लेख। विजय बौद्ध संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति/ जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ, अजाक्स का 26 फरवरी को भोपाल भेल दशहरा मैदान में महा अधिवेशन संपन्न हुआ। सम्मेलन में 6 वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किए गए वादों की याद दिलाई गई। मुख्यमंत्री ने उस समय कहा था, कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता, पदोन्नति में आरक्षण के लिए जो भी नियम बनाने पड़ेंगे वह हम बनाएंगे। 6 वर्षों में सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया। सम्मेलन में शिवराज सरकार के दो मंत्री डॉ प्रभु राम चौधरी और तुलसी सिलावट को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। इन दोनों मंत्रियों ने अजाक्स की 26 सूत्रीय मांगों पर कोई चर्चा या कोई आश्वासन नहीं दिया। बल्कि अजाक्स सम्मेलन को सबक प्रेरणा दी, कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मूल मंत्र को समझने की आवश्यकता है।
तो क्या था डॉक्टर अंबेडकर का मूल मंत्र ॽ शिक्षित बनो संगठित रहो और संघर्ष करो। यानी कि मंत्री ने कहा सम्मेलन से कुछ हासिल नहीं होगा। अपने हक और अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष करो। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि, आरक्षित वर्ग के युवाओं की बेहतरी के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि हमारी सरकार पदोन्नति में आरक्षण नियम बना रही है, और लाखों बैकलॉक के रिक्त पदों को भरे जाने काम कर रही है, तथा पुरानी पेंशन भी बहाल करेगी। और अजाक्स संगठन की 26 सूत्रीय मांगों को पूरा किया जाएगा।
सम्मेलन अधिकारी कर्मचारियों का था। परंतु सम्मेलन में समाज के कमजोर वर्ग के अशिक्षित महिलाएं आदमी एवं छात्रों ने अपनी उपस्थिति देकर सम्मेलन को सफल बनाया है। किसी अधिकारी कर्मचारी की पत्नी बच्चे परिवार के लोग अधिवेशन में शामिल नहीं हुए। अजाक्स के इतने बड़े संपन्न महाधिवेशन की जातिवादी अखबार दैनिक भास्कर ने चार लाइन नहीं लिखा, न, फोटो प्रकाशित किया है।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, स्वाभिमानी लोग ही संघर्ष की परिभाषा समझते हैं, जिसका स्वाभिमान मरा होता है, वह गुलाम होते हैं। मुर्दा लोग मिशन नहीं चलाते और जिंदा लोग मिशन को रुकने नहीं देते। उन्होंने कहा जब तक शिक्षा का मकसद सिर्फ नौकरी पाना ही रहेगा तब तक समाज में केवल मानसिक गुलाम और दलाल ही पैदा होंगे विद्वान नहीं। मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति जनजातीय अधिकारी कर्मचारी संघ अजाक्स ने 15 जनवरी को भोपाल के रविंद्र भवन में 24 सूत्रीय मांगों को लेकर एक बड़ा सम्मेलन किया था। और उसमें घोषणा की गई थी, कि सरकार हमारी मांगों पर विचार नहीं करेगी तो, हम 26 फरवरी 2023 को भोपाल में सरकार के खिलाफ एक महा आंदोलन रैली करेंगे। परंतु इस महाआंदोलन को भी सरकार के दबाव और अपने निजी हित के मध्य नजर 26 फरवरी के पूर्व आयोजित आंदोलन को महासम्मेलन में तब्दील कर दिया गया।
पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 के विरुद्ध जबलपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएन खानविलकर ने फैसला देकर नियम 2002 को असंवैधानिक करार देकर 2016 में पदोन्नति में आरक्षण को ही सुनियोजित षड्यंत्र के तहत खत्म कर दिया था। उस समय भी अजाक्स संगठन ने सरकार को आंदोलन की चेतावनी दी थी। और एक बड़ा आंदोलन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दशहरा मैदान में खड़ा भी किया गया था। इस आंदोलन को सफल बनाने हजारों बहुजन समाज के लोग महिलाएं और छात्र शामिल हुए थे। परंतु रातों-रात उस आंदोलन को भी सरकार के दबाव एवं मानसिक गुलामी के चलते सम्मलेन में तब्दील कर दिया गया था।
