भीम आर्मी भारत एकता मिशन, भारत में एक अम्बेडकरवादी और दलित अधिकार संगठन है । इसकी स्थापना सतीश कुमार, विनय रतन सिंह और एड. चंद्रशेखर आजाद ने 2015 में की थी। यह संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, शामली और मुजफ्फरनगर जिलों में दलितों और बहुजनों। संगठन का नाम बीआर अंबेडकर के नाम पर रखा गया हैं।
एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और जातिगत उत्पीड़न का विरोध करने के लिए 2015 में भीम आर्मी की स्थापना की। उत्तर प्रदेश के एएचपी इंटर कॉलेज में दलित छात्रों के साथ भेदभाव और जाति आधारित हिंसा की रिपोर्ट के बाद गठित समूह और भीम आर्मी ने तब दलित छात्रों की रक्षा करने में मदद की।
आज़ाद ने सार्वजनिक रूप से एक संकेत पोस्ट करने के बाद ध्यान आकर्षित किया जिसमें लिखा था “धड़कौली का महान चमार आपका स्वागत है।” उच्च जाति के ठाकुर दलित पहचान के उत्सव से नाराज थे और उन्होंने बोर्ड के निर्माण पर आपत्ति जताई। लेकिन, भीम आर्मी ने हस्तक्षेप किया और सुनिश्चित किया कि ठाकुरों ने कोई हिंसा नहीं की। एक अन्य घटना में, ठाकुरों ने एक दलित दूल्हे को उसकी शादी में घोड़े पर सवार होने से रोका। फिर भी, भीम आर्मी ने हस्तक्षेप किया और दूल्हे को बचा लिया।
उत्तर प्रदेश में संघर्ष के बाद भीम आर्मी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली। जून 2017 में, समूह के नेता चंद्रशेखर, एक वकील, को उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा गिरफ्तार किया गया था। नवंबर 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चंद्रशेखर को जमानत दे दी थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत तब तक हिरासत में रखा जब तक कि सितंबर 2018 में एनएसए के आदेश को हटा नहीं दिया और चंद्रशेखर को जेल से बरी कर दिया। चंद्रशेखर खुद को बहुजन पहचान का प्रतिनिधि और कांशीराम का अनुयायी बताते हैं। संगठन बनाने के बाद उन्होंने अपने कई भाषणों मे यह स्पष्ट भी किया था की वे राजनीति के लिए नही आये है, उन्हे केवल समाज की सेवा ओर उत्थान के बारे मे सोचना है। वे अधिकारिक लड़ाई लड़ेंगे। हालांकि शुरुआत से हि चंद्रशेखर मायावती की पार्टी को सपोर्ट करते थे ओर कभी अलग पार्टी की बात उनके मुख से नही निकली थी।
बसपा का नाम लगभग खत्म होने की कागर पर था ओर ऐसे मे भीम आर्मी का बसपा को समर्थन मिलने से बसपा पुनः दिखाई देने लगी थी, भीम आर्मी एक सामाजिक संगठन के रूप मे बड़ी तीव्र गति से चल रहा था ओर सबको न्याय भी मिल रहा था। “”ना रुकूंगा ना झुकूंगा, ऐसा कोई नोट नही बना जो आपके भाई को खरीद ले”” यह नारा भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर आजाद उर्फ़ रावण का है। वे कभी भी समाज पर शोषण होने पर चुप नही रहते थे, समझौता नही करते थे, यदि किसी मामले को उठाया ओर आंदोलन की चेतावनी दे दी तो आंदोलन होकर रहता था चाहे जो अर्चन आए। उनके इस कार्य को देखते हुए, लाखो लोग उनसे जुड़े, उनके एक massage पर लोग गाड़िया, ट्रको से या जैसे संभव है भरा भराकर आ जाते थे।
अगस्त 2019 में, भीम आर्मी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के आदेश पर, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के आदेश पर, श्री गुरु रविदास गुरुघर, संत रविदास को समर्पित एक मंदिर, के विध्वंस के खिलाफ देशव्यापी दलित विरोध में भाग लिया। डीडीए और गुरु रविदास जयंती समारोह समिति। पुलिस ने चंद्रशेखर और विनय रतन सहित दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया, जिसके बाद भीम आर्मी ने उनकी रिहाई की मांग की।
