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बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का सामाजिक और राजनीतिक सफ़र, एक मंशा अधूरी रह गयी

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रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया
एमजी नागमणि की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया
पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी – जोगेंद्र कवाडे
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (यूनाइटेड)
आरएस गवई और राजेंद्र गवई की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई)
प्रकाश अम्बेडकर का भारिपा बहुजन महासंघ
अन्नासाहेब कटारे की राष्ट्रीय रिपब्लिकन पार्टी
श्याम गायकवाड़ की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने आठ साल तक आरपीआई के साथ काम किया।

कांशीराम साहब ने शुरू में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) का समर्थन किया था लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़े रहने के कारण उनका भंग हो गया था. इसक कारण उन्होंने 1971 में अखिल भारतीय एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की जो कि बाद में चलकर 1978 में BAMCEF बन गया था. BAMCEF एक ऐसा संगठन था जिसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित सदस्यों को अम्बेडकरवादी सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए राजी करना था. BAMCEF न तो एक राजनीतिक और न ही एक धार्मिक संस्था थी और इसका अपने उद्देश्य के लिए आंदोलन करने का भी कोई उद्देश्य नहीं था। सूर्यकांत वाघमोर कहते हैं, इस संगठन ने दलित समाज के उस संपन्न तबके को इकठ्ठा करने का काम किया जो कि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों, छोटे शहरों में रहता था और सरकारी नैकारियों में काम करता तह साथ ही अपने अपने अछूत भाई बहनों से भी किसी तरह के संपर्क में नहीं था.

इसके बाद कांशीराम साहब ने 1981 में एक और सामाजिक संगठन बनाया, जिसे दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएसएसएस, DSSS या DS4) के नाम से जाना जाता है. उन्होंने दलित वोट को इकठ्ठा करने की अपनी कोशिश शुरू की और 1984 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा था, बीएसपी को उत्तर प्रदेश में सफलता मिली, शुरू में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच विभाजन को पाटने के लिए संघर्ष किया,लेकिन बाद में मायावती के नेतृत्व में इस खाई को पाटा गया।

सन 1982 में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द चमचा युग’ लिखी, जिसमें उन्होंने जगजीवन राम और रामविलास पासवान और रामदास अठावले जैसे दलित नेताओं का वर्णन करने के लिए “चमचा” शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने तर्क दिया कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करके अपनी विचारधारा से समझौता करने के बजाय अपने स्वयं समाज के विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक रूप से काम करना चाहिए।

बीएसपी के गठन के बाद, कांशीराम जी ने कहा कि उनकी ‘बहुजन समाज पार्टी’ पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा चुनाव नजर में आने के लिए और तीसरा चुनाव जीतने के लिए लड़ेगी,1988 में उन्होंने भावी प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह के खिलाफ इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ा और प्रभावशाली प्रदर्शन किया, लेकिन 70,000 वोटों से हार गए।

वह 1989 में पूर्वी दिल्ली (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लोक सभा चुनाव लडे और चौथे स्थान पर रहे. सन 1991 में, कांशीराम जी और मुलायम जी सिंह ने गठबंधन किया और कांशीराम जी ने इटावा से चुनाव लड़ने का फैसला किया, कांशीराम जी ने अपने निकटतम भाजपा प्रतिद्वंद्वी को 20,000 मतों से हराया और पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. इसके बाद कांशीराम जी ने 1996 में होशियारपुर से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे. अपने ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने 2001 में सार्वजनिक रूप से मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। ओर मायावती से समाज मे नेता बनाने जुम्मेदारी सौंपी ।

बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा

सन 2002 में, कांशीराम जी ने 14 अक्टूबर 2006 को डॉक्टर अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन की 50 वीं वर्षगांठ के मौके पर बौद्ध धर्म ग्रहण करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी. कांशीराम जी की मंशा थी कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी समय धर्म परिवर्तन करें. उनकी धर्म परिवर्तन की इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह थी कि उनके समर्थकों को केवल अछूत ही शामिल नहीं थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे, जो भारत में बौद्ध धर्म के समर्थन को व्यापक रूप से बढ़ा सकते थे. हालांकि, 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया और उनकी बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा अधूरी रह गयी.