जिसके कारण 6 वर्षों में सरकार ने आश्वासन देने के बाद भी पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने हेतु कोई नियम नहीं बनाये ।हजारों कर्मचारी अधिकारी बिना पदोन्नति के रिटायर्ड हो गए, उनका भारी नुकसान हुआ। सुप्रीम कोर्ट, पदोन्नति में आरक्षण इसलिए नहीं दे सकता क्योंकि जिस मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश खानविलकर ने पदोन्नति में आरक्षण को खत्म किया था, वह न्यायाधीश विगत 6 वर्षों से स्वयं पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट का जज है। उनके रहते पदोन्नति में आरक्षण संभव नहीं है। इसे संभव बनाने के लिए 2 अप्रैल 2018 को एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को जिस तरह से देश के लाखों अंबेडकर वादियों ने सड़कों पर उतर कर ऐतिहासिक जबरदस्त आंदोलन कर इतिहास रचा था। वैसा आंदोलन अजाक्स को करना पड़ेगा।
एट्रोसिटी एक्ट हल्का करने के खिलाफ आंदोलन में सुप्रीम कोर्ट को अपना ही निर्णय बदलने मजबूर किया था। सरकार थर्रा गई थी। शासन प्रशासन एवं न्यायालय हिल गई थी। न्यायालय को मजबूर होकर यह कहना पड़ा कि, देश में अभी अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के साथ भेदभाव हो रहा है। समानता और अधिकारों के लिए उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। सबको झूठा और बदमाश समझना मानवीय गरिमा के खिलाफ होगा। दो जज यूयू ललित और अग्रवाल की बेंच ने मार्च 2018 को आदेश जारी कर एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों को सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सरकार के दबाव में हल्का कर दिया था।
इस निर्णय के खिलाफ देशभर संयुक्त संगठित अंबेडकर वादियों ने ऐतिहासिक आंदोलन किया था। सड़कों पर लाखों अंबेडकरवादी एक साथ उतरे थे। तब केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस मुद्दे पर तीन जजों की बेंच ने, दो जजों के फैसले को ही पलट कर इतिहास रच दिया था। और सरकार ने भी अगस्त 2018 को ही कानून में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया था। पदोन्नति में भी आरक्षण पुनः बहाल हो सकता है। बैकलॉग के लाखों रिक्त पद भरे जा सकते हैं। पुरानी पेंशन बहाल हो सकती है। निजी करण पर भी रोक लग सकती है। लेकिन कोई अधिकारी कर्मचारी जंग के मैदान में उतरने तैयार तो हो। मुझे शशि कर्णावत के अलावा ऐसा कोई अधिकारी कर्मचारी नजर नहीं आता, जो सड़क पर उतारकर सरकार शिवराज सिंह मुर्दाबाद के नारे लगा सके, और अजाक्स जिंदाबाद के नारे लगा सके। गुलाम मानसिकता के लोग संघर्ष नहीं करते । स्वाभिमानी लोग संघर्ष करते हैं। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, गुलामों को गुलामी की जंजीर खुद तोड़नी होगी, तुम्हारे मालिक तुम्हारी जंजीरे क्यों तोड़ेंगेॽ वे ऐसा कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे ॽ आत्मविश्वास से जीना होगा इसके बिना जीवन व्यर्थ है।
स्वाभिमान से जिंदगी जीने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है कठिनाइयों और संघर्ष के साथ ही शक्ति विश्वास और सम्मान प्राप्त होता है। जिंदा हो तो अन्याय का विरोध करना सीखो क्योंकि लहरों के साथ लाशे बांह करती है, तैराकी नहीं,, सांसों का रुक जाना ही मृत्यु नहीं है। वह व्यक्ति भी मरा हुआ ही है, जिसने अन्याय का विरोध करने की हिम्मत खो दी है। जो कौम, जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाती वह अपने समाज की लाशें उठाती है। मैंने कब्रिस्तान में उन लोगों की भी कब्र देखी है, जिन्होंने इसलिए संघर्ष नहीं किया, क्योंकि कहीं पर मारे ना जाए। सरकार किसी की भी हो निडर होकर उसकी कमियों को उजागर करना ही सबसे बड़ी देशभक्ति है। तलवे चाटने वाले देशभक्त नहीं, दलाल होते हैं। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी जाति प्रथा उन्मूलन ग्रंथ में कहा था, प्रत्येक समाज का बुद्धिजीवी वर्ग वह शासक वर्ग न भी हो फिर भी वह प्रभावी होता है। केवल बुद्धि होना कोई सद्गुण नहीं है। बुद्धि का इस्तेमाल हम किस बातों के लिए करते हैं, इस पर बुद्धि का सद्गुण, दुर्गुण निर्भर होता है। और बुद्धि का उपयोग कैसे करते हैं यह बात हमारे जीवन का जो मकसद है, उस पर निर्भर होती है। यहां परंपरागत बुद्धिजीवी वर्ग ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल समाज के फायदे के लिए नहीं बल्कि समाज का शोषण करने के लिए किया है। अजाक्स संगठन ने हमेशा आंदोलन की घोषणा कर सम्मेलन में तब्दील किया है, यह अपने अधिकारी कर्मचारियों के साथ, समाज के साथ विश्वासघात है। अजाक्स संगठन के साथ प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में सेवारत कई डॉक्टर और प्रोफेसर है, वे स्वयं को बुद्धिजीवी समझते हैं, लेकिन उनका समाज हित में कोई योगदान नहीं है। दि बुद्धिस्ट टाइम्स पत्रिका के साथ जुड़े कुछ डॉ, प्रोफेसरों से मैंने दिल्ली में देश के बुद्धिजीवी अंबेडकर वादियों की एक ऐतिहासिक मीटिंग आहूत की थी। उस मीटिंग में उन्हें आमंत्रित किया था। और कुछ आर्थिक सहयोग की अपेक्षा किया था। मैं समझ रहा था, कि यह डॉक्टर प्रोफेसर बुद्धिजीवी और अंबेडकरवादी होंगे। खतरे में देश का संविधान, लोकतंत्र और बहुजन समाज को बचाने कोई सुझाव देंगे कोई उपाय बताएंगे, लेकिन डॉक्टर एवं प्रोफेसर तथाकथित अंबेडकरवादी बुद्धिजीवी उस ऐतिहासिक मीटिंग में शामिल नहीं हो सके। व्हाट्सएप पर आश्वासन देने के बाद भी आज तक कोई आर्थिक सहयोग नहीं दे सके। शिक्षा का मकसद सिर्फ नौकरी पाना है, तो वह मानसिक गुलाम ही रहेंगे, विद्वान और बुद्धिजीवी नहीं, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था। यह मेरे पढ़े लिखे लोगों जब पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ बुद्धि, पैसा, ज्ञान, हुनर और समय उस समाज को देना जिस समाज से तुम आए हो। संगठन ने महासम्मेलन के अपने प्रकाशित पर्चे में लिखा है, जिन्हें समाज के लिए वक्त नहीं,,, उनकी रगों में रक्त नहीं,,, मैं जानना चाहता हूं। आए दिन रोज समाज पर जुल्म अन्याय अत्याचार शोषण और समाज की महिलाओं के साथ बलात्कार हत्या होती है। कितने आईएएस आईपीएस इंजीनियर डॉक्टर प्रोफ़ेसर समाज के हित संरक्षण में वक्त निकालते हैं देते हैंॽ कितने अधिकारी कर्मचारी उनके हित संरक्षण में अन्याय अत्याचार उत्पीड़न के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैंॽ मैंने राजधानी की सड़कों पर 30 वर्षों में आईएएस शशि कर्णावत के अलावा किसी आईएएस को सड़कों पर लड़ते हुए नहीं देखा है।
अन्याय अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते देखा नहीं है। वे लोग अपने आरक्षण पदोन्नति में आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर सरकार के खिलाफ लड़ नहीं सकते, वे अपने समाज के हित संरक्षण में क्या खाक लड़ सकेंगे ॽ उनकी लड़ाई आरक्षण, संविधान लोकतंत्र और बहुजनो को बचाने की लड़ाई जिन अंबेडकरवादीयो ने एट्रोसिटी एक्ट सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ आवाज उठाया था।ऐसे सच्चे अंबेडकरवादी ही लड़ाई लड़ सकते हैं। संघर्ष कर सकते हैं। नौकरशाह सरकार के गुलाम होते हैं, और गुलाम नौकरशाह के नेतृत्व में कोई भी जनहित, संघ के हित में आंदोलन खड़ा नहीं किया जा सकता। पढ़े-लिखे लोग अपने बारे में सोचते हैं, और शिक्षित लोग समाज के बारे में सोचते हैं। दोगले लोग आरक्षण से नौकरी मिलने के बाद मनु वादियों से ही मित्रता करते हैं। और रिटायर होने के बाद अंबेडकरवादी होने का दम भरते हैं। जो अंबेडकरवादी होता है, वही संघर्षशील होता है, संघर्ष ही अंबेडकरवाद है। बिना संघर्ष के हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने भी पानी पीने के लिए महाड तालाब पर संघर्ष किया था। लहू लूहान हुआ था। आज जो कुछ हमें मिला है, उस महामानव डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सतत संघर्ष और कुर्बानी से ही मिला है। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन एवं कार्य का प्रधान लक्ष्य था, अछूतों को परंपरागत दासता से मुक्ति दिलाना, जिसे उन्होंने कभी नहीं छुपाया। अस्पृश्यों की मुक्ति को डॉक्टर अंबेडकर स्वराज, आजादी के लिए किए जाने वाले संघर्ष आंदोलन से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उनका कहना था, कि यदि कभी उनके हित और अछूतों के हितों में संघर्ष हुआ तो वे प्रथम अछूतों के हितों को महत्व देंगे। और यदि उनके हित और देश के हित में तकरार हुई तो वे देश के हित को प्रथम प्राथमिकता देंगे। किंतु अछूतों के हितों में और देश के हित में कभी संघर्ष हुआ तो वे अछूतों के हित को महत्व देंगे। आज स्वयं को पढ़ा लिखा एवं बुद्धिजीवी समझने वाला वर्ग अपने ही समाज को धोखा दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने संघर्षशील अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने निजीकरण पर प्रहार करते हुए कहा है, कि यह देश को गुलाम बनाने की साजिश है। सविधान में आर्टिकल 21, 37, 38, 39 और 300 के रहते केंद्र सरकार निजी करण नहीं कर सकती। सरकार, संविधान का उल्लंघन कर निजीकरण के लिए मनमाना कानून बनाती है। तो सरकार को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। यदि न्यायालय सही न्याय करती है। तो संविधान का उल्लंघन करने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा चल सकता है। और उम्र कैद की सजा भी हो सकती है। यहां तक सरकार भी भांग हो सकती है।
चंद उद्योगपति पूंजीपतियों को फायदा मिले इसलिए निजी करण किया जा रहा है। आज अच्छी शिक्षा पा रहे हैं। यदि निजीकरण हुआ तो पूंजीपतियों के यहां नव जवानों को ₹5,000 में नौकरी करनी पड़ेगी। जबकि आज शासकीय तृतीय श्रेणी कर्मचारी को भी ₹50,000 लगभग वेतन मिलता है। निजीकरण के संबंध में संविधान सभा में विस्तार से चर्चा हुई थी, कि देश में प्राइवेट सेक्टर तैयार किया जाए या नहीं ॽ पब्लिक सेक्टर, सरकारी सेक्टर,, संविधान सभा की पूरी बहस के बाद संविधान निर्माताओं ने यह तय किया था, कि देश में व्यापक स्तर पर समानता है। और असमानता को दूर करने के लिए पब्लिक सेक्टर यानेकि सरकारी सेक्टर तैयार किया जाए। यह निर्णय संविधान सभा निर्मात्री सभा की सहमति से हुआ था। तथा संविधान के आर्टिकल 37, 38, 39 में भी सरकारी सेक्टर को ही केवल बढ़ावा देना ही नहीं बल्कि ऐसी किसी भी प्रकार की नीति का प्रतिषेध किया है, कि जिससे निजी करण को बढ़ावा न मिल सके। संविधान में यह व्यवस्था की गई है, कि सरकार ऐसी कोई नीति नहीं बनाएगी जिससे कि देश का अधिकांश पैसा संपति कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में इकट्ठा हो जाए। इसके बाद संविधान में 42वां संशोधन आया, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इसमें भी इस केस को गोरखनाथ केस के नाम से जाना जाता है। इसमें भी यह कहा गया की असमानता को दूर करने के लिए निजी करण के बजाय सरकारी सेक्टर को ही बढ़ावा दिया जाए, यही नहीं बल्कि इंदिरा साहनी के निर्णय में भी सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के आर्टिकलो को व्यापक जनहित में मानते हुए बिल्कुल सही माना है। संविधान में इन उपरोक्त आर्टिकलो के रहते हुए केंद्र सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती है, जो कि देश के 135 करोड़ लोगों के खिलाफ हो। और गिने-चुने उद्योगपतियों पूंजी पतियों को इसका लाभ मिले। संविधान में निजीकरण की इस बात के लिए मना किया गया है। जब कि आज सरकार, सरकारी सेक्टर को निजी हाथों में बेच रही है। ऐसी स्थिति में भारत की कंपनियों के साथ मिलकर विदेशी कंपनियां भी सरकारी संपत्ति खरीद सकती है, इससे देश गुलाम भी हो सकता है। निजीकरण, आर्टिकल 300 का भी उल्लंघन है। साथियों मैं किसी का विरोधी या दुश्मन नहीं हूं। मैं एक अंबेडकरवादी और स्वतंत्र पत्रकार होने के नाते ऐसा लिखने मजबूर हूं। यह मेरा फर्ज है। यह मेरी पत्रकार होने के नाते ड्यूटी है। मेरा कर्तव्य है, कि मैं समाज को सही दिशा दे सकूं। साथियों आज देश भयानक मोड़ पर खड़ा है। बल्कि विनाश के कगार पर है। Citizen amendment act नागरिक संशोधन कानून CAA अत्यधिक भयानक एवं खतरनाक कानून है। जो समाज के कमजोर वर्ग की नागरिकता छीन सकती है। और अपने ही देश में उन्हें विदेशी घोषित कर डिटेंशन केंद्र, जेल में डाल सकती है। और उनकी पूरी संपत्ति जप्त कर सकती है। और वोट के अधिकार से वंचित कर सकती है।
इसलिए, मैं भयभीत हूं। मनुवादी फासीवादी ताकतें देश के संविधान के अनुरूप नहीं बल्कि मनुस्मृति के अनुरूप सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सरकार और न्यायालय काम कर रही है, वे लोग डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान को मानते ही नहीं, इसलिए संविधान से हटकर निर्णय लेते हैं। जैसे स्वर्णो को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया गया है, वह पूर्णतया असंवैधानिक है। अयोध्या विवादित मामले में बिना साक्ष्य प्रमाण के आस्था के आधार पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला, और पदोन्नति में आरक्षण को खत्म किया जाना यह सब सरकार, सुनियोजित षड्यंत्र के तहत न्यायालय के द्वारा कर रही है। यदि हम अभी नहीं जागेंगे तो जागने का वक्त भी नहीं मिलेगा। मनुवादी फासीवादी ताकतें डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान को बदलकर मनुस्मृति का शासन लाकर धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को हिंदू राष्ट्र की आड़ में ब्राह्मण राष्ट्र बनाने संकल्पित एवं कटिबद्ध होकर सतत संघर्षरत है। और हम अपने हक अधिकार मान सम्मान और स्वाभिमान के लिए भी संघर्ष नहीं करना चाहते। काशीराम जी ने कहा था, कि केवल खाने के लिए जिंदा हो तो आज ही मर जाओ। मान सम्मान और स्वाभिमान के लिए संघर्ष केवल इंसान ही करते हैं, जानवर नहीं, अजाक्स संगठ सरकार के दबाव में है। और अपनी मानसिक गुलामी के कारण अन्याय के विरोध में संघर्ष नहीं करना चाहता।
संघर्ष आंदोलन की चुनौती देने के बाद सम्मेलन में तब्दील कर देते है। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, देश के वर्तमान हालातों में हमें ऐसे पत्रकारों की जरूरत है जो समाज के अनदेखे पहलुओं और गलतियों को उजागर कर सके तथ्यों के साथ सच को उजागर करने वाले पत्रकारों की पहले से कहीं ज्यादा आज जरूरत है। मैं सच को सच और झूठ को झूठ लिखने, बोलने से नहीं डरता। मैं एक निर्भीक स्वतंत्र पत्रकार एवं संपादक हूं। और सच्चा अंबेडकरवादी,, संघर्ष मेरे जीवन का मुख्य लक्ष्य, मकसद है। और रहा है। मैंने वर्षों तक आए दिन जनहित के मुद्दों को लेकर सरकार की जनविरोधी नीतियों व्यवस्था के खिलाफ विधानसभा से लेकर सड़कों, संसद भवन तक आंदोलन और संघर्ष किया है, और कई बार गिरफ्तारी देकर जेल गया। संघर्ष मेरा जीवन है। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, जो लोग समाज और देश हित में संघर्ष करते हैं वह लोग मरने के बाद भी अमर रहते हैं। जिन जिन लोगों ने अपने समाज और देश हित में संघर्ष किया है, उनके नाम इतिहास के पन्नों में लिखे हैं। वह मरने के बाद भी अमर है।