भोपाल मध्यप्रदेश

बेटे के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैतृक कला में संजोकर, कला को दिया नया आयाम

स्वास्थ्य पर्यावरण और समुदाय बचाव में एक कुम्हार की भूमिका

स्वरोज़गार योजना से मिले ऋण से स्थापित किया घरेलू बर्तनों का उद्योग

जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी. दूर कटंगी जनपद के कटेरा गांव के कुम्हार पिता पुत्र ने स्वास्थ्य, पर्यावरण और समुदाय बचाव के लिये एक अनूठी मुहिम प्रारम्भ करते हुए माटीकला को नया आयाम दिया है। आधुनिक समाज के अत्याधुनिक रसोईघर में धातुओं से बनने वाले बर्तनों को उन्होंने मिट्टी के बर्तन अपनाने के लिए बेहतर विकल्प प्रदान करने में अपनी भूमिका निभाई हैं। कटेरा के 47 वर्षीय मुरलीधर टरंडे 5 पीढ़ियों से मिट्टी से मटके जैसी आवश्यक सामग्री बनाते चले आ रहे हैं। लेकिन पिछले 7 से 8 वर्षो से उनके सुपुत्र हितेश ने भी अपने पैतृक कार्य को एक नए स्वरूप देने का प्रयास किया। आज हितेश के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैतृक कला में समाहित करते हुए मिट्टी के बर्तनों का अद्भुत संसार प्रस्तुत किया है।

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वर्तमान में पिता पुत्र मिलकर करीब 100 तरह के मिट्टी के बर्तन बना रहें हैं। इसमें धार्मिक मूर्तियां भी शामिल है। जब उन्हें मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 5 लाख रुपये का ऋण उसके बाद से उन्होंने लघु उद्योग का रूप से दिया है। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी कर चुके हितेश टरंडे ने अपने व्यवसाय को लेकर कहा कि आधुनिक समाज धातुओं के बर्तनों का मजबूरी में उपयोग कर रहें है। उनके पास अच्छे विकल्प नहीं है। इस कारण वे चाहते हुए भी धातुओं के बर्तनों से रसोईघर में भोजन पका रहें है। हमने यही प्रयास किये कि उन्हें मिट्टी के रूप में विकल्प प्रदान करें। आज हम अपने इस कार्य में सफल भी हो रहें है।

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गृहणियों के सुझाव से कुकर में किया बदलाव, अब तीसरी बार कुकर में प्रयोग की ओर

अपने पिता टोलूराम टरंडे से विरासत के रूप में मिली कला को मुरलीधर ने वास्तव में अनोखा रूप दे रहें है। 8 वर्ष पूर्व मिट्टी के हेंडल वाला कुकर बनाया था। इसकी काफी लोकप्रियता के बाद कई गृहणियों ने सुझाव दिए थे। उसके अनुसार अब मिट्टी के हेंडल वाला कुकर भी बनाने में सफलता मिली हैं। अब मिट्टी के ढक्कन के वाले कुकर के प्रयास प्रारम्भ कर दिए है। इसमें ढक्कन कुकर के ऊपर लगाने प्रयास किये गए है। अब तक करीब 1500 से 2000 कुकर बिक चुके हैं।

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100 प्रकार के घरेलू बर्तन और आकर्षक मूर्तियां बनाने में माहिर

हितेश ने बताया कि विभिन्न वेबसाइट पर मिट्टी के विभिन्न स्वरूपों के आधार पर बनने वाले बर्तनों की जानकारी यूट्यूब पर देखने के बाद व्यवहारिक रूप दिया है। उन्होंने बताया कि बर्तन बनाने में वे साडू नामक मिट्टी, नार्मल और पत्थर रेत वाली मिट्टी का उपयोग करते हुए 100 से अधिक प्रकार के बर्तन और मूर्तियां बना रहे है। इसमें अभी फ्रॉय पेन नवीनतम प्रयोग किया है। इसके अलावा कुकर, कढ़ाई, तवा, जग, ग्लास, चाय के लिए कप बसी, केटली, थाली, वॉटर जग, पानी की टंकी, पानी की बोतल पिछले 7 से 8 वर्षो से बनाने लगे है।

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अयोध्या तक कुकर सहित अन्य मिट्टी के बर्तनों की हुई पहुँच

हितेश ने बताया कि आज कल ऑनलाइन भी उनके पास ऑर्डर आ रहे है। वहीं जिन लोगो तक जानकारी मिली है वे घर आकर मिट्टी के बर्तनों की बनावट देखने और खरीदारी के लिए आने लगे है। अभी हाल ही में अयोध्या के एक परिवार ने रसोईघर का पूरा सेट खरीदा है। इसके अलावा नागपुर, खजुराहों और जबलपुर के नागरिकों में भी खूब लोकप्रियता मिली है। इन बर्तनों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि माह में करीब 20 से 25 हजार रुपये की बिक्री हो जाती है। यह बिक्री सीजन में और अधिक हो जाती है।

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समाज के लिए क्यों आवश्यक है मिट्टी के बर्तनों में बना भोजन

मिट्टी के बर्तन ही आदिम मानव का पहला प्रयोग रहा है। आज धातुओं की उपलब्धता से हर घर में धातुओं के बर्तन मिल जाते है। बहरहाल हर इंसान के लिए प्राकृतिक रूप से आयरन, कैल्शियम, सल्फर, फॉस्फोरस, पोटेशियम जिंक सहित कई नेचुरल तत्वों की जरूरत होती है। जो हमें मिट्टी के बर्तनों में आसानी से प्राकृतिक रूप में मिल जाते है। मिट्टी के बर्तनों के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को कम किया जा सकता है। मिट्टी के बर्तनों में पके भोजन ग्रहण करने से कब्ज़, गैस अपर अपच जैसी समस्या से राहत मिलती है।

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