बाद मे मायावती ने कहा कि उन्होंने और कांशीराम साहब ने तय किया था कि हम बौद्ध धर्म तभी ग्रहण करेंगे जब केंद्र में ‘पूर्ण बहुमत’ की सरकार बनायेंगे. हम ऐसा इसलिए करना चाहते थे क्योंकि हम धर्म बदलकर देश में धार्मिक बदलाव तभी ला सकते थे जब जब हमारे हाथ में सत्ता हो और हमारे साथ करोड़ों लोग एक साथ धर्म बदलें . यदि हम बिना सत्ता पर कब्ज़ा किये धर्म बदल लेंगे तो हमारे साथ कोई नहीं खड़ा होगा और केवल ‘हम दोनों’ का ही धर्म बदलेगा हमारे लोगों का नहीं, इससे समाज में किसी तरह के धार्मिक क्रांति की लहर नहीं उठेगी

मायावती ने सन् 1977 में कांशीराम जी के सम्पर्क में आने के बाद एक पूर्ण कालिक राजनीतिज्ञ बनने का निर्णय ले लिया। कांशीराम के संरक्षण के अन्तर्गत वे उस समय उनकी कोर टीम का हिस्सा रहीं, जब सन् 1984 में बसपा की स्थापना हुई थी।1989 में इन्होने लोकसभा के चुनाव में पहली जीत हासिल की जहा यह बिजनौर सीट से खडी हुई और भारी मतों से जीता इसके बाद इन्होने 1994 में भी लोकसभा का चुनाव जीता । इस चुनाव मायावती जी को लोगो के बीच बेहद लोकप्रिय हो गई थी।

लेकिन अब कांशीराम के बिना बसपा ओर बहुजन समाज सुना हो गया था,
फिर भी 2007 मे भारी बहुमत से उप. मे सरकार बनी।
लेकिन उसके बाद बसपा का अस्तित्व खतरे मे आने लग गया। इसके पीछे कांशीराम जी का न होना भी एक कारण है?

9 अक्टूबर 2016 को नविन जोशी ने भी लिखा की….

मायावती को भी शायद इस समय कांशीराम की बहुत जरूरत है, तभी तो वे उनके निर्वाण दिवस पर लखनऊ में ‘विशाल रैली’ कर रही थी पिछले तीन साल इस दिन उन्होंने कोई रैली नहीं की, जैसा कि उससे पहले करती रही थीं पूरे दलित समाज को एकता का संदेश देने और अपना एकछत्र नेतृत्व दिखाने की आज उन्हें बड़ी जरूरत जो आन पड़ी है

कांशी राम जी के कई पुराने साथी और बसपा को खड़ा करने में भागीदार रहे प्रमुख नेता-कार्यकर्ता इस बीच बसपा छोड़ चुके हैं या हाशिए पर हैं पिछले तीन-चार महीने में आर के चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे पुराने नेताओं ने पार्टी छोड़ी है. पार्टी को अलविदा कहने वालों में करीब दर्जन भर विधायक, सांसद और पूर्व सांसद भी हैं. सभी ने मायावती पर अम्बेडकर और कांशी राम के मिशन की अनदेखी करने और टिकट बंटवारे में भारी रकम वसूलने के आरोप लगाए हैं।

बामसेफ जैसे बड़े संगठन ने भी अपनी अलग पार्टी बना ली।

पार्टी छोड़ कर जाने वालों ने उन्हें ‘दलित की बेटी’ की बजाय ‘दौलत की बेटी’ तक कहा है. ये आरोप मायावती के लिए नए नहीं हैं और पार्टी छोड़ कर जाने वालों का आरोप लगाना भी अजूबा नहीं है. लेकिन यह देखना होगा कि क्या कांशीराम के बिना बसपा उनके मिशन से भटक गई है? आक्रामक नेतृत्व की क्षमता देख कर जिस मायावती को कांशीराम ने अपना वारिस घोषित किया था और उम्मीद की थी कि वे मेरे अधूरे कामों को आगे पूरा करेंगी, क्या वह मायावती अब बदल गई हैं? नेता बनाना तो संभव नही हुआ बल्कि मायावती एक मात्र नेता बनी रह गयी।

SC ST द्वारा संचालित राजनीतिक दलों का नाम.
1) BSP
2) LJSP
3) HAM
4) RPI (अनगिनत)
5) ASP
6) JMM

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