगपति को बेशकीमती शासकीय जमीन धोखाधड़ी से बेचने के तथ्यात्मक आरोप में क्यों बख्शा जा रहा है।

मुख्यमंत्री जी भृष्टाचार के खिलाप कार्रवाई करने के लिए आतुर आपके एडीएम को भी हटवा दिया। क्या अब भी कार्रवाई संभव हो पाएगी? क्या है पूरा मामला समझिए शासकीय जमीन बेचने का खेल 2009 से शुरू हुआ। 2011 में राजगढ़ तहसील के खीमाखेड़ी गांव के तत्कालीन पटवारी की मिलीभगत से 2.529 हेक्टर शासकीय जमीन पर ब्यावरा के उद्योगपति महेश आनंदीलाल अग्रवाल ने कब्जा किया।

जमीन को दस्तावेजो में सर्वे क्रमांक दिया 87/4/1, चूंकि खीमाखेड़ी में 87/4/1 पहले से ही कृषक रामा पिता रामसिंह के नाम से 30 वर्षों से पैतृक भूमि है। ऐसे में इस जमीन के फर्जी खसरा तैयार किए गए और 2011 में दो लोगों को जमीन बेचने का अनुबंध किया गया।

साल 2011 में जमीन रजिस्ट्री के दौरान 5 साला खसरे की मांग की गई तो रजिस्ट्री शुल्क जमा होने के बाद 2 साल इंतजार किया गया एवं 2013 में तत्कालीन उप पंजीयक विनोद तिर्की द्वारा रजिस्ट्री कर दी गयी। उक्त शासकीय जमीन तीन हिस्सों में बंटने के बाद अब सर्वे क्रमांक 87/4/1/1, 87/4/1/2, और 87/4/1/3 दर्ज है। चूंकि भूराजस्व संहिता के नियमानुसार बटांकन होते ही मूल सर्वे क्रमांक का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

ऐसे में यहां मूल सर्वे क्रमांक 87/4/1 असली जमीन के असली मालिक के पास भौतिक स्थल पर एवं दस्तावेजो में भी अस्तित्व में है। और बटांकन भी हो गए यह कैसे संभव है? इस सवाल की जानकारी के लिए हमने पिछले दिनों दस्तावेज निकलवाए।

दस्तावेजो में शासकीय जमीन पटवारियों, अधिकारियों की सांठ गांठ से बेचना सामने आने पर , 27 सितंबर 2021 को एक शिकायत राजगढ़ कलेक्टर से की गई। कार्रवाई न होने की दशा में शिकायत संभागायुक्त, पीआरसी और पीएस से की गई। तब जांचकर्ता अधिकारी एडीएम कमलचन्द्र नागर ने जांच के बाद तत्तकालीन एडीएम बीएस कुलेश, एसडीएम कमलेश भार्गव, तहसीलदार संजय चौरसिया, एवं वर्ष 2011 एवं वर्ष 2016 में पदस्थ पटवारियों सहित तत्कालीन एसडीएम रीडर मुस्लिम खान, और तत्कालीन एडीएम रीडर केके जाटव को दोषी पाया गया।

एडीएम द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन पर कलेक्टर राजगढ़ ने दोनों रीडर को 24 फरवरी 2022 को निलंबित कर दिया। तीनो अधिकारियों पर विभागीय जांच संस्थित कर संभागायुक्त को प्रतिवेदन भेज दिया। लेकिन मूल रूप से दोषी शासकीय जमीन हथियाकर बेचने वाले कांग्रेसी नेता एवं उद्योगपति और दोनो पटवारियों को बचा दिया। साथ ही शासकीय जमीन भी राजसात नही की गई । मामले की शिकायत आवेदक द्वारा 10 जून 2022 को सीएम हेल्पलाइन पर की गई।

उक्त सीएम हेल्पलाइन शिकायत पिछले 6 महीनों में दो बार एल वन से एल 4 तक घूम कर तीसरी बाद एल वन पर पेंडिंग है। एडीएम कमलचन्द्र नागर कार्रवाई करने को आतुर थे तो उन्हें षड्यंत्रपूर्वक हटवा दिया गया। आखिर राजगढ़ कलेक्टर उक्त भूमाफिया एवं पटवारियों को क्यों बचा रहे हैं? आपने ट्वीट किया, हमने रीट्वीट कर जानकारी दे दी। अब निष्पक्ष एवं ईमानदारी पूर्वक कार्रवाई की अपेक्षा आपसे जनता करती है।

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