इसके बाद फिर दिसंबर 2019 में, चंद्रशेखर ने घोषणा की कि भीम आर्मी औपचारिक रूप से चुनावी राजनीति में प्रवेश करेगी। समूह पहले अर्ध-राजनीतिक बल के रूप में संचालित होता था। चंद्रशेखर ने कहा कि ” हमने बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाकर काम करने की कोशिश की लेकिन उसके नेता ऐसा करने को तैयार नहीं थे। ” चंद्रशेखर ने कहा कि नया राजनीतिक दल लखनऊ में एक कार्यालय स्थापित करेगा और सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए काम करेगा। चंद्रशेखर ने भाजपा को अपना मुख्य राजनीतिक विरोधी बताया है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को भी टक्कर दी है।
भीम आर्मी ने भाजपा के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) कानून का विरोध किया जनवरी और फरवरी 2020 में भीम आर्मी ने CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होकर इसे निरस्त करने की मांग की। फरवरी 2020 में, उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के संबंध में सीएए समर्थक भाजपा समर्थकों और भीम आर्मी समर्थकों के बीच सड़क पर झड़पें हुईं; दोनों पक्ष पथराव में लगे हुए हैं।
15 मार्च 2020 को, चंद्रशेखर ने आधिकारिक तौर पर आजाद समाज पार्टी नामक अपनी नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा की। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल के 98 पूर्व नेता इस नई पार्टी में शामिल हुए। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी आजाद समाज पार्टी को मैदान में उतरा लेकिन जिस तरह संघठन उभरा उस गति से पार्टी नही उभर पाई, ASP को 1 सीट भी नही मिली और खुद भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से अपनी आजाद समाज पार्टी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने खड़े हुए . लेकिन जो सोचा वो नही हुआ और उनको मुह की खाना पड़ी. बहुत कम वोट लेकर आए . भीम आर्मी संघठन की ताकत काम न आई . अब मप्र सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव है. जिसमे उन्होंने फिर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं . स्थिति यह है की काई सीट पर पार्टी को उम्मीदवार तक नही मिल रहे हैं. जो एक सामाजिक संघठन की ताकत थी उसको भी राजनीति के आगे कमजोर कर दिया. काई लोगो ने संघठन को छोड़ कर चले गए. आज स्थिति यह हैं की भीम आर्मी के संस्थापक सदस्य ने भी पार्टी बनने के बाद संघठन को छोड़ दिया. राजनीती के आगे चंद्रशेखर कमजोर हो गए.
कुछ समय तो माहौल अच्छा चला, लेकिन फिर संगठन् मे पाबंदी लगाई जाने लगी, की भीम आर्मी के कार्यकर्ताओ को आज़ाद समाज पार्टी को अपनाना अनिवार्य होगा, जब तक शीर्ष नेतृत्व से आदेश न हो कोई ज्ञापन नही होगा, कोई धरना नही होगा, भीम आर्मी किसी भी सामाजिक संगठन के प्रदर्शन मे समर्थन नही देगी, अन्य सामाजिक संगठन के साथ समर्थन देने वाले को अनुशाशन हिंनता के चलने बाहर कर दिया जायेगा, ऊपरी नेतृत्व का आपके क्षेत्र मे आने पर ₹ देकर उनका किराया भरा जाय। जैसे कई मामले हुए, ओर इन चीजों का विरोध जिन्होने किया उन्हे छोड़ना पड़ा।
पहले जिस चेहरे के लिए लोग भूखे प्यासे दौड़े चले आते थे, आज वो चेहरा स्वार्थी बनने लगा। कई जगह तो देखा गया की दुष्कर्म जैसे केस मे चंद्रशेखर आज़ाद नही पहुंचा, कारण वोट बैंक जबकी पहले का चंद्रशेखर बहन बेटी की बात होती थी तो समुद्र लाँघ कर भी उनके पास पहुँच जाता था, उनकी लड़ाई लड़ता था। लेकिन अब डिफरेंट हो गया? आखिर क्या है इसका कारण? क्या राजनीति के लिए ?